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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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असग़र वजाहत का एकालाप

संदर्भ- विरोधस्वरूप पुरस्कार वापसी का 

राजेश कुमार। आजकल असग़र वजाहत जी का फेसबुक पर लगभग रोज ही कोई न कोई एकालाप आता ही रहता है। इसकी चर्चा जब मैंने लखनऊ के साहित्यकारों से की तो सब का यही कहना था, इस पर ज्यादा चर्चा करना ठीक नहीं, दक्षिण पंथियों को खामाँखा बहस का मुद्दा मिल जायेगा । लेकिन जब खुद ही पुरस्कार का मुद्दा उठा रहे है तो इस पर कुछ बात तो होनी ही चाहिए ।

आपको संगीत नाटक अकादमी का पुरस्कार लेना है ,ले लीजिये  कोई मना थोड़े कर रहा है, लेकिन जिन साहित्यकारों ने पुरस्कार लौटाया है , उनकी नियत पर सवाल खड़ा करना ठीक नहीं है । आप कह रहे है जिस तरह पुरस्कार लौटाने वाले साहित्यकारों का गौरव गान किया जा रहा है , उस से उनकी इमानदारी पर संदेह होता है । आप बताये कि राजेश जोशी , मंगलेश डबराल , उदय प्रकाश , काशीनाथ सिंह ने जो साहित्य अकादमी का पुरस्कार लौटाया है , उस से उनका कौन सा गौरव गान हो रहा है । या जो कह रहे है , पुरस्कार लौटने से पब्लिसिटी मिल रही है , क्या इस उम्र में इन्हें पब्लिसिटी कि कोई कमी है । ये तो हमेशा अपने साहित्य से चर्चा में रहते है । जब चाहेगे किसी न किसी माध्यम से चर्चा के केंद्र में आ सकते है । आपको अपनी ही धारा के साहित्यकारों पर सवाल खड़ा करने में संकोच नहीं हुआ? या उन्हें इस मुद्दे पर ख़ारिज कर रहे है ? पुरस्कार लेना या न लेना ,ये आपकी मर्जी है । इस से किसी को एतराज नहीं हो सकता है लेकिन आपने जिस तरह से संगीत नाटक अकादमी को इमानदारी का सर्टिफिकेट अदा किया है वो आपकी सोच और नजरिया पर जरूर सवाल खड़ा करती है । ऊपर से भले साहित्य अकादमी और संगीत नाटक अकादमी भले स्वायत संस्था दिखती हो लेकिन उसका संचालन कहाँ से होता है ,ये सबको पता है। आपको पता नहीं तो आप बहुत भोले है । संगीत नाटक अकादमी पर संस्कृति के अभिजन लोगो का ही कब्ज़ा रहता है ।वे उन्ही को पुरस्कार देते है जो उनकी बात करता है । कभी कभी वो प्रगतिशीलो को भी पुरस्कृत कर देते है ताकि सत्ता की भी प्रगतिशीलता बरक़रार रहे ।लेकिन जहां आपने अपनी सीमा पार की नकेल लगाते देर नहीं लगेगी ।अगर अकादमी की हिम्मत है तो पुरस्कार समारोह में 'सबसे सस्ता गोश्त' का मंचन करा कर दिखाए ?आप को पुरस्कार मिलनेवाला है ,इस से बेहतर मौका क्या हो सकता है ?आप यही शर्त रख दीजिये । लेकिन मै जानता हूँ, ये नहीं करा सकते , क्योंकि उनका असली चेहरा सामने आ जायेगा ।

कोई उनसे पूछे कि आजतक अकादमी ने कितने लोगो को पुरस्कार दिए है जो जंगल जमीन के लिए लड़ रहे है, जो दलित सवाल को ले कर जनता के बीच में काम कर रहे है ?अब तक कितने रंगकर्मियों को पुरस्कृत किया है जो किसानों के आत्महत्या को ले कर नाटक कर रहे है ? मुज्ज़फरपुर में किस तरह संप्रादायाकिता फैली , हाशिमपुरा के असली गुनाहगार कौन है ,क्या इन सवालो को उठाने वाले नाटककारो को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार देने की हिम्मत कर सकती है ? असग़र साब ये आपको तभी तक बर्दास्त करेंगे ,जब तक आपसे उन्हें खतरा नहीं है । जहां आपने सीमा पार की ये असली रूप में आ जायेंगे ।फिर ये जरा भी लिहाज़ नहीं करेंगे कि आप संगीत नाटक अकादमी से पुरस्कृत नाटककार है । क्या आप हुसैन, अनंत मूर्ती के साथ इनके बर्ताव को भूल गए ?

लेखक वरिष्ठ रंगकर्मी हैं।  

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सम्पादक

डॉ. लीना