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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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नकली पंजाबी ! (2)

जगमोहन फुटेला/  अख़बार केडी का चला नहीं, अख़बार से किसी भी कारोबारी को जिस तरह की सुरक्षा चाहिए होती है वो मिली नहीं तो सोचा चलो राजनीति ही कर लें। कोई चुनाव लड़ के कहीं का कोई एमएलए क्या पंच सरपंच हो सकने की हिम्मत थी नहीं। वैसे भी वो रास्ता बहुत लंबा है। उन्होंने राजनीति में जाने के लिए शार्ट कट लगाया। कोर्ट कचहरियों और कांग्रेस से टूटे शिबू सोरेन को को पकड़ा। उन्हें 'विकास' की सख्त ज़रूरत थी। ये गए। मिले और बात बन गई।

झारखंड मुक्ति मोर्चे के ज़रिए राज्यसभा पंहुचना था तो वे कभी भारतीय राजनीति के खलनायक और जेल तक में रहे शिबू सोरेन के 'पुत्र' हो गए। झारखंड के लोग बताते हैं कि पंजाब के हो कर झारखंड से राज्यसभा जाने के सवाल पे उन दिनों सार्वजनिक सभाओं में वे 'गुरु जी' (शिबू सोरेन) को अपना पिता बताया करते थे। झारखंड के लोग दूसरे प्रदेशों के मामले में ज़रा उग्र होते ही हैं। नक्सलवाद भी चरम पे था। केडी का विरोध भी। वे ये कह के लोगों को शांत करते थे कि वे झारखंड में हमेशा के लिए रहने और प्रदेश का विकास करने आए हैं।

लेकिन नक्सलियों के डर और उस खौफ से दिन में भी तर-ब-तर हो जाने वाले केडी को किसी ने ममता बनर्जी की ज़रूरतों के बारे में बताया तो वे उनकी शरणम् गच्छामि हो गए। एक मिनट नहीं लगाया झारखंड में अपने 'पिता' का साथ छोड़ने में। झारखंड के लोगों से किए वादे हवा हो गए। कोलकाता के मेरे दोस्त बताते हैं कि सभाओं में 'हमारी पूज्य बहन ममता दीदी' बोल सकने लायक बंगाली भी उन्होंने सीख ली। एक प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने बंगाल को देश का सब से सुसंस्कृत राज्य, बंगालियों को सब से अच्छी कौम और खुद को बंगाली ही हो गया बताया था। बल्कि एक जगह उन्होंने ये कहा कि उनका दिल पंजाब में रमता तो वे पंजाब का विकास न करते? हो सकता है कि ऐसा उन्होंने अपनी ये छवि बदलने के लिए कहा हो कि वे जहां जाते हैं अपने पैसे केदम पे फिट हो जाते हैं। या उन्हें लगा हो कि बंगाल में रहने, सस्ती ज़मीनें ले कर बड़े प्रोजेक्ट लगाने और उस के लिए बंगालियों का दिल जीतना ज़रूरी है। लेकिन वे बंगाली भी नहीं रहे। हिमाचल में चुनाव लड़ाने आए तो (फोटो देखिए) हिमाचली भी हो गए। वे हिमाचली बोलने, दिखने की कोशिश करते। ऐसा भी उन नेहरु या इंदिरा जी की तरह नहीं था कि आप जहां जाते हो वहां के लोगों की संस्कृति को अपनाने की कोशिश करते हो। कोई दूसरी लाख कमियां निकाले उन की। लेकिन नेहरु या इंदिरा गांधी ने कभी जातियों या प्रदेशों की राजनीति नहीं की। किसी एक चुनाव में कभी दारु बांटने का कोई आरोप उन के विरोधियों तक ने लगाया उन पर। न 'विकास' वाला बैग दिखा के राज्यसभा का रास्ता पूछने की ज़रूरत ही कभी महसूस हुई उन को। लेकिन केडी सिंह अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ धर्म, ईमान और पहचान बदलते चले गए।

हरियाणा की एक कहानी है। चौधरी बंसीलाल ने विधानसभा में सुनाई एक बार। किसी ने किसी से पूछा, तुम्हारी जात क्या है। वो बोला, तीन हफ्ते पहले हम नाई थे, दो हफ्ते पहले धोबी, पिछले हफ्ते लुहार। अब अगले हफ्ते क्या होंगे माँ को पता। शिबू सोरेन के पुत्र, ममता के भाई और हिमाचली भी रह चुके केडी सिंह हरियाणा में आ कर अब पंजाबी हो गए हैं। अब तक चली आ रही चाल के हिसाब से हरियाणा में आ कर उन्हें हरियाणवी होना चाहिए था। पंजाबी क्यों हुए वे? इस की भी एक कहानी है।

वे जाट हो जाना चाहते थे। एक बड़े जाट नेता से मिलने का जुगाड़ भी कर लिया था उन्होंने। हुड्डा के मीडिया एडवाइज़र सुंदरपाल को इसी लिए 'तोड़' के लाए वे।  ले आए। उन के साथ उन के चेलों चाटों को भी। पर, पता चला कि सुंदरपाल तो पहले ही टूटे हुए थे, हुड्डा से। हुड्डा से बात, मुलाक़ात तो 

सुंदरपाल उन पत्रकारों की भी करा सकने की हालत में नहीं रह गए थे जिस के लिए कार कोठी मिली थी उन्हें। जाट की खासियत ये है कि जाट वो जितना भी हो मूरख नहीं होता। अपने इलाके में किसी दूसरे को घुसने नहीं देता वो। केडी की दिक्कत ये कि हरियाणा में इसी बार हिमाचल के दाग धोए न गए तो ममता को क्या मुंह दिखाएंगे। उन्हें लगा कि चलो पंजाबी ही हो जाओ। पंजाबियों की ज़रूरत भाजपा और कांग्रेस दोनों को रहती है। उन्हें लगा कि लाख, डेढ़ लाख पंजाबी भी जुट गए पूरे हरियाणा की सभाओं में तो कुछ भाव बन जाएगा। हो सकता है कि दस बीस कैडीडेट बिठाने में कुछ डील ही हो जाए कहीं। और नहीं तो कांग्रेस ने छापे ही डलवाए कहीं तो बाहर नारे लगवाने के काम आएंगे। सुंदरपाल अब सुंदर नहीं रह गए थे। उपाध्यक्ष थे वे पार्टी के। कार्यकर्ता तक न रहे। चलते बने। केडी को लगा पंजाबी भी तो हैं हरियाणा में। केडी ने अब पंजाबियों की मीटिंगों में जाना शुरू किया।

पंजाबी कृष्ण, सुदामा के समय से बड़ा दानी और दयालु होता है। दरवाजे पे आए याचक को कभी 'न' करता ही नहीं। हरियाणा में हमेशा धक्का भी हुआ ही है उस के साथ। उसे लगा कि चलो अब एक पंजाबी आया है। राजनीति में है ही। एमपी और चार पैसे वाला भी है। चलो करो मदद इस की। लेकिन उस के बाद केडी ने पंजाबियों के साथ किया क्या, ये कल बताएंगे।......

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सम्पादक

डॉ. लीना