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स्मृतियां ही बनाती हैं मनुष्यः संजय द्विवेदी

विश्व संग्रहालय दिवस पर दुष्यन्त संग्रहालय में ‘शब्द-चित्र’ और वरिष्ठ रंगकर्मी हमीद मामू सम्मानित

भोपाल। ‘‘स्मृतियाँ हमारे जीवन का अनिवार्य अंग है। स्मृतियाँ ही हमें मनुष्य बनाती हैं। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय इन स्मृतियों को संजोकर रखने का अनमोल कार्य का रहा है।’’-ये विचार थे माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी के। वे संग्रहालय विश्व संग्रहालय दिवस पर दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय द्वारा आयोजित समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि जब हम अकेले होते हैं तो भी स्मृतियां ही साथ होती हैं। हमारी परंपरा तो स्मृति की परंपरा है। इसीलिए अपने सबसे प्राचीन ग्रंथों वेदों को भी हमने स्मृति कहा। श्री द्विवेदी ने कहा कि हमारी परंपरा संग्रह की आलोचना करती है, किंतु जब आप संग्रहालय बनाते हैं तो लोगों के लिए संग्रह करते हैं। यह परंपरा,इतिहास और संस्कृति का संरक्षण भी है। उन्होंने कहा कि जिस समाज की स्मृति जितनी समृद्ध होती हैं वह समाज उतना ही समृद्ध होता है। क्योंकि स्मृतियां हमें जड़ों से जोड़ती हैं और पुर्नरचना व पुर्नपाठ के अवसर भी देती हैं।

समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अशोक बुलानी ने की। इस अवसर पर प्रसिद्ध रंगकर्मी श्री हमीद मामू को अंजय तिवारी स्मृति सम्मान से अलंकृत किया गया।

आरम्भ में दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के निदेशक राजुरकर राज ने विश्व संग्रहालय दिवस पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस बार दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में ‘शब्द चित्र’ प्रदर्शनी का आयोजन किया गया, जिसमें पाण्डुलिपियों के साथ उसके रचनाकार के चित्र भी प्रदर्शित किये गये हैं।

अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री अशोक बुलानी ने कहा कि हमीद मामू को अलंकृत करके रंगजगत की महत्वपूर्ण हस्ती को रेखांकित किया है। उन्होंने हमीद मामू से जुड़े अनेक प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला। श्री हमीद मामू ने सम्मान के उत्तर में कृतज्ञता व्यक्त करते हुए संग्रहालय परिसर में हुए सम्मान को अपने जीवन का अविस्मरणीय प्रसंग कहा। कला समीक्षक श्री विनय उपाध्याय ने हमीद मामू के व्यक्तित्व पर वक्तव्य दिया, वहीं श्रीमती सुषमा गजापुरे ने अंजय तिवारी को याद किया। स्वगत वक्तव्य श्रीमती ममता तिवारी ने दिया एवं श्री विपिन बिहारी वाजपेयी ने आभार व्यक्त किया।

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सम्पादक

डॉ. लीना