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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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पत्रकार भाई जी ‘लिव एण्ड लेट लिव, ईट एण्ड लेट ईट’

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी/ हे मित्र, मैं लाचार हूँ वर्ना अब तक आप द्वारा प्रेषित आलेख का प्रकाशन हो गया होता। मैं आप की सिफारिश किस मुँह से करूँ......? आप ने ही कहा था कि नव वर्ष पर पोर्टल के लिए कुछ डिस्प्ले विज्ञापन भेजेंगे, यह वायदा करके आपने एक स्टोरी छपवा लिया परन्तु अब दूसरी वाली के पब्लिेकशन हेतु कौन सा सब्जबाग दिखाएँगे। माना कि आप को विज्ञापन देने की हमदर्दी देने का कोई भी कष्ट नहीं करेगा, यह भी हो सकता है कि आप प्रकाशित स्टोरी के एवज में ही धन उगाही कर लेते हों। यह कहकर कि यह वर्ल्ड वाइड वेब और इन्टरनेट के जरिए छपेगी जिसमें इतना खर्चा आएगा- यह सब सुनकर जरूरतमन्द आप जैसे पत्रकारों के झाँसे मं आकर कुछ आई.एन.आर. तो देते ही होंगे।

यदि इस तरह नहीं होगा तब क्या गरज पड़ी है कि आप किसी की पीड़ा/समस्या को लेकर मगजमारी करें। एक बात तो कहना ही पड़ेगा- डियर सब कुछ अकेले ही हजम कर लेते हो अपच या हाजमा नहीं खराब होता? स्टोरी प्रकाशन के एवज में प्राप्त धन का कुछ प्रतिशत हमें भी दे दिया करो- हम आप की हर स्टोरी को प्राथमिकता के आधार पर छापेंगे। डियर रिपोर्टर हमारी न्यूज साइट पर खर्च आता है आप अखबारों में रिर्पोटिंग का अवसर तब पाते हो जब आप अखबार के लिए लिखने के साथ-साथ उसकी बिक्री करने और विज्ञापन देने जैसे अनेकानेक कार्य करते हो। तब हमारी न्यूज साइट/पोर्टल की अनदेखी क्यों करते हो?

चलो मान लें कि आप से वैसा कुछ भी नहीं हो सकता है जैसा हम चाहते हैं तब आप को सब करना होगा। हम आपको मेहमान लेखक की तरह हमारे पोर्टल पर यदा कदा तब स्थान देंगे जब आप के मेल्ड आर्टिकल में दमदार विषयवस्तु होगी/यदि नियमित छपना चाहते हों तो कुछ आइ.एन.आर. की व्यवस्था हमारे पोर्टल के लिए भी करनी पड़ेगा। वैसे आप की फोटो देखने से प्रतीत होता है कि आप उम्र दराज व्यक्ति हैं और वर्षों से पत्रकारिता से सम्बद्ध रहे हैं। आप को तो हर तौर-तरीका मालूम होगा। काहें हम सब को उल्लू बनाते हैं। भाई जी लिव एण्ड लेट लिव- जियो और जीने दो- ईट एण्ड लेट ईट- खावो और खाने दो (खिलाओ).......इसको अपना कंसेप्ट बनाओ तभी मजा आएगा।

मुझे मालूम है कि मेरी किसी भी बात का असर आप पर नहीं पड़ने वाला। यदि ऐसा होता तो आप झाँसा (वायदा) न देते। हे प्रिय मित्र यदि अहंवादी हो तो इसका परित्याग करो या फिर लेखन छोड़ो। अहं और लेखन दोनों एक साथ नही चल सकता। पत्रकार लेखक हो- पढ़े लिखे भी हो सकते हो। आप को उपदेश देना बेमानी ही होगा। हम कुछ बातें और कहना चाहेंगे। भाई जी हिन्दुस्तान आजाद है और मीडिया हाईटेक हो गई है। खर्चे बढ़ गए हैं वेब पोर्टल संचालन पर भी खर्च आता है। आप हो कि मुफ्त में अनाप-शनाप और पेडन्यूज छपवाना चाहते हैं। गलत फहमी छोड़ो धरातल पर पैर रखकर खड़े हो और सोचो। इतने खुदगर्ज मत बनों और सब कुछ स्वयं ही डकार जावो। हमारे एस.एम.एस. को पढ़कर इतने मुदित मत हो जावो कि वह मात्र तुम्हारे पास ही भेजा जाता है।

अपने प्रचार-प्रसार के लिए लगभग दो सौ एस.एम.एस. प्रतिदिन हम भेजते हैं तुम पाकर यह भूल जाते हो कि हम मात्र आप का ही स्वागत कर रहे हैं...........खैर मैं तो बस इतना कहूँगा कि ताली बजाना है तो दोनों हाथों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मेरा आशय आप बेहतर समझ सकते हैं। हमें विचार और विशेष खबरें तभी अच्छी लगती हैं जब उनके प्रकाशन से हामरी व्यवस्था भी सुदृढ़ बनती हो। हमने जब देखा कि हमारे साथ ऐसे लोग जुड़े हैं जो ढपोरशंख है तब से किनारा कसना शुरू कर दिया है।

अब आराम से हूँ..........न लालच और न ही तनाव। पोर्टल अपना उपजाऊ भूखण्ड है जब चाहा फसल उगा लेंगे। जी हाँ मेरे इस कथन को असत्य मानने की गलती मत करना बन्धु। एक बात और..... रिश्ते में मेरे बडे भाई थे जो अब इस संसार में नहीं हैं, यदि जीवित होते तो 80$ होते- कहा करते थे कि मेरी शादी ता नहीं हुई है लेकिन बारातें बहुत की हैं। हम उनसे इसका अर्थ जानने के लिए हाथ-पैर दबाते थे तब वह अपने कथन का गूढ़ अर्थ बताया करते थे........।

जाने भी दीजिए आप को बताने से क्या लाभ कोई विज्ञापनीय सपोर्ट भी नहीं मिलने वाला। फ्री-फोकट में मेल बॉक्स ही भरेगा। बहरहाल हमारे भइया क्या कहते थे- क्या नहीं इससे आप को क्या लेना-देना। मैं कहना चाहूँगा कि आइन्दा से आप गलती से भी गलतफहमी का शिकार न हों वर्ना हमेशा अगले को बेवकूफ समझने की भूल करते रहेंगे। आप इस मुगालते में न रहें कि आप से अधिक अक्लमन्द दूसरा कोई नहीं-। क्या समझे? अब समझ गए होंगे। जैसा कि मैं समझ रहा हूँ- तो कृपा कर हमसे आर्टिकल पब्लिश करने की एवज में विज्ञापन देने की बात कभी न कहें।

आप दबंग पत्रकार हैं, दो राय नहीं लेकिन क्या करें हमारे साथ पब्लिकेशन प्रबन्धन में आने वाले आर्थिक बोझ ने आप जैसों को गेस्ट (मेहमान) ऑथर के स्थान पर रखने के लिए विवश कर दिया है। अब यदा-कदा ही भाई जी.....। इस भड़ासी आलेख से आप को कोई कष्ट हो या फिर आप का अहं आहत हो ऐसा मेरा आशय नहीं हैं। मैंने तो बस अपनी प्रॉब्लम शेयर कर दिया है।

अन्त में आप जैसे रिपोर्टर/रिर्पोटर्स से कहना चाहूँगा कि मुझे मुआफ करें। 

नोट:- ऐसा नहीं है कि इस आलेख में जो भी लिखा गया है वह मुझ जैसे पर ही लागू होता हो, यह हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो संपादक/प्रकाशक होगा और अपने प्रकाशन के लिए आर्थिक व्यवस्था करता होगा। 

डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी (पत्रकार, संरक्षक- रेनबोन्यूज डॉट इन, वेब पोर्टल), मो.नं.- 9454908400 

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सम्पादक

डॉ. लीना