Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

सोशल मीडिया: बंदर के हाथ आईना?

निर्मल रानी/ विश्व में आई कंप्यूटर क्रांति के बाद तथा खासतौर पर कंप्यूटर के इंटरनेट के साथ जुड़ जाने के पश्चात निश्चित रूप से ऐसा प्रतीत होने लगा है गोया पूरे विश्व को मानव ने अपनी मुट्ठी में कैद कर लिया हो। रही सही कसर स्मार्ट फोन ने पूरी कर दी है। अपनी जेब में स्मार्ट फोन लेकर घूमता कोई भी व्यक्ति इंटरनेट से जुडऩे के बाद अब यह महसूस कर सकता है कि संसार की सभी ज़रूरी सूचनाएं तथा विश्व के ताज़ा तरीन समाचार उसकी मुट्ठी में कै़द हो गए हैं। कम खर्च और कम से कम समय में अधिक से अधिक जानकारी अथवा सूचनाएं देने का इससे उपयुक्त माध्यम वैज्ञानिकों द्वारा न तो अब तक खोजा गया है और न ही इससे तेज़ किसी दूसरी प्रणाली की निकट भविष्य में अविष्कार होने की कोई संभावना नज़र आ रही है। इसका इस्तेमाल जहां खेती-बाड़ी, स्वास्थय, रक्षा, रेल, समुद्री व हवाई यातायात,औद्योगिक क्षेत्र तथा शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मानव उपयोगी कई अन्य क्षेत्रों में किया जा रहा है वहीं मनोरंजन तथा समाचारों के क्षेत्र में भी इस अति महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि ने एक क्रांति सी ला दी है। कहना गलत नहीं होगा कि मानव इतिहास की वैज्ञानिक उपलब्धियों का यह अब तक का सबसे आश्चर्यजनक कारनामा है।

इंटरनेट के माध्यम से कोई भी गरीब से गरीब व्यक्ति कम से कम खर्च कर अधिक से अधिक जानकारी हासिल कर सकता है। पुस्तकों का अध्ययन कर सकता है। घर बैठे किसी भी परीक्षा अथवा नौकरी में आवेदन कर सकता है। यहां तक कि घर बैठे  24 घंटे में किसी भी समय टेलीफोन, मोबाईल, बिजली के बिल,टीवी के बिल आदि का भुगतान किया जा सकता है। शेयर बाज़ार की लेन-देन तो पूरी तरह कंप्यूटर व इंटरनेट पर आधारित हो चुकी है। रेलवे अथवा बस,हवाईजहाज़ आदि के टिकट व रिज़र्वेशन आदि सबकुछ प्राय: इसी के माध्यम से हो रहे हैं। पैसों का भुगतान, बाज़ार की खरीद- फरोख्त सबकुछ एटीएम अथवा के्रडिट कार्ड द्वारा किया जाने लगा है। इसकी बजह से अब लोगों को नकद पैसे लेकर इधर-उधर आने-जाने की आवश्यकता कम ही महसूस होती है। गैस की बुकिंग से लेकर इससे संबंधित सब्सिडी का भुगतान तक इंटरनेट के माध्यम से ही होने लगा है। कर्मचारियों की तनख्वाहें व पेंशन आदि सबकुछ सीधे लोगों के बैंक खातों में पहुंच रही हैं। रेलवे तथा वायुयान का सिग्रलिंग सिस्टम तथा इसका परिचालन भी कंप्यूटरीकृत हो गया है। वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बैठे लोग एक साथ एक ही समय में इस प्रकार बातें कर सकते हैं गोया वे एक ही मेज़ पर बैठकर बातें कर रहे हों। किसी मरीज़ का आप्रेशन करते समय एक डॉक्टर अपने किसी सीनियर डॉक्टर से आप्रेशन के दौरान ही उससे सलाह-मशविरा ले सकता है। अत: यह कहा जा सकता है कि मानवजाति के लिए यह वैज्ञानिक उपलब्धि निश्चित रूप से किसी वरदान से कम नहीं है।

परंतु इसी से जुड़ा सोशल मीडिया जिसमें खासतौर पर फेसबुक तथा व्हाट्सएप जैसी सूचनाओं के आदान-प्रदान करने वाली  और भी कई ऐप्लिकेशंस शामिल हैं, ने जहां दुनिया में बैठे लोगों को एक-दूसरे के करीब कर दिया है वहीं इसके माध्यम से एक-दूसरे को ढंूढकर करोड़ों भूले-बिसरे लोग पुन: करीब आ चुके हैं। लोगों को वैश्विक स्तर पर अपनी बात दूसरों तक तत्काल पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम मिल गया है। वहीं इस प्रकार की ऐपस के माध्यम से कई िकस्म की बुराईयों को भी बढ़ावा मिल रहा है। इसी के माध्यम से तमाम लोगों द्वारा अनैतिक रिश्ते कायम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। ठगी व अपहरण जैसी बुराईयां इसके माध्यम से फैलाई जा रही हैं। सेक्स का व्यापार इसके माध्यम से होने लगा है। समलैंगिक सेक्स अपनाने वाले लोगों ने भी इस आभासी रिश्तों की दुनिया में संभवानाएं तलाशनी शुरु कर दी हैं। और इन सबसे भी अधिक प्रभाव जनमानस पर यह पड़ा है कि वह अपने दैनिक ज़रूरी कार्यों के प्रति गंभीरता से कार्य करने के बजाए उसका ध्यान हर समय फेसबुक तथा व्हाट्सएप जैसी ताज़ातरीन अपडेट्स पर लगा रहता है। स्कूल तथा कॉलेज जाने वाले छात्र-छात्राओं से लेकर कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों तक अधिकांशत: अक्सर अपनी पढ़ाई व ज़रूरी कामकाज छोडक़र इसी सोशल मीडिया से चिपके दिखाई देते हैं। परिणामस्वरूप जहां बच्चों की पढ़ाई खराब हो रही है और उनका कैरियर इस बुराई की बदौलत प्रभावित हो रहा है वहीं इन बच्चों के मस्तिष्क पर भी सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाली नकारात्मक सामग्रियों का बुरा प्रभाव भी पड़ रहा है और इसके शिकार बच्चों में चिड़चिड़ापन भी पैदा हो रहा है। आज विश्वव्यपी स्तर पर लगभग प्रत्येक स्मार्टफोन धारक की यह आदत बन चुकी है कि वह अपनी दिनचर्या अपने स्मार्टफोन में ताज़ातरीन नोटीिफकेशन देखने से ही शुरु करता है।

यदि इसके दुष्प्रभाव केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं। इस महान वैज्ञानिक उपलब्धि का इस्तेमाल अब न केवल आतंकवादियों,ठगों व लुटेरों द्वारा किया जाने लगा है बल्कि इसके माध्यम से समाज में दुर्भावनाएं भी फैलाई जाने लगी हैं। तमाम शरारती तत्व फेसबुक अथवा व्हाट्सएप के माध्यम से तरह-तरह के ऐसे संदेश जो किसी धर्म अथवा जाति विशेष की भावनााओं को आहत करने वाले हों उनका आदान-प्रदान व प्रसारण इसी के माध्यम से करने लगे हैं। अफवाहों का बाज़ार भी इसके द्वारा बहुत तेज़ी से गर्म कर दिया जाता है। किसी दूसरे देश व काल की किसी विचलित कर देने वाली फोटो को शरारती तत्व यह कहकर पोस्ट अथवा शेयर करते हैं कि यह अमुक स्थान की फोटो है। और उनके ऐसा करने से समाज में सांप्रदायिक अथवा जातिगत् तनाव फैल जाता है। नतीजतन दंगे-फसाद तक की नौबत आ जाती है। पिछले एक दशक से जबसे हमारे देश में कंप्यूटर क्रांति ने गति पकड़ी है तब से लेकर अब तक सैकड़ों दंगे-फ़साद तथा सामाजिक तनाव ऐसे हो चुके जिनमें इंटरनेट व मोबाईल के द्वारा अफवाहें फैलाए जाने तथा गलत सूचनाओं के आदान-प्रदान किए जाने की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

हमारे देश में कई आतंकवादी हमले ऐसे हो चुके हैं जिनमें इस बात का खुलासा हुआ है कि सीमा पार बैठे आतंकियों के आक़ा भारत में आतंकी आप्रेशन में व्यस्त अपने गुर्गों से इसी आधुनिक संचार व्यवस्था के माध्यम से संपर्क साधे रहते हैं। तथा उन्हें आवश्यक निर्देश देते रहते हैं। जहां इस व्यवस्था ने आतंकवादियों,आसामाजिक तत्वों तथा साईबर जगत से जुड़े हुए ठगों को अपना अपराध अंजाम देने के कई रास्ते मुहैया कराए हैं वहीं इसी प्रणाती ने पुलिस तथा अन्य सुरक्षा एजेंसियों को भी किसी जुर्म का पर्दाफाश करने तथा उसकी तह तक पहुंचने में मददगार साबित होने की भूमिका निभाई है। युद्ध में इस्तेमाल होने वाले अधिकांश मानव नरसंहारक शस्त्र कंप्यूटर प्रणाली से युक्त हो चुके हैं। यहां तक कि परमाणु शस्त्रों का संचालन भी अब कंप्यूटर के केवल एक बटन दबाने मात्र का मोहताज रह गया है। कंप्यूटर से संचालित ड्रोन विमान का संचालन एक ऐसी आक्रमण प्रणाली है जिसके द्वारा कभी भी किसी भी समय किसी भी स्थान पर बैठकर शस्त्रों से सुसज्जित इस चालक रहित विमान के द्वारा किसी भी स्थान पर छुपे बैठे दुश्मनों पर शत-प्रतिशत सटीक हमला किया जा सकता है। इस ड्रोन विमान में न तो रोशनी होती है न ही आवाज़।

परंतु शरारती व आसामाजिक तत्वों द्वारा सुबह उठते ही इस प्रणाली का दुरुपयोग शुरु कर देना दूसरों के धर्म,उनके धर्मग्रंथों अथवा उनके धर्मगुरुओं या धार्मिक मान्यताओं को बुरा-भला कहना,उन्हें गालियां देना तथा ऐसे विषयों को सोशल मीडिया पर छेडक़र दूसरे लोगों के मध्य तनावपूर्ण बहस कराना और इसी बहस का गाली-गलौच में बदल जाना यहां तक कि ऐसे विषयों के चलते समाज में तनाव फैलाना बिल्कुल वैसा ही है जैसाकि किसी बंदर के हाथ में आईना थमा दिया जाना। हालांकि इस प्रकार का साईबर अपराध करने वालों से निपटने के लिए भी इसी कंपयूटर प्रणाली के माध्यम से ही कई ऐेसे उपाय तलाश कर लिए गए हैं जिनके द्वारा साईबर अपराधियों की धर-पकड़ यथाशीघ्र हो सकती है। परंतु जब तक ऐसे अपराधी कानून की गिर त में नहीं आते तब तक ऐसे तत्व अपने नकारात्मक स्वभाव एवं विध्वंसात्मक सोच की वजह से सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाते रहते हैं,दंगा-फसाद फैलाने की कोशिशें करते रहते हैं, दूसरे लोगों के बैंक अकाऊंटसे पैसों की ठगी करते रहते हैं यहां तक कि अनेक शातिर अपराधी तो ऐसे भी हैं जिन्हें इस बात की भी कोई िफक्र नहीं होती कि आईपी एड्रेस के द्वारा पुलिस उन तक पहुंच सकती है। और ऐसे लोग साईबर क्राईम ब्रांच कीआंखों में धूल झोंककर भी अपना जुर्म बदस्तूर जारी रखते हैं।

                                                                                निर्मल रानी

 

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना