Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

फिलहाल देश आन लाईन शिक्षा के लिए तैयार नहीं: राजवर्धन आजाद

“कोविड 19 के दौरान और उपरांत संस्थागत चुनौतियां व अवसर” विषय पर आयोजित सेमिनार में ग्रामीण क्षेत्र के छात्रों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता पर ज़ोर  

पटना/ बिहार राज्य विश्वविध्यालय सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ. राजवर्धन आजाद ने कहा कि वर्तमान समय में देश ऑनलाइन शिक्षा के लिए तैयार नहीं हुआ है, अभी क्लासरूम शिक्षण पद्धति ही सबसे बेहतर शिक्षण पद्धति है। वह सोमवार को कालेज आफ कामर्स आर्ट्स एण्ड साइंस पटना और मां प्रेमा फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में " कोविड 19के दौरान और उपरांत संस्थागत चुनौतियां व अवसर विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा केवल स्पेशल लेक्चर या आपदा के समय में उपयोगी हो सकती है। उन्होंने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी सभी के पास उपलब्ध नहीं है, ऑनलाइन मैटेरियल डाउनलोड करने के लिए भी बेहतर संचार सिस्टम उपलब्ध नहीं है तथा ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों में इंटरनेट खर्च की व्यवस्था कर पाना संभव नहीं है।

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रधानाचार्य प्रो. तपन कुमार शान्डिल्य ने कहा कि एनएसएसओ डाटा के अनुसार देश में महज 24 फीसद इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है, जो मोबाइल सेवा के अतिरिक्त है। इसमें 42 फीसद शहरी क्षेत्र में और 15 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है।उन्होंने कहा कि जान बचाने की कोशिश पहले होनी चाहिए बाद में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि हमारे अधिकतर विद्यार्थी ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इसलिए हमें उनमें शिक्षण के लिए विशेष ध्यान रखना होगा। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन में भी भारत पूरे विश्व में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, मुख्य बात यह है कि अर्थव्यवस्था में ऐसा प्रावधान है कि भविष्य में ऐसी किसी भी महामारी से निपटा जा सके। कोविड-19 दौरान शिक्षा के क्षेत्रों में दुष्प्रभाव को कम करने के लिए शिक्षकों ने ऑनलाइन वर्गों का संचालन किया और अच्छी शिक्षण सामग्री भेजकर बच्चों को पढ़ाने का प्रयास किया, हालांकि ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को पढ़ाने में काफी कठिनाई भी हुई क्योंकि नेटवर्क की समस्या वहां सबसे बड़ी बाधा बनी।

बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग की सदस्य प्रो. उषा प्रसाद ने कहा कि कोविड-19 का प्रभाव विश्व के 186 देशों में हुआ। जिसके कारण सभी देशों में शिक्षण व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतर गई । आयोग के सदस्य प्रो. विजय कुमार दास ने कहा कि  कोविड-19 के दौरान देशभर में 15 लाख से अधिक स्कूल बंद रहे, वहां वर्चुअल माध्यम से शिक्षण व्यवस्था चली, लेकिन उसका असर नहीं दिखा। मां प्रेमा फाउंडेशन के सह संस्थापक जयशंकर सिंह ने कहा कि क्लासरूम शिक्षा का विकल्प वर्चुअल शिक्षा नहीं हो सकती है। भौतिकी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ए के झा ने कहा कि शिक्षण व्यवस्था में क्लासरूम शिक्षा की सनातन परंपरा है इसका विकल्प दूसरा नहीं हो सकता। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर संतोष कुमार ने जबकि धन्यवाद ज्ञापन  डॉक्टर वंदना मौर्य ने किया।  अतिथियों का स्वागत अंग्रेजी की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर सलोनी कुमारी ने किया। मौके पर प्रो. कीर्ति,  प्रो. उमेश प्रसाद, प्रो. खालिद अहमद,  प्रो. केबी पदमदेव, बर्सर डॉ मनोज कुमार, प्रो. आशुतोष कुमार सिन्हा, प्रो. सफ़दर इमाम कादरी, डॉ. अकबर अली और मां प्रेमा फाउंडेशन के  डॉ. अविनाश सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित हुई। इससे पूर्व एन सी सी कैडेटों द्वारा बिहार राज्य विश्वविद्यालय आयोग के अध्यक्ष डॉ राजवर्धन आजाद को गार्ड आफॅ ऑनर दिया गया।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना