Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बने कानून

कोटा / पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर अलग से कानून बनाए जाने की मांग अब और तेज हो गई है। नए कानून बनाए जाने का समर्थन नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने भी किया है। हाल ही में दिल्ली में एनयूजे की कोटा में संपन्न हुई द्विवार्षिक आमसभा की बैठक में केंद्र सरकार से मांग की गई है कि पत्रकारों की सुरक्षा से जुड़ा कानून जल्द लागू किया जाए। दरअसल यदि पत्रकार सुरक्षा कानून लागू होने से उन पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी, जो जीवन को खतरे में डालकर पत्रकारिता कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों, माफिया, नेताओं और अपराधिक तत्वों को उजागर करने वाले पत्रकारों के लिए सुरक्षा आवश्यक है।

एनयूजे के नवनिर्वाचित अध्यक्ष रास बिहारी ने देशभर के पत्रकारों से कहा कि वे अपने-अपने राज्यों में सरकारों पर पत्रकार सुरक्षा कानून बनाने के लिए मांग करें। उन्होंने विश्वास दिलाया कि केन्द्र सरकार से इस विषय पर चर्चा की जा रही है और पत्रकारों की सुरक्षा से कोई समझौता नही किया जाएगा।

कोटा में आयोजित अधिवेशन में देशभर से आए एक हजार से ज्यादा पत्रकारों ने अपने प्रस्तावों में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में पत्रकारों की हुई मौत की कड़ी निंदा की। रास बिहारी ने कहा कि मीडिया में घोटाले उजागर होने के बाद अखबारों के दफ्तरों पर हमला हो रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में तो पुलिस खुद पत्रकार की हत्या में लिप्त पाई गई। पत्रकार के जीवन पर छाये हर पल खतरे को देखते हुए एक विशिष्ट कानून की जरूरत है जिससे कानून और व्यवस्था से जुड़े अधिकारी डर के बिना अपनी जिम्मेदारी निभा सकें।

बैठक में देश में मीडिया की वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने के लिए मीडिया आयोग के गठन की मांग की गई। 1978 में गठित द्वितीय प्रेस आयोग के बाद से मीडिया में बहुत बदलाव आया है। टीवी न्यूज चैनलों, ऑनलाइन मीडिया, मोबाइल फोन आदि ने पूरी तरह से देश में मीडिया का परिदृश्य बदल दिया है। मीडिया और पत्रकारों के सामने आज जो चुनौतियां है वह बहुत बदल गई हैं। आधिकारिक तौर पर वास्तविक स्थिति को समझने के लिए अभी तक किसी प्रकार का अध्ययन नहीं किया गया है।

वहीं एनयूजे के महासचिव रतन दीक्षित ने कहा कि इस समय देश मीडिया काउंसिल के गठन की जरूरत महसूस की जा रही है। भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) मीडिया से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए अप्रभावी साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि पीसीआई मीडिया की बदलती जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रही है यह एक दंतहीन बाघ की तरह है। देश की तत्काल चुनौतियों और बदलते मीडिया के लिये एक शक्तिशाली मीडिया काउंसिल की जरूरत है।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना