
मुंबई । दिल्ली हो या मुंबई आधुनिक भारतीय पत्रकारिता के महानायक और हिंदी न्यूज़ चैनल 'आजतक' के संस्थापक संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह यानी एस.पी सिंह को चाहने वाले और मानने वाले हर जगह है. एस.पी.सिंह स्मृति समारोह मुंबई में आयोजित किया गया तो यहाँ भी उनके चाहने वाले और साथ काम कर चुके पत्रकार पहुंचें. उनसे जुडी यादों को बांटा. उन्हें याद किया और भावुक भी हुए.
वरिष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव ने एस.पी सिंह को याद
करते हुए कहा कि उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि वे आने वाले कल को पहचानने की
कोशिश करते थे और उसी हिसाब से नए - नए प्रयोग करते थे. उनके टेलीविजन के
सफ़र पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि आजतक ने एस.पी को जो पहचान दी वह
अद्वितीय है. बुलेटिन के अंत में एस.पी कहते थे, यह थी खबरें आजतक, इंतज़ार
कीजिये कल तक और लोग इंतज़ार करते थे.
एस.पी. सिंह के ज़माने में आजतक के मुंबई ब्यूरो में
कार्यरत नीता कोल्हटकर ने एस.पी को याद करते हुए कहा कि अंग्रेजी माध्यम
से होते हुए भी वे मुझे आजतक में लेकर आये. लेकिन उन्होंने कहा कि पंडिताना
हिंदी को भूल जाओ. सरल, सहज और आम लोगों की भाषा का इस्तेमाल करो. एस.पी
की खासियत के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में लोगों
को क्या पसंद आनेवाला है, इसकी उन्हें बहुत अधिक समझ थी. वे व्यक्तिगत
चीजों को परे रखकर पत्रकारिता करते थे और बहुत दिल से बुलेटिन की एंकरिंग
करते थे.
सीएनबीसी-आवाज़ में कार्यरत आलोक जोशी ने एस.पी.सिंह
के साथ आजतक में बिताये लम्हों को याद करते हुए कहा कि एस.पी की पारखी नज़र
थी. उन्हें सब पता होता था कि क्या होने वाला है. लेकिन एक संपादक की तरह
वे डराते नहीं थे. समाज और पत्रकारिता के अलावा बिजनेस भी समझते थे. लेकिन
मैनेजमेंट का किसी तरह का दबाव पत्रकारों पर नहीं पड़ने देते थे. अपनी
इन्हीं खूबियों की वजह से वे इतने बड़े आयकॉन बने कि पत्रकारिता में बहुत
सारे लोग खींचे चले आये. 

आजतक के मुंबई ब्यूरो के प्रमुख साहिल जोशी ने कहा कि
एस.पी.सिंह के बुलेटिन को देखकर ही हम जैसे लोगों के अंदर यह ज़ज्बा पैदा
हुआ कि हम भी हिंदी के पत्रकार बन सकते हैं. एस.पी सिंह के बुलेटिन को
देखकर ही हम जैसे लोगों ने हिंदी सीखी. साहिल जोशी ने एक दिलचस्प किस्सा
बताते हुए कहा कि, ' मुझसे एक बार किसी दर्शक ने पूछा कि आप भी उसी चैनल
में काम करते हैं न , जिसमें दाढ़ी वाले पत्रकार खबरें पढ़ते हैं. यह 2004
की बात है. मुझे लगा कि शायद ये दीपक चौरसिया के बारे में बात कर रहे हैं.
लेकिन उस दर्शक ने कहा की नहीं, वो दूसरे दाढ़ी वाले, एस.पी सिंह.'
टीवी9 के इंटरटेनमेंट हेड पंकज शुक्ला ने कहा कि मैंने
एस.पी सिंह के साथ काम नहीं किया है. लेकिन कुछ बातें जैसे अखबार पढने की
आदतें उनसे सीखी है. दरअसल उनके न्यूज़ बुलेटिन से हिंदी का जबरदस्त
विस्तार हुआ.
एस .पी को याद करने के अलावा 'फिल्म पत्रकारिता या
पीआर पत्रकारिता' पर भी परिचर्चा हुई. इस परिचर्चा में सीनियर फिल्म
पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज, एनडीटीवी इंडिया के इकबाल परवेज, बॉलीवुड हंगामा
के फरदून और दो भोजपुरी फिल्मों के निर्माता कवि कुमार शामिल हुए. मंच
संचालन पुष्कर पुष्प और कवि कुमार ने किया.
स्वर्गीय एस.पी.सिंह की याद में यह सेमिनार मीडिया
खबर.कॉम और सेंटर फॉर सिविल इनीशियेटिव द्वारा मुंबई प्रेस क्लब में
शनिवार, 25 अगस्त को आयोजित किया गया था. इस मौके पर एबीपी न्यूज़ के
ब्यूरो प्रमुख जीतेन्द्र दीक्षित, नवभारत टाइम्स के भुवेंद्र त्यागी,
यशोभूमी के बी.एन.गिरी, युवा नेता ध्वनी शर्मा, एबीपी न्यूज़ के सुबोध
मिश्रा, फिल्म निर्देशक संजय
त्रिपाठी, सोनी टीवी के जीतेन्द्र सिंह, नवभारत की शीतल सिंह, अमर उजाला
के रवि प्रकाश और के.सी.कॉलेज के मीडिया विभाग के छात्र भी मौजूद थे.