भागलपुर/ भाषा का सवाल राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ा है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय अस्मिता के प्र्रवल पक्षधर थे। राष्ट्रभाषा के संदर्भ में अपनी पुस्तक ‘ हिन्द स्वराज’ में 1909 में ही अपना नजरिया स्पष्ट कर दिया था-‘‘ सारे भारत के लिये जो भाषा चाहिए, वह तो हिन्दी ही होगी। भारत की भाषा अंग्रे…
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हिन्दी के लिये रुदन
मनोज कुमार / हिन्दी के प्रति निष्ठा जताने वालों के लिये हर साल सितम्बर की 14 तारीख रुदन का दिन होता है। इस एक दिनी विलाप के लिये वे पूरे वर्ष भीतर ही भीतर तैयारी करते हैं लेकिन अनुभव हुआ है कि सालाना तैयारी हिन्दी में न होकर लगभग घृणा की जाने वाली भाषा अंग्रेजी में होती है। हिन्दी …
बचना - बढ़ना हिंदी का ....!!
तारकेश कुमार ओझा / मेरे छोटे से शहर में जब पहली बार माल खुला , तो शहरवासियों के लिए यह किसी अजूबे से कम नहीं था। क्योंकि यहां सब कुछ अप्रत्याशित औऱ अकल्पनीय था। इसमें पहुंचने पर लोगों को किसी सपनीली दुनिया में चले जाने का भान होता। बड़ी - बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्…
क्या वाकई हिंदी के अच्छे दिन आ गये!
निर्भय कुमार कर्ण / भाषा संप्रेषण का माध्यम है जिसके जरिए हम अपनी बात/विचार दूसरों तक पहुंचाते हैं और सभी भाषाओं में हिंदी भाषा भारत के लिए अहम माना जाता है। यही वजह है कि 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था और इसी परिप्र…
हिंदी को हृदय और पेट की भाषा बनाने की जरुरत है : मृदुला सिन्हा
वैश्विक हिंदी सम्मेलन-2014 में हुआ देश-विदेश के साहित्यकारों, राजभाषाकर्मियों और हिंदी सेवियों का जमावड़ा
सभी भारतीय भाषाएं आपस…