Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

न आलू न गोभी, हम सब हैं यार ‘धोबी’

क्या वर्ल्ड वाइड वेब पोर्टल दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई से ही ऑपरेट करने पर लेखक/रिपोर्टर्स विश्वस्तरीय हो सकते हैं ?

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी / एक कहावत है कि कहने पर ‘धोबी’ गधे पर नहीं बैठता। यह कितनी प्रासंगिक है जिसे मै अब अच्छी तरह महसूस करने लगा हूँ। वर्षों पूर्व एक साप्ताहिक समाचार-पत्र का प्रकाशन करता था, कतिपय कारणों से उसे बन्द करना पड़ा। जब उक्त का नियमित प्रकाशन हो रहा था- तब पत्रकार/लेखक कहलाने का शौक रखने वालों से कहता था कि कुछ लिखो, लेकिन उनके हाथों की उंगलियों में लकवा मार जाता था, साथ ही वह तथाकथित लोग मुझसे भेंट-मुलाकात करने से भी कतराने लगते थे। 
अब जब से वेब पोर्टल रेनबोन्यूज का प्रकाशन शुरू किया है तब से काफी दिक्कतें पेश आने लगी हैं। जब किसी कथित लेखक रचनाकार/पत्रकार को बजरिए एस.एम.एस. सादर उनके आलेखों के लिए आमंत्रित करता हूँ तब उन्हें पता नहीं क्या हो जाता है वह लोग (महिला-पुरूष) चुप्पी साध लेते हैं। हाँ कुछ एक काल करके पूंछते हैं कि कहाँ से ऑपरेट कर रहे हो- मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि इन्टरनेट के इस युग में कोई भी वेब मीडिया/पोर्टल का संचालन गाँव से लेकर मेट्रो सिटीज में कर सकता है, तब इस तरह का प्रश्न क्यों...?

क्या वर्ल्ड वाइड वेब पोर्टल दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई से ही ऑपरेट करने पर लेखक/रिपोर्टर्स विश्वस्तरीय हो सकते हैं। प्रिण्ट मीडिया की बात अलग है फिर भी इस हाइटेक युग में अब स्थान विशेष का महत्व ही समाप्त सा हो गया है। पोर्टल और प्रिण्ट में पठनीय आलेख, संवाद हो तो उसे पाठक/विजिटर्स जरूर लाइक करते हैं। 

कई भाई/बहनों ने पूँछा कि यदि वह लोग हमारे पोर्टल को ज्वाइन करेंगे तो कितना मिलेगा? क्या जवाब दूँ। मैं तो कहता हूँ कि यह आप जैसों के लिए एक बढ़िया मंच हैं जिसमें छपकर आप की मकबूलियत में इजाफा ही होगा। हाँ विज्ञापन आदि दोगे तो आधा आप का आधा पोर्टल संचालन में होने वाले व्यय के लिए। इस तरह का उत्तर पाने के उपरान्त उन लोगों जो सम्भवतः बेरोजगार और आर्थिक तंगी में हैं, ने चुप्पीमार लिया। 

मुझे तो बेरोजगार पत्रकार/लेखकों के प्रति हमदर्दी है, लेकिन उनके बारे में क्या कहूँ जो अपने को बहुत बड़ा/सीनियर/वर्ल्ड क्लास लेखक मान बैठे हैं। वेब मीडिया में ऐरे-गैरे नत्थू खैरे भी स्थान पा जाते हैं, ऐसा होने पर उन्हें यह गलतफहमी हो जाती है कि वे बहुत बड़े धोबी हैं। तो सुनिए और पढ़ लीजिए कि इस तरह की सोच आप की अपनी उपज है। वेब मीडिया (पोर्टल) आप जैसों को एकाध बार ‘हाई लाइट’ करता है, तदुपरान्त जब आप बड़ा धोबी होने की गलतफहमी का शिकार बन जाते हैं, तब ‘किक’ भी कर देता है। बहरहाल! आप कलम-कागज के साथ बड़ा धोबी बने बैठे हैं और वेब पोर्टल वाले तो आप से भी बड़ा धोबी हैं।

 तात्पर्य यह कि- न तुम हो यार आलू न हम हैं यार गोभी। तुम भी हो यार धोबी और हम भी हैं यार धोबी। यह ‘दस नम्बरी’ फिल्म का बड़ा ही कर्णप्रिय गाना है जिसे मनोज कुमार (भारत कुमार) पर फिल्माया गया है। मुझे अधिक गहराई में नहीं जाना है। बस इतना समझो कि बड़ा धोबी होने की गलतफहमी से बाज आओ। अंग्रेजी में कहावत है- खैर छोड़ो लिखकर तुम्हारे जैसे कम अक्ल धोबियों को समझाने से बेहतर है कि नसीहत ही न दी जाए। बने रहो अकड़ू खाँ और तथा कथित बड़ा ‘धोबी’ बनकर किसी के कहने पर अपने गधे की पीठ पर मत बैठना वर्ना उपरोक्त कहावत की रलिवेन्सी ही बेमानी होकर रह जाएगी। बेहतर होगा कि उक्त कहावत की प्रासंगिकता को ‘कायम’ रखो। 

हाँ तो मैं बड़े धोबियों को बता दूँ कि मुझे चार दशक से ऊपर का अर्सा हो गया कलम घिसते, मैं भी तो अपने को सीनियर धोबी मानकर गलतफहमी पाल सकता हूँ। कई बोरे अप्रकाशित आलेख दीमकों का निवाला बन चुके हैं, कभीं शिकायत नहीं किया। न सम्पादक/प्रकाशक से और न ही आपने आप से। काम था करता रहा कलम घिसता रहा, जिसको पसन्द आया उसने अपने प्रकाशन में स्थान दिया, जिसने नहीं दिया, उससे सीख मिली कि कहीं न कहीं लेखन स्तर में सुधार आवश्यक है। सुधार करके लिखने लगा, फिर सभीं ने तवज्जो देना शुरू किया। 

गलतफहमी के शिकार धोबियों यह भी अच्छी तरह जान लो कि रेनबोन्यूज पोर्टल को मैं अपने गाँव में रहकर ऑपरेट करता हूँ। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नईे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते। इन्टरनेट के युग में देश-विदेश के लोग आँख झपकते ही जुड़ जाते हैं एक तुम हो कि बड़ा ‘धोबी’ कहलाने के चक्कर में ‘मेट्रोसिटीज’ को बेहतर समझते हो। 

मैं मेट्रो में रहकर वह नहीं कर पाता जो अपने गाँव के खुले वातावरण में रहकर कर रहा हूँ। हमारे गाँव में एक से एक दिग्गज पड़े हैं जो देश-दुनिया की खबरें और उन पर त्वरित टिप्पणियाँ करने में पारंगत हैं। तुम्हारे जैसे धोबी हमारे गाँव के इन धोबियों के यहाँ चाकरी करते हैं। तुम लोग नकलची हो सकते हो परन्तु ये लोग मौलिक हैं। देखना हो तो क्लिक करो रेनबोन्यूज और आलेखों को देखो और पढ़ो पता चल जाएगा कि तुम्हारा चिन्तन बड़ा है या फिर हमारे गाँव और हमसे जुड़े लेखकों/पत्रकारों/टिप्पणीकारों का।
प्रचार/प्रसार का युग है इसीलिए हम भी हमारे पोर्टल के बारे में जानकारी देने हेतु कथित/तथाकथित धोबियों को एस.एम.एस., ई-मेल करते रहते हैं, जिसमें से एकाध प्रतिशत ‘धोबी’ हमसे जुड़ते हैं, जिनमें बड़ा धोबी होने जैसी गलतफहमी का संक्रमण नहीं होता। मैं अच्छी तरह समझता हूँ कि तुम्हारे जैसा धोबी गधे की सवारी ही करता है, लेकिन यदि कहा जाए तो आदत अनुसार गधे पर नहीं बैठता।
एक मुफ्त मशवरा देना चाहूँगा। वह यह कि लेखन में नकलची मत बनो और मिथ्या दंभ त्याग दो। मौलिकता में बड़ा आनन्द है। स्वयं का दिमाग लगाओ और लेखन में विविधता लावो तभी सदी के महानायक बन सकोगे। हिजड़े से लेकर शहंशाह की भूमिका बखूबी निभाने वाला ही बिग कहलाता है, जिसके दम पर छोटे से छोटा बैनर भी ख्यातिलब्ध हो जाता है। हमारा पोर्टल फर्जी/दंभी लोगों के लिए नहीं है। और भी सोशल साइट्स हैं जिनमें अन्ट-शन्ट लिखने और बेहूदा फोटो पोस्ट करने वालों की कमी नहीं है। हमें बख्शे रहो। हम तुम्हारे किसी भी सहयोग के मोहताज नहीं हैं।  

( ये लेखक के निजी विचार हैं )

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
प्रबन्ध सम्पादक
रेनबोन्यूज डॉट इन

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना