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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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बिहार की पहली एरर फ्री पत्रिका !

“वीरेंद्र यादव न्यूज” के संपादकीय टीम का दावा है कि पत्रिका में कोई भाषागत गलती नहीं

'वीरेंद्र यादव न्यूज ' का फरवरी, 16 अंक तैयार हो गया है और उसे प्रिंट के लिए भेज दिया है। पत्रिका का फरवरी अंक एकदम error free है। संपादकीय टीम का दावा है कि पत्रिका में कोई भी भाषागत गलती नहीं है। इसके संपादक वीरेंद्र यादव कहते है कि दरअसल, error free होने का जबरदस्त क्रेज अखबारों में होता है, लेकिन अखबार कभी error free नहीं होता है। जब हम 'हिन्दुस्तान' में दुकानदारी कर रहे थे, तब एक कंपनी ने error free का ठेका लिया था। नाम था सिक्स सिग्मा। इसका मायने हमें उस दिन भी समझ में नहीं आया था और आज तक नहीं समझ पाए हैं। उस समय हिन्दुस्तान में एक 'बाबू साहेब' हुआ करते थे, नाम भूल रहे हैं। जबरदस्त कलरफुल आदमी थे। जब तक अखबार का पांच पन्ना रंग नहीं लें, उन्हें चैन नहीं आती थी। फिर वही पन्ना सिक्स सिग्मा को सौंप देते थे। उस पन्ना का इस्तेमाल क्या था, उसका कभी खुलासा नहीं हुआ। बाद में उस 'बाबू साहेब' से पाला प्रभात खबर, पटना में भी पड़ा। वहां भी उनके 'कलरनेश' से पेज बनाने वाले हताहत रहते थे।

अखबार की अपनी दुकानदारी है। संपादक नामधारी प्राणी कभी कुछ नहीं लिखता। कभी कभार लिख दिया तो पाठकों का अहोभाग्य। कुछ लोगों का मानना है कि प्रिंट लाइन तो पाठक पढ़ता नहीं है। इसलिए पाठकों को संपादक होने का अहसास कराने के लिए लिखना पड़ता है। कुछ अखबारों के मालिक ही मातहतों से लिखवाकर अपना नाम पेस्ट कर देते हैं। और हमने तो अपने नाम पर ही अखबार खोल लिया, ताकि पाठक नाम ही रट जाएं। खैर।

हम error free की बात कर रहे थे। इस बार हम भी error free के लिए सीरियस हो गए थे। सो सोचा कि इस अंक में भाषागत गलती नहीं होनी चाहिए। हमने पूरी कोशिश की कि भाषा के स्तर पर कोई अंगुली नहीं उठाए। अखबार में बैठ कर अखबारों की व्यस्तता को करीब से देखा है, झेला है। आगे भी झेलने की संभावना से इंकार नहीं कर सकते हैं। अखबारों में गलतियों के लिए आप दूसरे को जिम्मेवार ठहरा सकते हैं, लेकिन सोशल मीडिया के मंच पर आपके पास इसका विकल्प नहीं होता है। गलती है तो जिम्मेवार खुद। सोशल मीडिया प्रिंट से ज्यादा फास्ट है। हमारे लिए तो सोशल मीडिया ही अभिव्यक्ति का माध्यम है। वैसी स्थिति में भाषा के स्तर पर कोई भी चूक को पाठक स्वीकार करने को तैयार नहीं होते हैं। शायद यही कारण है कि हम फरवरी अंक को error free होने का दावा कर रहे हैं। फिर भी, गलतियों की गुंजाइश बनी रहेगी।

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना