उन्होंने कई चरणों में मीडिया को आड़े हाथों लिया है
साकिब ज़िया/ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों एक ऐसा बयान दिया है, जिसने मीडिया और गैर मीडिया जगत में एक बड़ी बहस छेड़ने का मौका दे दिया है। कभी केजरीवाल मीडिया से बेस्ट सीटिजन का सम्मान प्राप्त करने के बाद मीडिया को धन्यवाद देकर यह कहते नहीं थकते थे कि मीडिया ने मेरी बहुत मदद की है, लेकिन आज उन्होंने दुश्मनों की फेहरिस्त में मीडिया को सर्वोच्य स्थान दे रखा है, जैसा कि उनके बयान से मालूम पड़ता है।
अरविंद साहेब ने कई चरणों में मीडिया को आड़े हाथों लिया है। पहले उन्होंने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि टीवी चैनलों के स्टूडियो में मत जाओ। अब तो उन्होंने सरकार की ओर से बाजाफ्ता मीडिया के खिलाफ सर्कुलर ही जारी कर दिया है । एक नया शिगुफा ये भी है कि मीडिया ट्राईल किया जाए। यह बात देश और दुनिया भली-भांति जानती है और इससे किसी को इंकार नहीं है कि आरटीआई अरविंद से सीएम केजरीवाल तक के सफर की लाईन मीडिया ने ही बनाई थी। अब उस समय मीडिया की नीयत क्या थी, केंद्र की पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की मुखालफत या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा का समर्थन। नीयत जो भी रही हो पर अंतत: इसका पूरा-पूरा लाभ केजरीवाल को ही मिला और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का ताज केजरीवाल ने पहन लिया। खुद अरविंद केजरीवाल इस बात को अच्छे तरीके से महसूस करते होंगे कि उन्हें यहां तक पहुंचाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई है। इसका अनुमान उनके पत्रकार प्रेम से सहज लगाया जा सकता है कि अरविंद ने शपथ लेने के बाद कहा था कि दिल्ली देश की राजधानी है,जहां दिलवाले रहते हैं यहां हर कोई स्टिंग ऑपरेशन कर सकता है और किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार के खात्मे में अपनी भूमिका अदा कर सकता है।यानि उनकी नजर में हर नागरिक या तो पत्रकार है या पत्रकार की भूमिका अदा कर सकता है। अब बहस का मुद्दा ये है कि दिल्ली के सीएम के तुगलकी फरमान के बाद पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई होगी।ऐसे में जब उनका दृष्टिकोण ये है कि सारे दिल्लीवासी पत्रकार की भूमिका में हैं,तो कार्रवाई किन-किन के खिलाफ होगी। ऐसे में तो उन्हें मीडिया हाउस या पत्रकारों की दो अलग-अलग श्रेणी भी बनानी होगी,एक निष्पक्ष पत्रकारों की जिनके खिलाफ वो कार्रवाई करेंगे और दूसरी पत्रकार रूपी अपने प्रवक्ताओं की जिन्हें वे “आप” का हम समझेंगे और इनकी सराहना करेंगे।
हालांकि मीडिया की आलोचना कोई नयी बात नहीं है।भारत जैसे महान लोकतांत्रिक देश के पत्रकारों ने इसपर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया भी दी है। इलेक्ट्रॉनिक चैनलों और प्रिंट मीडिया में केजरी बहस भी रोजाना हो रही है।ऐसा लगता है कि केजरीवाल अपनी आलोचना को बर्दाशत नहीं कर पा रहे हैं। सच कहें तो आम आदमी पार्टी को इस मामले से अपना कदम पीछे हटाने चाहिए थे। ये लोकतांत्रिक,व्यवहारिक और सैद्धांतिक रुप से सही नहीं है। ये भी सत्य है कि देश में मानहानि के मामलों में अधिकांश फैसले पत्रकारों के पक्ष में ही आये हैं।अमेरिका में ब्लूबुक की तर्ज पर क्या भारत में भी ऐसी कोई व्यवस्था होनी चाहिए। अगर किसी को मीडिया से दिक्कत है या खबरों से असंतुष्टि है तो उसकी शिकायत के लिए कई संस्थाएं हैं, जो इसका निवारण करती हैं। केजरीवल के मीडिया ट्राइल की बात से खाप पंचायत के फरमान की भी बू आती है।
क्या है केजरी का फरमान ?
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक सर्कुलर जारी करके दिल्ली सरकार के अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि कम से कम एक महीने तक राज्य सरकार या मुख्यमंत्री की छवि खराब करने वाली खबरों की शिकायत सीधे प्रमुख सचिव (गृह) को करें।वे जांच करेंगे। फिर अभियोजन शाखा के निदेशक की राय लेंगे।अभियोजन शाखा यह देखेगी कि क्या आईपीसी की धारा 499/500 के तहत केस दर्ज किया जा सकता है? मानहानि का केस करने की सहमति मिलने पर मामला कानून विभाग को भेजा जाएगा।सीआरपीसी की धारा 199(4) के तहत सरकार की मंजूरी ली जाएगी।उसके बाद गृह विभाग मामला सरकारी वकील को भेजेगा और धारा 199(2) के तहत शिकायत करेंगे।दिल्ली सरकार ने मीडिया संगठनों की ओर से खबरों के कंटेंट पर भी निगरानी करेगी।
साकिब ज़िया मीडियामोरचा के ब्यूरो चीफ हैं।