व्यावसायिक चुनौतियां सामने, उर्दू पत्रकारिता के दो सौ वर्षों का लेखा-जोखा विषयक व्याख्यान से विद्वानों ने श्रोताओं को समृद्ध किया
पटना/ उर्दू पत्रकारिता का इतिहास अनेक उतार चढाव से भरा हुआ है, 1822 में जामे जहाँ नुमा से जो यात्रा शुरू हुई , वह देश और समाज के काल-क्रम और आवश्यकताओं के अनुरूप जिस गति से बढ़ना चाहिए था, उसमे अनेक रुकावटें आयीं । चमकदार और स्वर्णिम इतिहास के उदाहरण के तौर पर 1857 और सम्पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन को याद रखिये जब उर्दू पत्रकारिता ने समाज के संघर्ष और भविष्य को एकरूपता प्रदान की थी। परन्तु भारत की पत्रकारिता तकनीकी तौर पर जिस प्रकार विकसित होती गयी, वह बाद के काल में उस तरह सामान्यतः नज़र नहीं आता । अतः नयी पीढ़ी को उर्दू पत्रकारिता के नए लक्ष्य निर्धारित करने होंगे। ज्ञान, बुद्धि, कौशल के साथ साथ पूर्व के पत्रकारों का हौसला भी उनमें आना चाहिए। ज्ञान के नए माध्यम का तक़ाज़ा है की सहकारिता का भाव और काम पूँजी पर एक दूसरे का समर्थन करते हुए इस पेशे की उपयोगिता और विशिष्टता को सुदृढ़ किया जा सकता है ।
बिहार उर्दू अकादमी के सभागार में बज़्मे सदफ इंटरनेशनल द्वारा आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में दैनिक इंक़लाब के स्थानीय संपादक श्री अहमद जावेद ने अपने बीज वक्तव्य में उक्त बातें कहीं । बज़्मे सदफ़ के निदेशक प्रोफेसर सफ़दर इमाम क़ादरी ने अपने आरंभिक सम्बोधन में संगोष्ठी की विशद पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए बताया कि भारतीय समाज के आधुनिकीकरण के पीछे भारतीय पत्रकारिता के विकास की शक्ति रही है। उन्होंने कहा की दो सौ वर्षों में इस भाषा ने एक ठोस पत्रकारीय सेवा की है । उर्दू के पत्रकारों ने गिरफ्तारियां दीं, सूली पर चढ़े मगर शब्दों की अहमियत से कभी समझौता नहीं किया। इसी कारण तकनीकी क्रांतिकारिता से पहले उर्दू पत्रकारिता का बहुत महत्त्व था । संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स, आर्ट्स एंड साइंस के प्रधानाचार्य प्रोफेसर तपन कुमार शांडिल्य ने कहा कि विश्व में पत्रकारिता जाग्रति और विकास के उद्देश्य से आगे बढ़ी जो भारत में क्रांति के उपादानों से शीर्ष तक पहुंची। उर्दू दैनिक हिंदुस्तान, मुंबई के संपादक श्री सरफ़राज़ आरज़ू ने कहा कि मैं इतिहास से ज़्यादा भविष्य की उर्दू पत्रकारिता के प्रति विचार करता रहता हूँ। उर्दू पत्रकारिता ने कभी भी अपने समाज से कोई ग़द्दारी नहीं की । प्रोफेसर जमशेद कमर (राँची) ने उर्दू पत्रकारिता के विभिन्न प्रमुख प्रस्थान बिंदुओं को रेखांकित करते हुए कहा कि इनमें एक सम्यक वैचारिकता और उद्देश्यों में एकरूपता है ।
बिहार लोक सेवा आयोग के सदस्य श्री इम्तियाज़ अहमद करीमी ने बताया कि उर्दू पत्रकारिता को उर्दू के छात्रों के लिए आवश्यक सामग्री का ज़्यादा से ज़्यादा प्रकाशन करना चाहिए। उन्होंने समाज में प्रतियोगी चेतना पैदा करने के लिए उर्दू के पत्रकारों को उत्साहित किया । उर्दू मीडिया फोरम के अध्यक्ष मौलाना सनाउल हुदा क़ासमी ने पत्रकारिता के तीन विशिष्ट मोड़ बताते हुए कहा कि जब सत्य की पक्षधरता पत्रकारिता का उद्देश्य होती थी तो वह श्रेष्ठ दौर था। दूसरा दौर निरपेक्षता का रहा मगर तीसरे दौर में बाज़ारवाद इतना हावी है कि यहाँ सब कुछ बिकता नज़र आता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता बिहार उर्दू अकादमी के सचिव श्री अज़ीमुल्लाह अंसारी ने की। उन्होंने उर्दू समाचार पत्रों को अपनी पाठकीयता बढ़ाने के लिए और अधिक श्रम करने का सन्देश दिया। भारतीय आयकर सेवा के उच्च पदाधिकारी श्री असलम हसन और क़तर से पधारे श्री वसीउल हक़ वसी ने इस अवसर पर अपने विचार प्रस्तुत किये। संगोष्ठी का संचालन प्रोफेसर सफ़दर इमाम क़ादरी ने किया और बज़्मे सदफ़ द्वारा प्रकाशित प्रोफेसर नाज़ क़ादरी और सफ़दर इमाम क़ादरी की तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया गया । शनिवार को संगोष्ठी के अकादमिक सत्र जारी रहेंगे जिनमें दिल्ली, लखनऊ, राँची के अतिरिक्त अनेक शहरों और विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध विशेषज्ञ अपने आलेख प्रस्तुत करेंगे । अध्यक्ष मंडल में देश के गणमान्य विद्वानों को शामिल किया गया है।