Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए संशोधित नीति दिशानिर्देश जारी

विज्ञापन दर भी बढ़ा, भारत में सामुदायिक रेडियो के 20 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में क्षेत्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन (दक्षिण) का आयोजन, अनुराग सिंह ठाकुर ने दिशानिर्देश जारी किए

सूचना एवं प्रसारण और युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्री श्री अनुराग सिंह ठाकुर ने 13 फरवरी, 2024 को अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नई में क्षेत्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन (दक्षिण) के दौरान 'विश्व रेडियो दिवस' के अवसर पर 'भारत में सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए संशोधित नीति दिशानिर्देश' जारी किए। इस अवसर पर उद्घाटन समारोह के दौरान श्री अनुराग सिंह ठाकुर ने मुख्य भाषण दिया और सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने विशेष संबोधन दिया।

इस अवसर पर अपने संबोधन में श्री ठाकुर ने अपने मुख्य भाषण में सामुदायिक रेडियो के महत्व पर प्रकाश डाला:

उन्‍होंने कहा, “सामुदायिक रेडियो स्टेशन एक ऐसा मंच हैं जहां विषय-वस्तु स्थानीय बोलियों और क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारित की जाती है। इन स्टेशनों में स्थानीय मुहावरों में स्थानीय, संदर्भ विशेष मुद्दे उठाए जाते हैं और उन पर चर्चा की जाती है। सरकार सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के अपने मंत्र को लेकर प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सामुदायिक रेडियो के महत्व को समझना जरूरी है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' में व्यक्तिगत उदाहरण के माध्यम से दिखाया है कि जनता से बात करने और सुनने दोनों में रेडियो माध्यम कितना महत्‍वपूर्ण है। प्रत्येक सीआरएस स्थानीय मॉडल का प्रतिबिंब है, जो वर्षों में निर्मित हुआ है। इससे एकत्र और साझा की गई अनुभवात्मक सीख भी झलकती है।’’

सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने अपने विशेष संबोधन में कहा कि,

“सामुदायिक रेडियो एक मार्गदर्शक अवधारणा है और समुदाय की अनसुनी आवाज़ों को एक मंच प्रदान करता है। ये स्टेशन लोगों तक गहराई से और सीधे पहुंचने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक हैं क्योंकि ये स्टेशन समुदाय के लिए उपयोगी स्थानीय रूप से प्रासंगिक कार्यक्रम बनाते हैं। समुदाय तक पहुंचने के लिए सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के अपेक्षाकृत सस्ते माध्यम से बेहतर कोई तरीका नहीं हो सकता। इस देश के विशाल परिदृश्य को देखते हुए, भारत में कई और सामुदायिक रेडियो स्टेशन स्थापित करने की बहुत बड़ी संभावना है।’’

दक्षिणी सामुदायिक रेडियो स्टेशनों (सीआरएस) के लिए दो दिवसीय क्षेत्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन में भारत में सामुदायिक रेडियो के 20 साल पूरे होने का भी उत्सव मनाया गया। इस सम्मेलन में अन्य सामुदायिक मीडिया विशेषज्ञों के साथ दक्षिणी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 100 से अधिक सीआरएस भाग ले रहे हैं। इस सम्मेलन में सीआरएस को क्षमता निर्माण का अवसर मिलने के साथ-साथ उन्हें एक-दूसरे से बातचीत करने का मौका भी मिला।

सामुदायिक रेडियो, रेडियो प्रसारण क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण तीसरा स्तर है जो सार्वजनिक सेवा रेडियो प्रसारण और वाणिज्यिक रेडियो से अलग है। सामुदायिक रेडियो स्टेशन (सीआरएस) कम शक्ति वाले रेडियो स्टेशन हैं, जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा स्थापित और संचालित किया जाता है। भारत के पहले सामुदायिक रेडियो का उद्घाटन वर्ष 2004 में अन्ना विश्वविद्यालय परिसर में किया गया था। फिलहाल, भारत में 481 सामुदायिक रेडियो स्‍टेशन हैं और पिछले दो वर्षों में 133 से अधिक सीआरएस चालू हुए हैं।

दिसंबर 2002 में, भारत सरकार ने आईआईटी/आईआईएम सहित बेहतरीन शैक्षणिक संस्थानों को रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए लाइसेंस देने की नीति को मंजूरी दी। इस मामले पर वर्ष 2006 में पुनर्विचार किया गया और सरकार ने विकास एवं सामाजिक बदलाव से संबंधित मुद्दों पर नागरिक समाज की अधिक भागीदारी के लिए नागरिक समाज संगठनों , स्वैच्छिक संगठनों आदि जैसे 'गैर-लाभकारी' संगठनों को अपने दायरे में लाकर इस नीति को व्यापक बनाने का निर्णय लिया। संशोधित नीति दिशानिर्देश वर्ष 2006 में जारी किए गए थे, और बाद में वर्ष 2017, 2018 और 2022 में संशोधित किए गए।

सामुदायिक रेडियो स्टेशनों की वित्तीय स्थिरता और सामुदायिक रेडियो क्षेत्र का विकास सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने नीति दिशानिर्देशों में और संशोधन किए हैं। इन संशोधित नीति दिशानिर्देशों की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

कई जिलों में काम कर रहे पात्र संगठन /संस्थान को संचालन के विभिन्न जिलों में अधिकतम छह (6) सीआरएस स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी, बशर्ते वह मंत्रालय द्वारा निर्धारित कुछ शर्तों को पूरा करता हो।

ग्रांट ऑफ परमिशन एग्रीमेंट (जीओपीए) की प्रारंभिक समय अवधि बढ़ाकर दस (10) वर्ष कर दी गई। 

सीआरएस के लिए विज्ञापन का समय 7 मिनट प्रति घंटे से बढ़ाकर 12 मिनट प्रति घंटा कर दिया गया है।

सामुदायिक रेडियो स्टेशनों के लिए विज्ञापन की दर 52 रुपये प्रति 10 सेकंड से बढ़ाकर 74 रुपये प्रति 10 सेकंड कर दी गई है।

किसी संगठन को जारी आशय पत्र की वैधता एक वर्ष निर्धारित की गई है। किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति होने पर आवेदक को तीन महीने का समय (बफर) भी दिया जाएगा।

संपूर्ण आवेदन प्रक्रिया की समयसीमा तय है।

इन संशोधित नीति दिशानिर्देशों से सामुदायिक रेडियो क्षेत्र के विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए कंटेंट निर्माण में महिलाओं की भागीदारी के प्रावधान, अर्थात सलाहकार और विषय-वस्तु (कंटेंट) समिति में कम से कम आधे सदस्य के तौर पर महिलाओं को रखने का प्रावधान इस संशोधित दिशानिर्देशों में जोड़ा गया है। नीति दिशानिर्देश मंत्रालय की वेबसाइट www.mib.gov.in पर उपलब्ध हैं

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना