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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सब्जी बाज़ार में मिले दीनानाथ जी...और कहा - तरकारी में बज्जर पड़ा रे !

वरिष्ठ पत्रकार दीनानाथ मिश्र जी की मृत्यु, नवभारत टाइम्स, पटना संस्करण के प्रथम स्थानीय संपादक रहे थे वो 

नवेन्दु। ईटीवी के पत्रकार और मेरे अनुज पुखराज ने जब हैदराबाद से ये दुखद sms मेरे मोबाईल पर भेजा कि वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सदस्य दीनानाथ मिश्र जी नहीं रहे, तो मैं तब सब्जी बाज़ार में था । पत्नी ने कहा था कुछ हरी सब्जी लेते आईयेगा।  लेकिन क्या लूँ , कितना लूँ ? कोई हरी सब्जी 60 रुपये किलो से कम नहीं...भिन्डी भी 60...परवल और बैंगन भी 60...सिर्फ कद्दू ही एक था, जो 40 के भाव था । सब्जियों के भाव में लगी आग से मन पहले से विचलित था।  और जब दीनानाथ जी के दिल्ली के कैलाश अस्पताल में निधन की खबर मिली, तो मन जैसे और भी विचलित हो उठा, शोकसंतप्त भी.! लेकिन इसी बीच लगा कि दीनानाथ जी बगल में आकर खड़े हो गए हों और कह रहे हों, निकल लो नवेन्दु !...तरकारी में बज्जर पड़ा रे !

पटना से 1986 में जब देश के बड़े मीडिया घराने टाइम्स हाउस ने नवभारत टाइम्स और टाईम्स आफ इंडिया का प्रकाशन शुरू किया तो हिंदी के शिखर संपादक स्वर्गीय राजेंद्र माथुर जी ने बतौर प्रधान संपादक नभाटा की जो शानदार संपादकीय टीम बनायीं थी ,मैं भी उसका एक हिस्सा था । जिस टीम के बारे में माथुर साहब हमेशा ये कहा करते थे कि हिंदी पत्रकारिता की ‘द बेस्ट टीम’ है पटना नभाटा संस्करण की टीम !...और दीनानाथ मिश्र जी थे पटना संस्करण के प्रथम स्थानीय संपादक।

दीनानाथ जी पटना नभाटा के पहले पन्ने पर नित्य दिन अपना कॉलम लिखते थे - ‘खबरम’। जन सरोकार और तंत्र से टकराता उनका ‘खबरम’ अपनी धार और तेवर के कारण तब पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय था। 1987 में देश और प्रदेश में महंगाई तब आग लगाए हुए थी । सब्जी पकाना तो जैसे सपना हो रहा था। एक दिन उन्होंने अपने 'खबरम' में लिखा - तरकारी में बज्जर पड़ा रे ! छोटे-छोटे वाक्य और देशज शब्दों का प्रयोग उनकी खासियत थी। खुद भी वे बिहार के रहने वाले थे । बिहार –उत्तरप्रदेश के ग्रामीण अंचल और आम जन की जुबान में तरकारी का मतलब होता है सब्जी और ‘बज्जर’ का मतलब होता है बज्र या बज्रपात। तबाही...हाहाकार के सिलसिले में भी ‘बज्जर पड़ने’ के मुहावरे का लोग खूब इस्तेमाल करते हैं। उस दिन का ‘खबरम’ खूब पढ़ा गया था। 25-26 साल बीत गए, लेकिन वो ‘तरकारी’ और ‘बज्जर’ आज फिर हमें याद आ गया।
...घर लौटा तो पत्नी से कहा कि दीनानाथ जी नहीं रहे , लेकिन मरने के बाद भी जन सरोकार के तहत जैसे मेरे साथ सब्जी बाज़ार में घूमते हुए ये कहते रहे...तरकारी में बज्जर पड़ा रे ! स्वर्गीय दीनानाथ जी को अश्रुपूरित श्रधांजलि और नमन!!

Navendu Kumar

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सम्पादक

डॉ. लीना