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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लोगों की फेसबुक पोस्ट ने बनाया लिखने का मूड

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ कई दिनों से लिखने का मूड बना रहा था परन्तु ऐसा सम्भव होता दिख नहीं रहा था। सोचा चलो अब लिखने से तौबा ही कर लिया जाए लेकिन फिर सोचने लगा कि जब तक जीना है लेखन तो करना ही पड़ेगा- ऐसा करके ही अपना अस्तित्व कायम रख पाऊँगा। फिर प्रश्न उठा किस विषयवस्तु को अपने लेखन का प्लाट मानूँ- अब तक कुछ भी नहीं बचा है, जिस पर लिखा न हो। पॉलिटिक्स, सिनेमा, सम-सामयिक त्वरित टिप्पणियाँ, सेलीब्रेटीज के हाल, अनेकानेक समस्याओं पर लिख कर थक गया हूँ। कोई ऐसा प्लाट मिलता जो सर्वथा नया होता। पत्रकार, लेखक होने के नाते मैं अपने सुधी पाठकों को निराश नहीं होने देना चाहता इसलिए यह आलेख आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ। यह लेख लिखने का मूड फेसबुक (मुख पोथी) पढ़ने के बाद बना। 
फेसबुक पर एक पोस्ट पढ़कर पता चला कि लोग सम्मानित किए जा रहे हैं। स्टेडियम में तरनताल बन गया है। हमारा स्टेटस बढ़ गया है। बच्चे 200 और सयाने 300/- में स्विमिंग करेंगे। बहरहाल इतने सेल्फिश न हो, कुछ अंशदान इधर भी। सेल्फी पोस्ट करें मगर ध्यान रहे वह किसी महिला आई.ए.एस. के साथ न हो वर्ना जेल भी जा सकते है। फेसबुक एक बहुत ही अच्छा माध्यम है नवनीत लेपन का- मगर ध्यान रहे इस प्रक्रिया में मात्र अपना ही स्वार्थ निहित न हो। आज कवि तो सभी बन रहे हैं- अतुकान्त आशु कवि बनकर फेसबुक पर अपलोड कर रहे हैं। अपनी सेल्फी और रचना को- उनको देखकर मरहूम पं0 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ की छवि उभर कर सामने आती है। उनकी रचना के पात्र वह स्वयं हुआ करते थे। अब के कवि वैभवशाली जीवन जी रहे हैं- सर्व सुख-सुविधा भोगी बनकर नाम कमाने के लिए स्वयं को प्रचारित कर रहे हैं। 
वाह रे जमाना- जिसका पेट भरा है- वह भी भोजन की तलाश में, जिसके पास भोजन है वह उसके भण्डारण करने की फिक्र में। जिसके पास एक वस्तु है- वह अनेकों के चक्कर में- इतने सेल्फिश तो न बनो भाई। सब कुछ तुम्हीं हड़प लोगे। फिर नेताओं को क्यों बदनाम किया जाता है.............? सरकारी मुलाजिमों पर भ्रष्टाचार का आरोप काहें को-? डोण्ट बी जीलस- हमारी वही दशा है जैसी लोमड़ी की थी। अंगूर न मिलने पर खट्टे हो गए। अपना क्या बैठे-ठाले अनाप-शनाप। जी हाँ बकवास लिखना आदत बन गई है। घर के लेागों ने कई सालों से एक उपाधि दे दिया है। मेरी गतिविधि देखकर वह लोग कहते हैं कि मैं सठिया गया हूँ। एक अदद तखत है लेटा रहता हूँ। आँखो से कम दिखता है, सोचता ज्यादा हूँ कर कुछ नहीं पाता। जमाना 21वीं सदी का है। हर लोग हाई प्रोफाइल, हर काम हाइटेक। 
मैं चुप्पी मारे अपने जमाने की कोई भी एक्सपीरियंस शेयर नहीं करता। यह नहीं कहता जब मैं...................। खैर! इस बकवास को पढ़ने और टिप्पणी करने वालों पर खुदा रहम करे- यही दुआ करूँगा। हैल्लो सुन रहे हैं ना- कीप साइलेंस- व्हाट्स एप्प कॉल करो- ऊपर वाले से बात हो जाएगी। फोन कॉल रिसीव नहीं की जाती। बड़े अफसर हैं- बड़ी बात- बड़ी पगार- बड़ी रकम- बड़ी पहुँच। ट्रान्सफर कराना और रूकवाना दाएँ-बाएँ हाथ का खेल। एक आई.ए.एस. हैं- बहुत पहले सुना था कि वह बड़े ही कड़क हैं। प्रेस/मीडिया को घास नहीं डालते। सत्तारूढ़ पार्टी के जिलाध्यक्ष को फटकार दिए। समय का फेरा है- नेता जी एम.एल.ए. हो गए। हो सकता है कि मंत्री भी बना दिए जाएँ। 
आई.ए.एस. के बारे में मुझे कइयों ने बताया कि वह एक ऐसे काबीना मंत्री का रिश्तेदार है जिससे सत्तारूढ़ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सूबे के सी.एम. भी घबराते हैं। गवर्नर ने तो स्पष्ट कह दिया है कि मंत्री जी अपने पद के योग्य नहीं। लम्बी-चौड़ी बकवास नहीं- ग्लोबल और स्तरीय होने से पढ़ने वालों में रोचकता बढ़ती है। हम खटिया तोड़ रहे हैं। घर के सदस्य ऊब गए हैं। दो रोटी पाने के लिए जद्दो-जेहाद करना पड़ती है। बच्चे हैं, सुनते नहीं- सयाने हैं अपने में ही व्यस्त। महिलाएँ हैं- किसी का ससुर तो किसी का भसुर- बोलना मना है- छूने की बात कैसी............? एकान्तवासी बना हूँ, कोई मिलने तक नहीं आता- बेड राइडिंग यानि तखत पकड़ लिया है। रोग-व्याधि- तनाव क्या होता है अन्तर नहीं कर पाता हूँ। फिर भी जी रहा हूँ। उधर लोग सम्मान पा रहे हैं- मुँह देखी बातें करके क्षणभर के लिए ‘खुश’ कर देते हैं लेकिन जब सम्मान पाने और देने का वक्त आता है- तब भूल जाते हैं कि मैं भी कोई जीव हूँ इस धरती पर। 

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सम्पादक

डॉ. लीना