मनोज कुमार/
दर्जनों डिग्री लेकर जब मैं बेरोजगार बना, सम्पादक की मेहरबानी से बिन तनख्वाह पत्रकार बना।
जेब में कैमरा, गाड़ी में PRESS लिखा, मैं थोड़ा बना ठना। मुहल्ले की खबर छपी तो लिखित पत्रकार बना ।
खबर छाप कर सबका दुश्मन, एक का वफादार बना । शायद सभी का यही हाल हो जो भी पत्रकार बना।
एक घटना का शिकार हुआ तो पहली बार लाचार हुआ। जिम्मेदार लोग कहे तू तो बड़का पत्रकार बना।
थाना, कचेहरी एक कर मैं खबरों का सरदार बना, बिन पेट्रोल गाड़ी, जेब हुई खाली, जब से मैं पत्रकार बना।
सबके सामने सम्मान हुआ, पीठ पीछे अपमान हुआ, फिर भी मैं पत्रकार बना ।
मोबाइल, फोन पर बुलावा सुन- सुनकर जीना मेरा दुशवार बना। रात की खबर कवरेज कर दिन रात का मैं पत्रकार बना ।
नेता की प्रेस कान्फ्रेन्स मे जाकर मैं थोड़ा समझदार बना । नेता से जेब खर्च ऩ लेकर मैं वसूलों वाला पत्रकार बना ।
हर पर्व भिखारी जैसे विज्ञापन माँगू, मैं कैसा पत्रकार बना ।
विज्ञापन में कमीशन की झिकझिक हुई तो अखबार से निकलना पड़ा ।
अब तो माँ-बाप भी पूछे तू कैसा पत्रकार बना ।।