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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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आईएफडब्ल्यूजे फेडरेशन का राष्ट्रीय अधिवेशन

श्रमजीवी पत्रकार एक्ट को बदलकर मीडिया एक्ट को लागू किए जाने की मांग
भोपाल। इंडियन फेडरेशन आफ वर्कींग जर्नलिस्ट यूनियन की भोपाल के शहीद भवन में नेशनल कौंसिल की गत दिनो बैठक हुई। इसमें श्रमजीवी पत्रकारों के हितों को सुरक्षित रखने पर ज़ोर दिया गया।
देश के लगभग 1200 मीडिया संस्थानों से जुड़े 30000 से अधिक श्रमजीवी पत्रकारों के राष्ट्रीय महासंघ इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस् (आईएफडब्ल्यूजे) की राष्ट्रीय कार्यसमिति का 121वां अधिवेशन भोपाल के शहीद भवन आडीटोरियम में हुआ। दो दिन तक चलने वाले इस आयोजन के उद्घाटन सत्र में राज्य आपूर्ति निगम के अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक  रमेश शर्मा ‘गुट्टू भैया’ मुख्य अतिथि के रूप में तथा राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे, जबकि समारोह की अध्यक्षता फेडरेशन के अध्यक्ष एवं देश के ख्यातिलब्ध पत्रकार के. विक्रम राव ने की।

इस अवसर पर राष्ट्रीय महासचिव परमानन्द पाण्डे, फेडरेशन के उपाध्यक्ष, तीन राष्ट्रीय सचिव, कोषाध्यक्ष एवं गुजरात से आईं श्रीमती मीना पंड्या, सेन्ट्रल इंडिया के प्रभारी सचिव कृष्णमोहन झा, प्रदेश उपाध्यक्ष आर. एम. पी. सिंह, प्रदेश महासचिव रविन्द्र पंचोली, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयंत वर्मा एवं जिला इकाई के अध्यक्ष रमेश तिवारी भी मंचासीन थे। सरस्वती पूजन से प्रारंभ कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सचिव कृष्ण मोहन झा ने किया, जबकि सदस्यता अभियान प्रभारी सतीश सक्सेना ने स्वागत भाषण दिया। मुख्य अतिथि रमेश शर्मा गुट्टू भैया ने श्रमजीवी पत्रकारों के राष्ट्रीय महासंघ की कार्यसमिति की बैठक मध्यप्रदेश की राजधानी में भोपाल में आयोजित किए जाने पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जिस फेडरेशन की बुनियाद रखने में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू एवं तत्कालीन गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल का योगदान रहा हो उसे कोई भी ताकत कमजोर नहीं कर सकती। फेडरेशन ने जिस तरह समर्पित भाव से पत्रकारों के हित में संघर्ष किया है उसे देखते हुए इस संगठन के प्रति श्रमजीवी पत्रकारों का रूझान स्वाभाविक है। श्री शर्मा ने कहा कि आज सामाजिक मूल्य तेजी से बदल रहे हैं। नैतिकता एवं राष्ट्रवाद का स्थान भौतिकवाद ने ले लिया है। पहले पत्रकारिता एक मिशन हुआ करती थी परंतु अब बड़े उद्योगपति इसे कवच के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं जिनके लिए पत्रकारों के हित गौण हो चुके हैं। फेडरेशन को इस विषय पर गहराई से विचार करना चाहिए कि मीडिया पर जिस तरह से बाजारवाद हावी होता जा रहा है उससे श्रमजीवी पत्रकारों के हितों को कैसा सुरक्षित रखा जा सकता है। 

फेडरेशन के अध्यक्ष श्री के. विक्रमराव ने अल्प समय में और सीमित संसाधनों के बीच राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के सफल आयोजन के राष्ट्रीय सचिव कृष्ण मोहन झा तथा श्री सतीश सक्सेना की सराहना करते हुए कहा कि फेडरेशन अब सामाजिक सरोकार के विषयों को भी अपने कार्यक्षेत्र में सम्मिलित करने जा रहा है।

इसी सिलसिले में आगामी अक्टूबर माह में ऋषिकेश में आयोजित फेडरेशन की बैठक में गंगा को प्रदूषण से बचाने में मीडिया की भूमिका पर मंथन किया जाएगा। जिसमें नदियों के संबंध में विशद् जानकारी रखने वाले पत्रकार आमंत्रित किए जा रहे हैं। वे गंगा और मीडिया विषय पर अपने सारगर्भित विचारों का आदान प्रदान करेंगे। श्री विक्रमराव ने केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी की इस पहल को हास्यास्पद बताया कि पत्रकारिता के क्षेत्र के क्षेत्र से जुडऩे के इच्छुक व्यक्तियों के लिए न्यूनतम पात्रता निर्धारित की जाने की आवश्यकता है। श्री राव ने याद दिलाया कि देश में अनेक ऐसे मूर्धन्य पत्रकार हुए हैं जिनके पास हायर सेकेंडरी प्रमाण पत्र भी नहीं था परंतु उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में उच्च मानदण्ड स्थापित किए ओर आज के पत्रकारों के लिए वे आदर्श बन चुके हैं। उनके लिए पत्रकारिता एक मिशन थी। श्री राव ने इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस् छोडक़र गए लोगों से अपील की कि वे मुख्य धारा में वापिस लौटकर उस संगठन को और मजबूत करें जो श्रमजीवी पत्रकारों के हितों के लिए संघर्ष करने में सदैव आगे रहा है। श्री राव ने भूटान में आगामी नवंबर माह में आयोजित होने वाले फेडरेशन के अधिवेशन की रूपरेखा की जानकारी भी इस बैठक में दी और बड़ी संख्या में उसमें भाग लेने का पत्रकारों से अनुरोध किया।

फेडरेशन के महासचिव श्री परमानन्द पाण्डे ने इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस् के लगभग 6 दशकों के गौरवमयी इतिहास का संक्षिप्त परिचय देते हुए बताया कि नई दिल्ली स्थित जंतर मंतर के एक वटवृक्ष की छाव में अक्टूबर 1950 में इस फेडरेशन की नींव पड़ी थी जो आज एक वटवृक्ष का ही रूप धारण कर चुका है। फेडरेशन से जुड़ी कुछ मधुर स्मृतियों को ताजा करते हुए श्री पाण्डे ने यह भी बताया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने संगठन की स्थापना के समय 100 रुपए की राशि अपनी ओर से एक चेक के रूप में भेंट की थी। यह चेक फेडरेशन के पास एक एतिहासिक दस्तावेज के रूप में सुरक्षित मौजूद है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल का पत्रकारों के प्रति जो दृष्टिकोण था वह आज की सरकार जैसा नहीं था जो पत्रकारों पर तरह तरह की पाबंदिया लगाना चाहती है। श्री पाण्डे ने कहा कि इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस् ने पत्रकारों के हित की सुरक्षा के लिए लंबा संघर्ष किया है। यही कारण है कि देश के श्रमजीवी पत्रकारों ने इसके बैनर तले एकजुट होना पसंद किया। राष्ट्रीय महासचिव ने 1955 में बने श्रमजीवी पत्रकार एक्ट को बदलकर उसके स्थान पर मीडिया एक्ट को लागू किए जाने की मांग करते हुए कहा कि पत्रकारिता में अब प्रिंट मीडिया के साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रवेश हो चुका है इसलिए अब मीडिया शब्द प्रासंगिक है। उन्होंने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इंडिया फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्टस् को बदनाम करने वाले नक्कालों से पत्रकारों को सचेत करते हुए कहा कि खरपतवार की तरह उगे ऐसे संगठन दरअसल श्रमजीवी पत्रकारों का अहित ही करते हैं।

राष्ट्रीय एकता समिति के उपाध्यक्ष रमेश शर्मा ने इस बात पर गहरा दुख व्यक्त किया कि आजादी की लड़ाई में देश के जिन भाषाई अखबारों ने जनजागरण में महती भूमिका निभाई उनमें से अनेक अखबार पर्याप्त आर्थिक संसाधनों के अभाव में दम तोड़ते दिखाई दे रहे हैं। कई अखबारों का तो प्रकाशन भी बंद हो चुका है। इसके विपरीत अंग्रेजों का परोक्ष साथ देने वाले कई अंग्रेजी अखबार अब फलफूल रहे हैं परंतु भाषाई समाचार पत्रों की कठिनाईयों की ओर सरकार का ध्यान नहीं आता। श्री शर्मा ने कहा कि महात्मागांधी, जवाहरलाल नेहरू, लोकमान्य तिलक, वीर सांवरकर जैसे महापुरुषों ने भी अंग्रेजी साम्राज्यवाद का विरोध करने के लिए कलम की ताकत का सहारा लिया। उन्होंने कलम की ताकत का उपयोग राष्ट्रवाद को मजबूत करने के लिए किया। श्री शर्मा ने मीडिया से अनुरोध किया कि इतिहास की पुस्तकों में प्रकाशित गलत तथ्यों को संशोधित करने के लिए उसे पूरी ताकत से आवाज उठानी चाहिए। पत्रकारों के लिए राष्ट्र व समाज के व्यापक हित सर्वोपरि होना चाहिए।

इसी चर्चा को आगे बढ़ाते हुए फेडरेशन की प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष श्री आर. एम. पी. सिंह ने ग्रामीण पत्रकारिता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि फेडरेशन की इस दो दिवसीय बैठक में ग्रामीण पत्रकारिता को प्रात्साहित करने के उपायों पर गहराई से मंथन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह एक विडंबना ही है कि महानगरीय इलाकों में पत्रकारिता से जुड़े लोगों पर तो सत्ता मेहरबान रहती है, जबकि ग्रामीण अंचल के पत्रकारों को सत्ता के विरुद्ध लेखन करने पर उसका कोपभाजन बनना पड़ता है। इस भेदभाव को बदलने की जरूरत है इसके लिए आईएफडब्ल्यूजे को आगे आना चाहिए। कार्यक्रम का संचालन कर रहे फेडरेशन के राष्ट्रीय सचिव श्री कृष्ण मोहन झा ने इस अवसर पर दिए गए अपने उद्बोधन में कहा कि फेडरेशन की राज्य इकाई ने श्रमजीवी पत्रकारों की भलाई के अनेक कार्य किए हैं। राज्य सरकार से उसने पत्रकारों के श्रद्धा निधि स्वीकृत कराने में सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त भी पत्रकारों के लिए अनेक सुविधाएं अर्जित करने में वह सफल हुई है परंतु अभी भी श्रमजीवी पत्रकारों के हित सुनिश्चित किए जाने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है और फेडरेशन की राज्य इकाई इस दिशा में निरंतर संघर्षरत है। पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना, चिकित्सा व्ययों में रियायत की योजना आदि उसके एजेण्डे में सबसे ऊपर है। आईएफडब्ल्यूजे की प्रदेश इकाई के पूर्व अध्यक्ष श्री जयंत वर्मा एवं जिला इकाई के अध्यक्ष श्री रमेश तिवारी का कहना था कि फेडरेशन की इस बैठक में इस विषय में अवश्य ही कोई ठोस रणनीति बनाई जाना चाहिए कि भोपाल में बने पत्रकार भवन पर फेडरेशन पुन: अपना आधिपत्य कैसे कायम कर सकता है। वक्ता द्वय ने इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया कि करोड़ों रुपए की अचल संपत्ति पर आज वे लोग कब्जा किए बैठे हैं जिनकी पत्रकारिता के प्रति निष्ठा भी संदेह से परे है। श्री तिवारी ने कहा कि हमने इस ओर मुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री का भी ध्यान आकृष्ट किया है और अब फेडरेशन को अपनी ताकत दिखानी होगी। श्री जयंत वर्मा ने कहा कि मीडिया के लिए अगर सरकार कोई नया कानून लेकर सामने आती है तो उसमें मीडिया से जुड़े लोगों के हित सुरक्षित रहना चाहिए। गुजरात से आईं डॉ. मीना पंड्या ने कहा कि आईएफडब्ल्यूजे ही श्रमजीवी पत्रकारों का एकमात्र हितैषी संगठन है और देश सभी श्रमजीवी पत्रकारों को इस संगठन के बैनर तले एकजुट होकर इस संगठन को मजबूत बनाना चाहिए। आभार प्रदर्शन फेडरेशन की राज्य इकाई के महासचिव श्री रवीन्द्र पंचोली ने किया।

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना