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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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सहिष्णुता मीडिया का गुण-धर्म

मनोज कुमार/ समाज में जब कभी सहिष्णुता की चर्चा चलेगी तो सहिष्णुता के मुद्दे पर मीडिया का मकबूल चेहरा ही नुमाया होगा. मीडिया का जन्म सहिष्णुता की गोद में हुआ और वह सहिष्णुता की घुट्टी पीकर पला-बढ़ा. शायद यही कारण है कि जब समाज के चार स्तंभों का जिक्र होता है तो मीडिया को एक स्तंभ माना गया है. समाज को इस बात का इल्म था कि यह एक ऐसा माध्यम है जो कभी असहिष्णु हो नहीं सकता. मीडिया की सहिष्णुता का परिचय आप को हर पल मिलेगा. एक व्यवस्था का मारा हो या व्यवस्था जिसके हाथों में हो, वह सबसे पहले मीडिया के पास पहुंच कर अपनी बात रखता है. मीडिया ने अपने जन्म से कभी न्यायाधीश की भूमिका नहीं निभायी लेकिन न्याय और अन्याय, सुविधा और सुरक्षा, समाज में शुचिता और देशभक्ति के लिए हमारे एक ऐसे पुल की भांति खड़ा रहा जो हमेशा से निर्विकार है, निरपेक्ष है और स्वार्थहीन. यह गुण किसी भी असहिष्णु व्यक्ति, संस्था या पेशे में नहीं होगा. इस मायने में मीडिया हर कसौटी पर खरा उतरता है और अपनी सहिष्णुता के गुण से ही अपनी पहचान बनाये रखता है.

मीडिया की सहिष्णुता के गुण को समझने के लिए थोड़े विस्तार की जरूरत होगी. पारम्परिक संचार माध्यमों से उन्नत होते हुए मीडिया आज हथेलियों पर आ चुका है. मीडिया की उन्नति समाज के किसी और पेशे के लिए ईष्या का कारण हो सकती है क्योंकि तकनीक के विकास के साथ आज तक कोई ऐसी चिकित्सा पद्धति नहीं बन सकी जो चलते-फिरते आपका दर्द दूर कर सके, कोई तकनीक नहीं कि कोई इंजीनियर हथेली पर रखे यंत्र से निर्माण कार्य को अंजाम दे सके या कोई ऐसी तकनीक पुलिस व्यवस्था के पास नहीं आ पायी है जिससे अपराध पर नियंत्रण पाया जा सके. तकनीक तो न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के पास भी नहीं है कि वह हथेली पर रखे यंत्र से अपने कार्य और निर्णय को समाज तक पहुंचा सके. केवल एकमात्र मीडिया है जो हथेली पर रखे यंत्र से समाज में सूचना, शिक्षा और मनोरंजन पहुंचाने में कामयाब होता है. यह मीडिया की ताकत है कि वह उन सूचनाओं को नेपथ्य में ढकेल देता है जिससे समाज की शुचिता बाधित होती है. यह मीडिया ही है जो लाखों किलोमीर बसे लोगों को एक-दूसरे से जोड़ता है और उनके अच्छे कामों से समाज को परिचित कराता है. शासन और सरकार लाखों योजनाएं बना लें लेकिन मीडिया के बिना समाज से जुड़ जाने की कोई विधा सरकार के पास नहीं है. जनहित की सूचनाओं को लोगों तक तटस्थ भाव से पहुंचाने का काम मीडिया ही करता है.

समाज के चौथे स्तंभ का दर्जा पाये मीडिया को अपनी जवाबदारी का अहसास है इसलिए वह पूरी सहिष्णुता के साथ अपने दायित्व की पूर्ति के लिए हमेशा तत्पर रहता है. मीडिया सहिष्णुता के कई आयाम हैं. प्राकृतिक आपदाओं के समय जब लोग डरे-सहमे अपने घरों में संशय में जी रहे होते हैं तब मीडिया अपनी जान की परवाह किए बिना तूफान हो या प्लेग, भूकंप हो जलजला, घटनास्थल पर पहुंच कर समाज को राहत देने की कोशिश करता है. अपनी जान की परवाह किए बिना, अपने परिवार से बेखबर समाज की चिंता में मीडिया उन खबरों पर हाथ डालने से भी नहीं चूकता जिनसे रसूखदारों को बेनकाब करना होता है. यह सब संभव हो पाता है कि मीडिया के सहिष्णुता के कारण. अपवाद को छोड़ दें तो मीडिया कभी अतिरेक में नहीं बहता. वह संयमित रहता है लेकिन मीडिया का रोमांच उसकी सक्रियता का सबब है.

निरपेक्ष और नि:स्वार्थ भाव से समाज और देश के लिए जुटे रहने वाला मीडिया हमेशा सवालों से घिरा रहता है. समाज का मीडिया पर इतना अधिक विश्वास है कि वह मीडिया की मानवीय भूल के कारण भी होने वाली एक गलती को बर्दाश्त नहीं कर पाता है. समाज की अपेक्षाएं इस कठिन समय में अगर किसी से शेष रह गयी है तो वह मीडिया है. उसे एक डाक्टर से इस बात की अपेक्षा नहीं है कि जो डाक्टर इस बात की शपथ लेता है कि वह नि:स्वार्थ रूप से समाज की भलाई के लिए कार्य करेगा लेकिन आए दिन आने वाली खबरें बताती है कि क्या हो रहा है. एक इंजीनियर से भी वह निराश है. अनेक दुर्घटनाओं का कारण उसके द्वारा बनायी गई घटिया पुल और पुलिया है जो अचानक टूट जाती हैं जिससे अकारण अनेक लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं. नेता और प्रशासन भी समाज के लिए बहुत उत्साह का भाव पैदा नहीं करते हैं. अक्सर वे चर्चा में इन्हें अपनी विश्वास की प्राथमिकता में नहीं रखते हैं किन्तु जब बात मीडिया की आती है तो सर्वाधिक शिकायतें मीडिया से होती है. सहिष्णु मीडिया के लिए समाज का यह भाव स्थायी पूंजी है. जब जब मीडिया की आलोचना होती है, समाज जब तब उस पर अविश्वास का भाव जताता है, वह असहिष्णु नहीं होता है और ना ही अपनी आलोचना से घबराता है. समाज की आलोचना ही मीडिया की असली ताकत है. इस आलोचना के कारण ही उसे बेहतर करने के लिए ऊर्जा मिलती है. समाज जब मीडिया पर अविश्वास जताता है तो मीडिया फोरम पर इसकी चर्चा होती है और चिंता की जाती है कि हम अपनी इस कमजोरी को कैसे दूर करें. समाज ऊपर उल्लेखित प्रोफेशन पर भी अविश्वास जताता है लेकिन ये लोग इसकी फ्रिक नहीं करते हैं और ना ही किसी फोरम में इस पर चर्चा करते दिखते हैं.

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सम्पादक

डॉ. लीना