निर्मल रानी/ प्रसिद्ध भारतीय सिने अभिनेत्री पद्मश्री श्रीदेवी की पिछले दिनों दुबई के एमीरेटस टॉवर के कमरा नंबर 2201 में रहस्यमयी तरीके से मौत हो गई है। खबरों के अनुसार चूंकि उनकी लाश उनके कमरे में बाथटब में पाई गई इसलिए मौत के कारण निश्चित रूप से संदिग्ध हैं। परंतु जैसे ही श्रीदेवी की मौत की खबर वायरल हुई उसी समय भारतीय पेशेवर मीडिया ने अपनी औकात दिखानी शुरु कर दी। तीर-तुक्के चलाने का भीषण अभियान छेड़ दिया गया। टीआरपी के भूखे चैनल तथा उनमें कार्यरत बिकाऊ एंकर्स बिना किसी साक्ष्य एवं प्रमाण के बेसिर-पैर की बातें पेश करने लगे। तरह-तरह की ऐसी बातें की जाने लगीं जिनका न तो श्रीदेवी की मौत से कोई लेना-देना था न ही किसी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात इस प्रकार की बातें करना न्याय व नीति संगत कहा जा सकता है। परंतु बड़े ही अफसोस की बात है कि भारतीय मीडिया ने इस घटना पर भी पूरा नंगा नाच दिखाने की कोशिश की। आखिरकार अमिताभ बच्चन जैसे महान अभिनेता को भी भारतीय मीडिया के ‘अनर्गलश्रीदेवी विलाप’ पर अपनी प्रतिक्रिया स्वरूप यह कहना ही पड़ गया कि-‘जिस तरह से भारतीय मीडिया सिनेमा की एक दिग्गज हस्ती की मौत पर प्रतिक्रिया दे रहा है उससे साबित होता है कि भारत में जीवन की कोई कीमत नहीं है’।
सबसे दु:खद तो यह है कि जहां बाज़ारू इलेक्ट्रानिक मीडिया के अधिकांश चैनल यह भी जताने की कोशिश कर रहे थे कि उनका प्रसारण अथवा उनकी रिपोर्टिंग सबसे सच्ची व सबसे तेज़ है वहीं उनके दावों में प्रत्येक क्षण पलीता भी लगता जा रहा था। उदाहरण के तौर पर कभी मीडिया द्वारा यह बताने की कोशिश की गई कि श्रीदेवी की मौत का कारण उनके द्वारा अत्यधिक सर्जरी कराया जाना था। मीडिया साथ-साथ यह भी समझा रहा था कि उन्होंने 29 बार अपने चेहरे की प्लास्टिक सर्जरी केवल इसलिए कराई क्योंकि वे स्वयं को वृद्धा नहीं देखना चाहती थीं तथा अपने चेहरे की चमक व तेज को युवावस्था की ही तरह बरकरार रखना चाहती थी। क्या इस प्रकार का मीडिया विलाप किसी सेलिब्रिटी की मौत के बाद किसी पत्रकारिता का अंश स्वीकार किया जा सकता है? बात यहीं पर खत्म नहीं हुई बल्कि इसके बाद मृतका पर यह लांछन भी लगाए गए कि श्रीदेवी की मौत शराब के नशे में धुत होने से हुई है। मेडिकल रिपोर्ट अथवा पोस्टमार्टम में यह बात भी साबित नहीं हो सकी है। उधर श्रीदेवी के कई घनिष्ट सहयोगियों का तो यहां तक कहना है कि श्रीदेवी शराब का सेवन करती ही नहीं थी। ऐसे में सवाल यह है कि ‘पत्रकारिता’ के अलमबरदारों को यह सूचना आखिर कहां से मिल गई कि श्रीदेवी की मौत का कारण उसका अधिक शराब सेवन था? कभी उनकी मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बताया गया। मीडिया से अलग हटकर स्वयं को विवादों में डालकर सुर्खियाँ बटोरने में महारत रखने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने तो सीधे तौर पर श्रीदेवी की मौत को हत्या का मामला बता डाला। ज़ाहिर है भ्रमित मीडिया के लिए स्वामी का यह बयान भी टीआरपी बटोरने का एक शानदार माध्यम बन गया।
बहरहाल, ऐसे शर्मनाक विवादों के बीच मंगलवार की रात श्रीदेवी का पार्थिव शरीर मुंबई पहुंचा तथा आज उनका अंतिम संस्कार कर दिया जायेगा। उनके अंतिम दर्शन को नेता, उद्योग जगत व सिने जगत की अनेक बड़ी हस्तियां आईं। यह भी टीआरपी जृटाने का एक सुनहरा अवसर साबित हुआ। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गत् तीन दिनों में देश और दुनिया की सबसे बड़ी घटना श्रीदेवी की मौत ही रही। सवाल यह है कि अब जबकि सऊदी अरब अमीरात के स्वास्थय मंत्रालय ने श्रीदेवी की मौत का कारण बाथ टब में ‘दुर्घटनावश’ डूबना बताकर इस अध्याय को बंद कर दिया है और इसके पश्चात ही श्रीदेवी का शव भारत भेजने की अनुमति दी ऐसे में अब आखिर वह बेशर्म मीडिया अपना मुंह कहां छुपाएगा जो कभी श्रीदेवी की मौत का कारण कार्डियक अरेस्ट बता रहा था तो कभी शराब के नशे में चूर होना तो कभी प्लास्टिक सर्जरी से होने वाले साईड इफेक्ट? इन सबके बावजूद श्रीदेवी के दु:खी परिवार ने एक बयान जारी कर यह कहा कि-‘हम िफल्म जगत, मीडिया, श्रीदेवी के फैंस और सभी शुभचिंतकों का इस दु:ख भरी घड़ी में, उनकी प्रार्थनाओं, सहयोग और संवेदनशीलता के लिए शुक्रिया अदा करते हैं।’ निश्चित रूप से यह श्रीदेवी परिवार का बड़प्पन ही कहा जाएगा कि उन्होंने मीडिया की असंवेदनशीलता को भी संवेदनशील बताने की हिम्मत की।
हमारे देश का खासतौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जितना ज़्यादा संवेदनहीनता व गैरजि़म्मेदारी का परिचय दे रहा है, अफसोस की बात है कि उसकी स्वीकार्यता भी उतनी ही अधिक बढ़ती जा रही है। इसमें मीडिया से अधिक दर्शक भी जि़म्मेदार हैं जो यह जानने के बावजूद कि अमुक चैनल तथा अमुक पत्रकार द्वारा एक दो नहीं बल्कि कई बार ऐसी बातें प्रसारित की गईं जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं था उसके बावजूद आज भी वही एंकर तथा वही न्यूज़ चैनल न केवल जनता में स्वीकार्य है बल्कि सरकार का भी वरद हस्त उसके ऊपर दिखाई दे रहा है। यदि लोगों को याद हो तो जिस समय दो हज़ार रुपये की नोट का चलन 2016 में शुरु हुआ था उस समय देश के एकमात्र चैनल ने डंके की चोट पर इस खबर को सनसनीखेज़ तरीके से प्रसारित किया था कि दो हज़ार रुपये की नोट में चिप डाली गई है जिससे नोट की लोकेशन का पता लगया जा सकेगा। इतना ही नहीं ग्रािफक्स के द्वारा तथा झूठी-सच्ची वीडियो बनाकर दो हज़ार रुपये की नोट में से चिप निकालते हुए भी दिखा दिया गया और यह भी बता दिया गया कि इसमें चिप कहां पर और कैसे डाली गई है। परंतु दुर्भाग्यवश आज तक देश के किसी भी दो हज़ार रुपये के नोट धारक को न तो इसमें कोई चिप पड़ी नज़र आई न ही इसका कोई और प्रमाण मिला। उधर भारत सरकार द्वारा व रिजर्व बैंक द्वारा भी इस बात का खंडन किया गया कि दो हज़ार रुपये के नोट में किसी तरह की कोई भी चिप नहीं डाली गई है और यह महज़ एक अफवाह है। ज़रा सोचिए कि जो चैनल और जो एंकर इस प्रकार की बेबुनियाद खबरें प्रसारित करता है और भारतीय मुद्रा को संदिग्ध प्रमाणित करने की साजि़श करता है उसी टीवी चैनल को सरकार का भी संरक्षण हासिल है और वही चैनल दर्शकों में भी लोकप्रिय है। आखिर ऐसा क्यों?
संचार क्रांति के वर्तमान युग में मीडिया को सबसे पहले और सबसे तेज़ के रास्ते पर चलने के बजाए सबसे विश्वसनीय तथा सबसे भरोसेमंद बनने की राह पर चलने की कोशिश करनी चाहिए। मीडिया को किसी विषय पर टिप्पणी करने से पूर्व हालात का भी जायज़ा लेना चाहिए कि परिस्थितियां सकारात्मक रिपोर्टिंग के लिए उचित हैं या नकारात्मक रिपोर्टिंग के लिए। किसी की मौत के बाद उसके कारणों को लेकर मनगढं़त कहानियां गढऩा तथा साथ -साथ उसके चरित्र हनन तक पहुंच जाना किसी दूसरे का चरित्र हनन तो कम करता है परंतु ऐसी खबरें झूठ साबित होने पर मीडिया की साख पर बदनुमा दाग ज़रूर लग जाता है। ठीक इसी तरह जैसे कि मौत तो लोकप्रिय अभिनेत्री श्रीदेवी की हुई परंतु इसकी रिपोर्टिंग में पत्रकारिता ही डूब मरी।