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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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छोटे और मध्यम अखबारो के लिए कठिन समय

छोटे अखबारों को बचाने लिए हो सरकार की पॉलिसी

आज़ादी के 70 साल बाद अभी वर्तमान समय  में छोटे और मध्यम अखबारों के लिए सबसे कठिन समय है। सरकार की डीएवीपी पाॅलिसी 2016 और जीएसटी  के कारण 90 फीसदी अखबार बंद होने के कगार पर हैं, या फिर बंद हो रहे हैं। इसका  दूसरा बड़ा कारण कारण है बड़े अखबारों का लागत से 90 % कम पर अखबार बेचना या कहें कि एक तरह से फ्री में देना। आज अखबार के सिर्फ 01 पेज के कागज  का दाम 30 पैसे पड़ता है।  इस तरह 12 पेज के अखबार के  कागज  की कीमत 3.60 रुपये होती है।  इसके बाद प्रिंटिंग, सैलरी तथा अन्य खर्च कम से कम प्रति अखबार रु 2.40 आता है। कुल मिलाकर 6 रुपये होता है।इसके बाद हॉकर तथा एजेंट कमीशन, टांसपोर्टशन 50%, यानी 3 रुपये। टोटल 9 रुपये खर्च पर 01 पेज की लागत 75 पैसे आती है। इस प्रकार 20 पेज का अखबार का 15 रुपये होता है। जितना ज्यादा पेज उतना ज्यादा दाम होने चाहिए। तब छोटे औऱ मध्यम अखबार बिक सकते  हैं और तभी प्रसार बढ़ेगा, नही तो असम्भव है।

जैसे छोटे उद्योगों को बचाने लिए सरकार की पॉलिसी है, एन्टी डंपिंग डयूटी, विदेशी कंपनियों से यहां के उधोग धंधों को बचाने के लिए इम्पोर्ट ड्यूटी लगाया जाता है, उसी तरह लागत से कम पर अखबार नहीं बिके, मोनोपोली कमीशन भी इसमें सहयोग कर सकता है। जबतक ये नहीं होता है, तबतक कभी भी छोटे और मध्यम अखबार नहीं बिक सकेंगे,  क्योंकि इन्हें प्राइवेट विज्ञापन नहीं मिलता है। इसलिए लागत से कम बेचना सम्भव नहीं है । बड़े अखबारों का फर्जी प्रसार सबसे ज्यादा है। अखबार फ्री देकर प्रसार बढ़ाते हैं। सिर्फ इतना ही दाम रखते हैं कि हॉकर रद्दी में बेचे तो उसे नुकसान हो। बड़े अखबारो का ज्यादातर प्रसार बुकिंग के द्वारा होता है। घर की महिलाएं बुकिंग से मिलने वाले  गिफ्ट के लिए स्कीम  वाले अखबार खरीदती है। बुकिंग के बाद हर महीने हॉकर को जो कुछ राशि  देनी पड़ती है वो भी अखबार का रद्दी बेचकर निकल जाता है। इस तरह अखबार फ्री में मिलता है । सभी बड़े अखबारों के मालिक बड़े उद्योगपति हैं  या बड़े उद्योगपतियों ने इनके शेयर खरीद रखे हैं। उनके प्राइवेट विज्ञापन एक तरह से उनके ही अखबारो आते हैं  एक तरह से एक जेब से अपना पैसा दूसरे जेब में डालते हैं। सभी बड़े अखबार एक होकर छोटे और मध्यम अखबार को सरकार की नीतियों में  बदलाव करवा कर निबटाने में लगे हैं। इसी का नतीजा है नई डीएवीपी पाॅलिसी और जीएसटी । जो हालात लग रहा है 2018 नहीं तो 2019 तक 90% छोटे और मध्यम अखबार बंद हो जाएंगे। उसके बाद सिर्फ बड़े अखबार रहेंगे और सरकार के गुणगान में लगे रहेंगे। सभी सरकारी विज्ञापन भी उनकी झोली में जायेंगे और उसके मालिक लोग अपने उद्योगों की दलाली करते रहेंगे।  अगर इसमें सुधार नहीं होता है तो हो सकता है कि अमेरिका की तरह एक कोई बड़ा व्यापारी पूरा मीडिया पर कब्जा कर भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है। छोटे और मध्यम अखबार से जुड़े लोग सड़क पर आ जायेंगे। ऊपर से सरकार पेनाल्टी का केस डाल कर वसूली करने की तैयारी में है। 

हमें मिलकर सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर कर लागत से कम पर अखबार नही बिके इसके लिए दबाव बनाना होगा। जब पाकिस्तान में 20 रुपये में अखबार बिक सकता है तो भारत में क्यों नहीं। जब 15-20 या ज्यादा पेज के कारण ज्यादा दाम होगा तब दस लाख सर्कुलेशन दिखाने वाला अखबार एक लाख भी नही बिक पायेगा। 

दूसरी बात अगर सरकार सचमुच में छोटे और मध्यम अखबार को बचाना चाहती है तो 5000 कॉपी सर्कुलेशन तक के लिए कम से कम 25 रुपये डीएवीपी दर दे और इससे ज्यादा सर्कुलेशन के लिए आरएनआई चेकिंग का  नियम बना दे। हर 5000 सर्कुलेशन बढ़ने पर 10% दर बढ़े साथ ही बिग कैटेगरी के स्लैब की दर में कोई बदलाव नहीं हो,  क्योंकि बड़े अखबारो को प्राइवेट विज्ञापन बहुत मिलते हैं।

सरकार ये नियम भी बनाये कि जो भी व्यक्ति अखबार या कोई मीडिया हाऊस चलाता हो वो कोई धंधा नहीं करे या दूसरा बड़ा काम नहीं करे या छोटे छोटे धंधे जो पूर्व से संचालित है उसे 75 लाख टर्नओवर  की लिमिट कर दे । क्योंकि इससे कोई अखबार किसी का सपोर्ट या विरोध नहीं करेगा, उसका हित प्रभावित नहीं होगा।

जिस तरह से कोई जज जिस कोर्ट से रिटायर होता है उसे उस कोर्ट में वकील के रुप मे प्रैक्टिस करने की मनाही होती है

whatsapp मैसेज से साभार 

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सम्पादक

डॉ. लीना