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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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क्या अख़बारों ने ज्यूरी बना रखी है?

लीना/ आज कौन है शहर के ढेर सारे कैम्पसों/ कालेजों में से कोई एक कैम्पस क्वीन ? कौन आज सबसे खूबसूरत दिख रहा है, उसने आज क्या पहन रखा है, उसकी पसंद क्या है, पश्चिमी या पारंपरिक पहनावा, क्या उसको खुद जंचता है, क्या हेयर स्टाइल है, क्या माता- पिता का नाम ? यकीन मानिए यह रोजाना बताते हैं पटना शहर के अख़बार।

तो क्या आज के दिन शहर भर के कई कालेजों में से सबसे खूबसूरत और स्मार्ट लड़की कौन है- यह तय करने के लिए और उससे भी पहले, इन सबका पता लगाने के लिए क्या अख़बारों ने कोई ज्यूरी मंडल बना रखी है? और क्या इन सबकी तलाश के लिए फोटोग्राफरों की खास टीम भी? क्वीन तय करने का उनका पैमाना क्या है? और शहर की बाँकी कालेज की ढेरों छात्राओं को कैम्पस क्वीन नहीं बनाए जाने का भी पैमाना क्या है? क्या शेष लड़कियों को अपमानित करने का उनको यह अधिकार बनता है ? गौरतलब है- कहीं भी उनकी किसी खास उपलब्धि की चर्चा नहीं है, केवल खूबसूरती और पहनावे की चर्चा है। आखिर किसी के व्यक्तिगत प्रचार के पीछे अख़बारों की मंशा क्या है ?

या कि रोज अख़बार में किसी लड़की का बायो-डाटा और तस्वीर छाप कर, ये  अख़बार बार-बार महिलाओं को सिर्फ दिखावटी और नुमाइश की वस्तु मानने की अपनी घटिया सोच को ही दर्शाते हैं।

 

 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना