प्रपत्र पर नहीं मिल रहा जरूरी संपादक या ब्यूरो का हस्ताक्षर व मुहर
मजीठिया वेतन आयोग की मंजूरी सुप्रीम कोर्ट ने भले ही दे दी है, लेकिन कई अखबार के मालिकान को यह रास नहीं आ रहा है. बिहार का नंबर एक ब्रांड हिन्दुस्तान तो इसे पचा ही नहीं पा रहा. इसलिए प्रबंधन फूंक फूंक कर कदम उठा रहा है. वह ऐसा कोई भी कारगुजारी नहीं चाहता, जिससे उसकी गर्दन फंसे और उसे वर्षों से बंधुआ मजदूरों की तरह दस टकिए पर खट रहे स्टिंगरों को वेतन देना पड़े.
ताजा मामला बिहार में पत्रकारों के सरकारी बीमे को लेकर है. सूचना विभाग की तरफ से आदेश जारी हुआ है कि वैसे पत्रकार जिन्होंने पांच वर्ष पूरे कर लिए हैं, उन्हें पांच लाख तक की दुर्घटना व स्वास्थ्य बीमा का मुफ्त फायदा उठाने के लिए 1700 रूपए प्रीमियम के साथ 26 फरवरी तक बीमा का प्रपत्र भर कर जिला सूचना कार्यालय में जमा कर देना है. हालांकि अनुमति के लिए प्रपत्र पर संपादक या ब्यूरो का हस्ताक्षर व मुहर अनिवार्य है. इस सरकारी स्कीम का फायदा प्रभात खबर व दैनिक जागरण के ग्रामीण संवादददाता उठा रहे हैं. लेकिन हिन्दुस्तान प्रबंधन ने इस स्कीम के प्रति उदासीनता दिखाते हुए हाथ खड़ा कर लिए है. अखबार के तीनों यूनिटों पटना, भागलपुर व मुजफ्फरपुर की यही स्थिति है. इस कारण मुफ्फसिल से लेकर अनुमंडल व प्रखंड स्तर तक के स्टिंगर खुद को ठगा हुआ व अपमानित महसूस कर रहे हैं. दरअसल प्रबंधन को यह डर सता रहा है कि ऐसा लिख कर देने से कहीं वह मजीठिया वेतन के दायरे में नहीं आ जाए.
दूसरी तरफ सूबे में अन्य अखबारों ने जहां अपने रिपोर्टरों को अवैतनिक लिखा ही सही प्रेस कार्ड जारी कर दिया है. वहीं हिन्दुस्तान के पत्रकार इससे वंचित हैं. यहां तक कि कार्यालय प्रभारी तक को यह सुविधा प्राप्त नहीं. संवाददाताओं से इस कदर बेरुखी का परिणाम आने वाले दिनों में हिन्दुस्तान प्रबंधन को भुगतना पड़ सकता है. कही वे बागी होकर भास्कर का दामन नहीं थाम ले. साथ ही उनके अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की भी सुगबुगाहट मिल रही है.
(एक पत्रकार के पत्र पर आधारित.)