यह सिलसिला जारी रहा तो छोटे अखबारों के पनवाड़ी पत्रकारों के बाद अब बड़े अखबारों के पत्रकारों पर भी हमले होंगे और हम खामोश तमाशबीन बने रहेंगे।
पलाश विश्वास / देशभर में पत्रकारों की सामत आयी हुई है। पत्रकार बिरादरी को अपने स्वजनों की परवाह कितनी है, उसका खुलासा करने की भी जरुरत नहीं है। पत्रकारों पर हमले का विरोध राजनीतिक मोर्चे से हो रहा है और पत्रकार खामोश है।
तो लीजिये, बंगाल में भी सबसे बड़े मीडिया ग्रुप एबीपी आनंद के जिला प्रतिनिधि पर बांकुड़ा में जानलेवा हमला हो गया। उनके शरीर के हर हिस्से पर धारदार हथियार से वार किये गये हैं। सत्ता दल के समर्थकों नें सत्ता के खिलाफ खबर करने पर उनकी यह गत बनायी है। वे किसी खास चेहरे को निशाना बनाये हुए नहीं थे। न आप उन्हें जिलों के छोटे पत्रकार बता सकते हैं।
अक्षय के बाद किसी बड़े ग्रुप के पत्रकार पर देश में यह हमला हुआ है।
स्थानीय चुनाव में विरोधियों को नामाकंन भरने से रोकने की कोशिश उसने अपने कैमरे के साथ नाकाम कर दी, तो दो दिनों बाद सत्ता समर्थकों ने उनकी यह दुर्गति कर दी। ऐसी एबीपी आनंद की खबर है।
मजे की बात तो यह है कि जिस ग्रुप के पत्रकार पर हमला हुआ, खबर वहीं तक सीमित है और बाकी माडिया में खबर लापता है।
हमारी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि प्रबल जनसमर्थन के बावजूद दीदी की पार्टी क्यों हिंसा का सहारा ले रही है और क्या उनके पास कोई परिपक्व राजनीतिक सलाहकार नहीं है। जमीन पर चूंकि किसी भी विपक्ष दल की कोई हरकत नहीं है,सिर्फ बयानबाजी और कोलकाता या जिला शहरों में प्रदर्शन के मार्फत दीदी का तख्ता पलटना फिलहाल नाममुकिन है तो दीदी को चाहिए कि लोकतांत्रिक प्रकिर्या जारी रहने दें ,जिससे उनकी साख मजबूत हो।
गौरतलब बात यह है कि दीदी के राजनीतिक तेवर वामपंथी हैं और साम्यवादी विचारों पर वे कहीं प्रहार भी नहीं कर रही है, वामदलों में भी उनका निशाना खासतौर पर माकपा पर है। हमारी समझ से बाहर है कि सत्ता दल के समर्थकों पर दीदी अंकुश क्यों नहीं लगा रही हैं। यह वैसी ही पहेली है जैसे पत्रकार बिरादरी की खामोशी है।
दिल्ली में जो प्रदर्शन पत्रकारों ने किया, उसमें बड़े ग्रपों की क्या कहें, छोटे अखबारों के पत्रकार भी कितने शामिल हुए,यह सिर्फ यशवंत बता सकते हैं क्योंकि तस्वीरों में जो चेहरे हैं, उनमें और किसी को हम पहचान न सके हैं। बहरहाल यह सिलसिला जारी रहा तो छोटे अखबारों के पनवाड़ी पत्रकारों के बाद अब बड़े अखबारों के पत्रकारों पर भी हमले होंगे और हम खामोश तमाशबीन बने रहेंगे।