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फ़ीस वृद्धि के विरोध में आईआईएमसी के पत्रकारों का आंदोलन

नई दिल्ली/ भारतीय जनसंचार संस्थान के छात्र फ़ीस वृद्धि का विरोध कर रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी), नई दिल्ली के छात्र ट्यूशन फीस, हॉस्टल और मेस चार्ज में बढ़ोत्तरी के खिलाफ कैंपस में 3 दिसंबर 2019 से हड़ताल कर रहे हैं.

आईआईएमसी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसायटी है. वर्ष 1965 में स्थापित, आईआईएमसी को देश का सर्वश्रेष्ठ मीडिया संस्थान माना जाता है. सरकारी संस्थान "नो प्रॉफिट नो लॉस" आधार पर चलने वाले हैं, जबकि आईआईएमसी में फीस साल दर साल बढ़ाई जा रही है. पिछले तीन सालों में ये फीस तकरीबन 50 फीसदी तक बढ़ा दी गई है.

अंग्रेज़ी पत्रकारिता की छात्रा आस्था सव्यसाची का कहना है कि, दस महीने के कोर्स के लिए 1,68,500 से अधिक फीस और हॉस्टल व मेस चार्ज अलग से देना पड़ता है. किसी भी मध्यम वर्गीय छात्र के लिए यह फीस दे पाना बहुत मुश्किल है. ऐसे में संस्थान में कई छात्र हैं, जिन्हें पहले सेमेस्टर के बाद पाठ्यक्रम छोड़ना होगा.

आईआईएमसी में वर्ष 2019-20 के लिए विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए फीस संरचना निम्नानुसार है:
1. रेडियो और टीवी पत्रकारिता: 1,68,500
2. विज्ञापन और पीआर: 1,31,500
3. हिंदी पत्रकारिता: 95,500
4. अंग्रेजी पत्रकारिता: 95,500
5. उर्दू पत्रकारिता: 55,500

इसके अलावा, लड़कियों के लिए लगभग हॉस्टल और मेस का शुल्क 6500 रु. और लड़कों से एक कमरे का चार्ज 5250रु. का शुल्क हर महीने लिया जाता है. आईआईएमसी को एक सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थान माना जाता है. साथ ही, प्रत्येक छात्र को छात्रावास नहीं दिया गया है.

आईआईएमसी में रेडियो और टीवी पत्रकारिता के छात्र हृषिकेश के अनुसार पिछले एक सप्ताह से हम संस्थान के साथ बातचीत के माध्यम से अपने मुद्दों के निवारण की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन संस्थान छात्रों को आश्वासन के सिवा कोई जवाब नहीं दे रहा है. हमने बातचीत के द्वारा इन मुद्दों को हल करने की पूरी कोशिश की, लेकिन प्रशासन के ढुलमुल रवैये के कारण हमारे पास विरोध प्रदर्शन ही केवल एकमात्र विकल्प बचा है.

सस्ती शिक्षा देश के प्रत्येक छात्र का अधिकार है और अगर वे अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा को पास करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं तो उनकी उम्मीदों को ध्यान में रखना होगा. हम मीडिया संस्थानों को केवल उन लोगों के लिए सुलभ होने की अनुमति नहीं दे सकते हैं जो लाखों का भुगतान कर सकते हैं. शिक्षा, एक अधिकार है और विशेषाधिकार नहीं है.

(रवीश कुमार के फेसबुक वाल से साभार )

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सम्पादक

डॉ. लीना