Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

गिरमिटिया मजदूर बिहारी उद्यमिता के प्रतीक

जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में "उत्तर गिरमिटिया: नये फ्रंटियर्स का सृजन" विषय पर वार्त्ता आयोजित

पटना। अमेरिका के पोलिटिकल सायंटिस्ट एवं अमेरिका में होने वाले भारतीय गिरमिटिया मजदूरी उन्मूलन के सौ वर्ष पूरा होने के अवसर पर होने वाले अधिवेशन के ऑर्गनाईजर डॉ. विष्णु बिसराम ने कहा कि यह बिहारीपन का ही दम है कि वर्षों पहले मजदूर के रूप में बिहार से मॉरीशस, सूरीनाम आदि देशों में गये लोग आज वहां विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के महत्वपूर्ण पायदान पर है। यह गरीबी और अभाव में भी उनके पुरुषार्थ का अद्भुत नमूना है। डॉ. बिसराम आज यहाँ जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में ‘‘उत्तर गिरमिटिया काल: नये फ्रंटियर्स के सृजन" वार्त्ता में सभा को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन संस्थान और टाटा सामाजिक शोध संस्थान के पटना केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था।

मूल रूप से छपरा के डॉ. बिसराम गिरमिटिया मजदूर के चौथी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं, जो अब अमेरिका में बस गये हैं। डॉ. बिसराम ने बिहार की संस्था से जुड़कर सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के प्रति इच्छा जाहिर की। उन्होंने अगले वर्ष मार्च में बिहार दिवस के अवसर पर अपनी टीम के साथ बिहार आने का वादा किया। अपनी माँ और मातृभूमि छपरा (बिहार) को याद करते हुये वे भावुक हो गये।

इस अवसर पर बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहारियों के पोटेंशियल के एक प्रतीक स्वरूप हैं- डॉ. विष्णु बिसराम, जिनके पूर्वज छपरा से मजदूर के रूप में ब्रिटिश गयाना गये थे और आज ये इतने महत्वपूर्ण मुकाम पर हैं। उन्होंने कहा कि गुलामी प्रथा का ही दूसरा रूप था शर्त्तबंदी। उन्होंने कहा कि आधुनिक काल का सबसे ऊर्जावान इतिहास गिरमिटिया काल का ही इतिहास है, जिसमें गरीबी-बदहाली में भी मजदूरों ने न केवल अपनी भाषा, पहनावा, संस्कृति को बचाये रखा, बल्कि दूसरे को प्रभावित भी किया। उन्होंने कहा कि गांधीजी को वकील से आंदोलनकारी बनाने में गिरमिटिया मजदूरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। गिरमिटिया मजदूरों को याद करने का सबसे बड़ी वजह यह है कि वे अभाव में भी संस्कृति को नहीं भूले। गिरमिटिया मजदूरों को याद करना अपनी जड़, जमीन और मिट्टी को याद करना है।

इस अवसर पर ऊर्जा मंत्री विजेन्द्र प्रसाद यादव ने श्रम, ज्ञान, विज्ञान, दर्शन आदि क्षेत्रों में बिहार के योगदान को रेखांकित करते हुये कहा कि इस तथ्य पर भी शोध होना चाहिए कि क्या वजह है कि हमारे क्षेत्र से लेबर मायग्रेट हुये और अपनी मिहनत के बदौलत, वे जहाँ गये वहाँ की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया।

सभा को संचालित करते हुये विधान पार्षद् डॉ. रामवचन राय ने विस्तार से गिरमिटिया प्रथा और उसके प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पहले अनपढ़ लोगों का पलायन होता था अब पढ़े-लिखे लोगों का हो रहा है। उन्होंने कहा कि भोजपुरी, तमिल और मराठी भाषी मजदूर पलायन कर अन्य देशों में गये, लेकिन अपनी भाषा, पहनावा, संस्कृति को बचाये रखा।

इसके पहले संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने बताया कि यह महत्वपूर्ण संयोग है कि वर्ष 1917 गांधीजी के चंपारण आगमन और गिरमिटिया प्रथा समाप्त होने का शताब्दी वर्ष है। उन्होंने कहा कि बिहारी मजदूरों ने दुनिया में श्रम की मर्यादा को स्थापित की। संस्थान माइग्रेशन के इतिहास पर एक समग्र पुस्तक तैयार करेगा।

धन्यवाद ज्ञापित करते हुये टाटा सामाजिक अध्ययन संस्थान के श्री पुष्पेन्द्र ने कहा कि डायसपोरा को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ताकि उसका लाभ समाज के बड़े हिस्से को मिल सके। इस अवसर पर डॉ. वीणा सिंह ने भी सभा को संबोधित किया।

सवाल जवाब में डॉ. बिसराम ने जाति, संस्कृति, राजनीति से जुड़े सवालों का जवाब दिया। इस अवसर पर जोश कालापुरा, इन्द्रा रमण उपाध्याय, मणिकांत ठाकुर, नीरज, अजय, डॉ. अभय, शेखर, राकेश, ममीत, उमेश सहित शहर के शिक्षक-शिक्षिका, राजनीति, संस्कृतिकर्मी, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता मौजूद थे।

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना