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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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बोली पर ब्रेक...!!

यदि सचमुच नेताओं की जुबान पर स्पीड ब्रेकर या ब्रेक लग गया तो कैसे चलेगा चैनलों का चकल्लस

तारकेश कुमार ओझा/ चैनलों पर चल रही खबर सचमुच शाकिंग यानी निराश करने वाली थी। राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मातहतों को आगाह कर दिया था कि गैर जिम्मेदाराना बयान दिए बच्चू तो कड़ी कार्रवाई झेलने को तैयार रहो। मैं सोच में पड़ गया। यदि सचमुच नेताओं की जुबान पर स्पीड ब्रेकर या ब्रेक लग गया तो ...। कैसे चलेगा चैनलों का चकल्लस। यह बताते हुए भी अमुक नेता ने फिर गैर जिम्मेदाराना या विवादित बयान दिया.... बार - बार उसी बयान का दोहराव। साथ में कुछ इधर तो कुछ उधर के कथित बुद्धजीवियों का जमावड़ा। ... तो अमुक जी ... क्या कहेंगे आप इस पर...। विरोधी पक्ष के लोग इसकी आड़ में घंटों बयानवीर नेता की लानत - मलानत कर रहेंगे, वहीं नेताजी के खेमे के लोग बचाव की  मुद्रा में जवाब देंगे... देखिए आप बात के मर्म को देखें... निश्चित रूप से फलां की बात का मतलब यह  नहीं रहा होगा... आप लोग इसके आशय को समझना ही नहीं चाहते। फिर एक ब्रेक ... फिर वही बहस।

इस देश में बड़ी मुश्किल है कि एक क्रिकेट खिलाड़ी खेलता रहता है तो उसे कोई नहीं कहता कि आप खेलना छोड़ दो। कोई अभिनय करता है तो उसे भी कोई नहीं रोकता - टोकता। लेकिन सब बेचारे नेताओं के पीछे पड़े रहते हैं। कोई भी यह नहीं सोचता कि जिस तरह एक खिलाड़ी का काम खेलना और अभिनेता का अभिनय करना है बिल्कुल उसी तरह नेताओं का काम किसी न किसी प्रसंग पर बात - बेबात बोलते रहना है। मेरे शहर में मौन की महत्ता पर एक सेमिनार का आयोजन हुआ। भनक लगते ही एक नेताजी मेरे पीछे हो लिए और पहुंच गए सेमिनार में। उन्हें बहुत समझाया ... कि यह कार्यक्रम मौन यानी चुप रहने के महत्व पर आधारित है। यहां आप भाषण नहीं दे सकते...। लेकिन वे नहीं माने। ... दो शब्द बोलने की संचालकों से विनम्र अपील के साथ उन्होंने हाथ में माइक पकड़ा तो मौन की महत्ता पर पूरे एक घंटे तक बोलते ही रहे। अभी कुछ दिन पहले एक माननीय ने महिलाओं की सुंदरता पर प्रकाश डाला तो बवाल मच गया। खूब लानत - मलानत हुई। इसे लेकर उठा बवंडर थमा भी नहीं था कि दूसरे माननीय ने विरोधी दल की शीर्ष नेत्री बनाम नाइजीरियाई महिला की तुलना प्रस्तुत कर अच्छी - खासी सुर्खियां बटोरी। अब यह तो तय बात है कि अदमी वही बोलेगा जो उसके मन में होगा। चाहे वो नेता हो या किसी दूसरे क्षेत्र का आदमी।

एक महात्माजी अक्सर लाव - लश्कर के साथ मेरे शहर में डेरा डाल देते थे। अपने प्रवचन कार्यक्रमों में वे दूसरे वक्ताओं को फिलर की तरह इस्तेमाल करते थे। ताकि पूरा फोकस उन पर रहे। कुछ इधर - उधर की के बाद उनके प्रवचन का सार यही होता था कि रंगीन तबियत का होकर भी आदमी चरित्रवान बने रह सकता है। वे दलील देते थे कि भगवान श्रीकृष्ण ने सैकड़ों गोपियों के साथ रासलीला रचाई ... कहां पथभ्रष्ट हुए... फलां भगवान की दो पत्नियां थी... कहां पथ भ्रष्ट हुए... फलां की इतनी ... कहां ...। बार - बार उनके इस आशय के प्रवचन से परेशान होकर उनके शार्गिदों और अनुयायियों दोनों की संख्या में तेजी से गिरावट आई और उनका शहर आना भी कम होता गया। नेताओं के विवादास्पद बयान के मामले में एक बात कॉमन होती जा रही है कि हाईकमान की ओर से लगातार चेतावनियों के बावजूद उनका कुछ बिगड़ता तो कतई नहीं , बल्कि ऐसे बयान देकर राजनेता पलक झपकते ही सेलेब्रेटियों में शामिल हो जाते हैं। 90 के दशक के राममंदिर बनाम बाबरी मस्जिद आंदोलन के दौरान कई राजनेता महज विवादास्पद बयान देकर करियर के शिखर तक पहुंच गए। कुछ ऐेसा ही नजारा मंडल आंदोलन के दौरान भी देखने में आया।  कुछ माननीय तो ऐसे हैं जो बेचारे सामान्य परिस्थितियों में गुम से रहते हैं। उनके अस्तित्व का भान तभी हो पाता है जब वे कुछ उटपटांग बोल बैठते हैं। इसलिए माननीयों के बोल बच्चन पर ब्रेक लगाने की किसी को सौचनी भी नहीं चाहिए। 

लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और दैनिक जागरण से जुड़े हैं। 

तारकेश कुमार ओझा, भगवानपुर, जनता विद्यालय के पास वार्ड नंबरः09 (नया) खड़गपुर ( प शिचम बंगाल) पिन ः721301 जिला प शिचम मेदिनीपुर संपर्कः 09434453934 

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सम्पादक

डॉ. लीना