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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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मेरा सवाल आपसे हैं, आपसे पूछ रहा हूँ

सोशल मीडिया रचनात्मक, अनौपचारिक और मौजमस्ती की जगह है , यहाँ नेताओं ने घुस कर विरोधियों को खोजना पहचानना शुरू कर दिया है । बचाइये इस सोशल मीडिया को..... 

ऑनलाइन गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ रवीश कुमार का पत्र उनके ब्लॉग कस्बा से 

दोस्तों,

मैं 2013 से इस बारे में लिख रहा हूँ । अपने टीवी शो में बोल रहा हूँ । इस प्रक्रिया को समझने का प्रयास करता रहता हूँ । मैंने सोचा था अब इस विषय पर नहीं लिखूँगा । आज आप सबके फोन आए तो लगा कि मैं अपनी बात फिर से रखूँ । मेरे ब्लाग क़स्बा की उतनी हैसियत नहीं है कि वो हर किसी के पास पहुँच जाए इसलिए हो सके तो आप मेरी बात आगे बढ़ा दीजियेगा । मैं अपनी बात का पर्चा छपवाऊँगा और आम लोगों में बाटूँगा । आप जानते हैं कि मैंने फेसबुक बंद कर दिया है । ट्वीटर पर लिखना बंद कर दिया है ।

मेरे कई दर्शकों ने सलाह दी कि आनलाइन गुंडागर्दी को दिल पर मत लीजिये । यह सब चलता रहता है । यह आपके सेलिब्रेटी होने की क़ीमत है । मैं सेलिब्रिटी नहीं हूँ और हूँ भी तो यह कब तय हो गया कि मुझे अनाप शनाप गाली खाली खानी पड़ेगी । मेरे परिवार और बच्चों तक को गाली दी जाएगी । मुझे क्यों गालियाँ और अनाप-शनाप आरोप बर्दाश्त करने चाहिए ? जब मैं कमज़ोर लोगों की तकलीफ़ बर्दाश्त नहीं कर सकता, तो अपने साथ हो रही इस नाइंसाफी को क्यों बर्दाश्त करूँ । मुझे लगता है कि इस आनलाइन गुंडाराज के ख़िलाफ़ मुझे भी बोलना चाहिए और आपको भी । पूरी दुनिया में ऑनलाइन बुली यानी गुंडागर्दी के ख़िलाफ़ कुछ न कुछ हो रहा है, भारत में क्यों चुप्पी है ?

मुझे पता है कि इसका निशाना राजनेताओं और प्रवक्ताओं को भी बनना पड़ता है । प्रवक्ताओं ने इसे क्यों मंज़ूरी दी है ?  पत्रकारों को ख़ासकर कई महिला पत्रकारों को गालियाँ दी गईं । ये कौन सा समाज है जो गालियों के गुंडाराज को स्वीकार कर रहा है । बीते दौर की गुंडागर्दी और इस गुंडागर्दी में क्या अंतर है ? मुझे इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि कौन शिकार हो रहा है ?  सोशल मीडिया में आए दिन किसी का भी चरित्र हनन हो रहा है ? कहीं से कोई कुछ भी बोल दे रहा है । वो क्या यूं ही हो जाता है । क्या यह संगठित काम नहीं है ।

आनलाइन गुंडाराज राजनीतिक संस्कृति की देन है । अब यह तमाम दलों की रणनीति का हिस्सा हो गया है लेकिन अफवाह फैलाना और बिना किसी तथ्य के किसी को बदनाम करना ये कब से मान्य हो गया । एक बात समझ लीजिये इस गुंडाराज को बढ़ावा देने में भले ही कई दल शामिल हैं और दलों के बनाए हुए असंख्य संगठन यह काम कर रहे हैं लेकिन मामला बराबरी का नहीं है । इसमें गुंडई उसकी चल रही है जिसकी ताकत ज्यादा है और जिसकी सत्ता पर पकड़ है । यह सारा मामला संसाधनों का है ।

यह एक भयावह संस्कृति पसरती जा रही है और जिसे मोटी चमड़ी वाला मध्यमवर्ग, जिसकी सत्ता से साँठ गाँठ है , सहन कर रहा है और दूसरों को सहने की सलाह देता है । इस खेल ने सत्ता का काम आसान कर दिया है । इस ग्लोबल जगत में सरकार पर आँच न आए इसलिए गुमनाम संगठन या दलों के आनलाइन मीडिया सेल के इशारे पर यह काम हो रहा है । ऐसे पेश किया जाता है जैसे समाज शामिल है । किसी के पक्ष और विपक्ष में ट्रेंड कराना भी राजनीतिक गुंडई है ।

लिखने बोलने वाले लोग और कई लड़कियाँ शिकायत करती हैं कि वो गालियों के डर से नहीं लिखतीं । कई लोग डरने लगे हैं । लड़कियों को यह समझ लेना चाहिए कि ऐसी भाषा और प्रतीकों के दम पर मर्द उन्हें इस जगह से भी बेदख़ल कर देना चाहते हैं । अगर ये जारी रहा तो मेरी दोस्तों आप जिस पद पर जितनी बार पहली महिला बन जाओ लेकिन इस बेदख़ली से आपको वहीं पहुँचा दिया जाएगा जहाँ से आप चली थीं । सोशल मीडिया रचनात्मक, अनौपचारिक और मौजमस्ती की जगह है , यहाँ नेताओं ने घुस कर विरोधियों को खोजना पहचानना शुरू कर दिया है । बचाइये इस सोशल मीडिया को ।

लोकतंत्र के नाम पर सोशल मीडिया के पब्लिक स्पेस में माँ बहन की गालियाँ दी जा रही हैं । इन नेताओं ने ऐसा क्या कर दिया है कि सब चुप हैं ।गली मोहल्लों के गुंडों से परेशान लड़कियाँ और महिलाएँ जो इस मुल्क का भविष्य हैं, आनलाइन गुंडागर्दी क्यों सहन कर रही हैं ?  क्या हमारे नौजवान लड़के अपने आस -पास पनप रही ऐसी संस्कृति के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलेंगे ? वे क्यों चुप हैं ? जो कमज़ोर है उसके लिए इस संस्कृति में कहाँ जगह बचेगी ?

यह एक रणनीति है । तर्क या तथ्य की गुज़ाइश खतम कर दो और धारणा बनाओ, बदनाम करो । प्रचार और प्रोपेगैंडा से धारणा बना दो । हम एक ऐसी जानलेवा भीड़ को मान्यता दे रहे हैं जिसकी चपेट में बारी बारी से सब आने वाले हैं । आप इसके ख़तरों को समझना चाहते हैं तो अमरीका की मोनिका लेविंस्की के अनुभव को इंटरनेट से निकाल कर पढ़ लीजिएगा । आनलाइन बुली कुछ और नहीं सिर्फ गुंडाराज है । क्या हम जवाबदेही से बहस का माहौल नहीं बना सकते ।

मीडिया में समस्या है । वो समस्या व्यक्ति की है और संस्था की भी । आप व्यक्ति को गाली देकर संस्था के सवाल को नकार नहीं सकते । उन सवाले के जवाब पत्रकार के पास नहीं हैं । वो कब तक देता रहेगा । लोग फिर क्यों उस कारोपोरेट के ख़िलाफ़ चुप रहते हैं जिनके हाथ में मीडिया है और जो नेता के साथ बैठकर विकास बन जाता है और उसके मीडिया में काम करने वाला पत्रकार दलाल हो गया ? ये किस तराज़ू पर तौल रहे हो भाई । तंत्र देखो, व्यक्ति नहीं ।

मैंने पहले भी कहा है कि इस सवाल पर खुल कर बहस हो । वे कौन से पत्रकार हैं जो राज्य सभा और विधान परिषद के सदस्य बने और अख़बार और चैनल भी चलाते हैं ? वे कौन से पत्रकार हैं जो दो दलों में शामिल होने के बीच भी संपादक बन जाते हैं ? ये कैसे स्वीकृत हो जाते हैं ? मीडिया पर राजनीतिक नियंत्रण आपके लिए मुद्दा क्यों नहीं है ? ऐसे लोगों के साथ तो नेता मंत्री खूब नज़र आते हैं तब ये गाली देने वाले गुंडे किधर देख रहे होते हैं । पार्टियाँ बतायें कि उनके भीतर कितने पत्रकार शामिल हैं ? पत्रकारिता में संकट है तो उसके लिए दो चार को गाली देने से क्या होगा ।

मेरे काम का भी हिसाब कीजिये । निकालिये मेरी एक एक रिपोर्टिंग और उसकी आडिट कीजिए । मैं नालियों और गलियों के किनारे कांग्रेस या बीजेपी के फ़ायदे नुक़सान के लिए नहीं गया । लोगों के लिए गया । चैनल चैनल बदलकर अपने होने की क़ीमत नहीं वसूली । काम ही किया । जितना कर सकता था किया । मुझे सफाई नहीं देनी है । मुझे आपका पक्ष जानना है ?

मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जिससे कोई यह लिखे कि वो मेरी लाद फाड़ देना चाहता है । मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है कि मैं गाली सुनूँ और आप या समाज सुनने सहने की सलाह दें । आप उनसे लड़िये जो गुंडाराज की सेना तैयार कर रहे हैं । मेरे बारे में अनगिनत अफ़वाहें फैलाई गईं हैं । आप मेरी नहीं अपनी चिन्ता करें क्योंकि अब बारी आपकी है । आप सरकारों का हिसाब कीजिये कि आपके राज में बोलने की कितनी आज़ादी है और प्रेस भांड जैसा क्यों हो गया है ?

यह मज़ाक़ का मसला नहीं है । मैं जानना चाहता हूँ कि समाज का पक्ष क्या है ? मैं आम लोगों से पूछने जा रहा हूँ कि आप इसके ख़िलाफ़ बोलेंगे या नहीं ? आप मीडिया के आज़ाद स्पेस के लिए बोलेंगे या नहीं ? आप किसी पत्रकार के लिए आगे आएँगे या नहीं ? अगर नहीं तो मैं युवा पत्रकारों से अपील करता हूँ कि वे इस समाज के लिए आवाज़ उठाना छोड़ दें । यह समाज उस भीड़ से मिल गया है । यह किसी भी दिन आपकी बदनामी से लेकर हत्या में शामिल हो सकता है ? पत्रकारों ने हर क़ीमत पर समाज के लिए लड़ाई लड़ी है, बहुत कमियाँ रही हैं और बहुतों ने इसकी क़ीमत भी वसूली लेकिन मैं देखना चाहता हूँ कि समाज आगे आता है या नहीं ।

अरविंद केजरीवाल जब दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे तब मैंने खुलेआम दर्शकों से एक बात कही थी । आज के बाद से आप नागरिक बन जाइये । अब आप मतदाता नहीं है । अपनी चुनी हुई सरकार को लेकर सख्त हो जाइये । तटस्थ हो जाइये और किसी का फैन मत बनिये । क्योंकि फैन लोकतंत्र का नया गुंडा है जो विरोध और असहमति की आवाज़ को दबाने के खेल में साझीदार बनता है ।

आपका

रवीश कुमार

 

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सम्पादक

डॉ. लीना