मुजफ्फरपुर / प्रभात खबर के प्रधान संपादक की आदत है कि वे नवसिखुए संपादको से काम चलाते है। लेकिन मुजफ्फरपुर के सम्पादकीय प्रभारी के मूर्खताभरे निर्णय से अखबार की भद्द पीट रही है। जैसे अपने डी. एन. ई. रॅंक के होते हुये इन्हे संपादकी मिल गयी वैसे ही इन्होने जिलो की कमान सौपनी शुरू कर दी।
पहला प्रयोग इन्होने दरभंगा मे किया। यूनिट को सबसे अधिक राजस्व देनेवाले जिला के प्रभारी को हटाकर यूनिट मॅनेजर को खुश करने के लिये उनके स्वजातीय रिपोर्टर को ब्यूरो-चीफ बना डाला। नतीजा यह है कि मात्र छहमाह यह जिला 40 लाख के नुकसान मे है। दूसरी ओर सम्पादकीय कौशल के अभाव मे संस्करण मे गलतियों की बाढ़ आ गई है। सर्क्युलेशन भी इतना गिर गया है कि अब प्रबंधन इसे बाहर का रास्ता दिखाने का मूड बना चुका है। और तो और इसके व्यवहार से आजिज सहयोगी हल्ला-हंगामा को छोड हाथापाई का रुख अपना सकते है। संपादकजी ने दूसरा प्रयोग बापू की कर्मस्थली चम्पारण (बेतिया) मे किया। इन्होने खाद व किरासन के कालाबाजारी मे गले तक डुबे पत्रकारिता के बिरवे को मोतिहारी से ढूंड निकाला और ले जाकर बेतिया मे स्थापित कर दिया। इस बिरवा ने मिट्टी में जड़े जमाना तो दूर वहाँ के रिपोर्टेरो की त्योरियाँ चढ़े देखकर ही अंकुरित होने का ख्याल मन से निकाल फेंका। इसबीच मोतिहारी मे कालाबाजारी और दलाली का धंधा भी मंदा पड़ने लगा। इसलिये ब्यूरोगिरी का पटा फेंका और मोतिहारी मे भास्कर का स्ट्रिंगेर हो गया। शैलेन्दर की तरह प्रमोदजी भी इस शातिर के झांसे मे आ गये। सम्पादकीय विभाग की घोर विफलता को देखते हुये प्रबंधन एक-दो हफ़्ते मे कड़े निर्णय ले सकता है।