जन मीडिया, समागम, मीडिया विमर्श, मीडिया रिलेशन
मंजीत आनंद / मीडिया पर केन्द्रित पत्रिकाओं का छपने का दौर जारी है। जहां वर्षों से मीडिया पर आधारित पत्रिकाएं छप रही हैं, वहीं इस सिलसिले में नये पत्रिकाओं का प्रकाशन भी शुरू हुआ है। जून माह में मीडिया पर आधारित पत्रिकाओं में अलग-अलग तेवर लिये हुए हस्तक्षेप किया है।
जन मीडिया
शोध आधारित “जन मीडिया” का अठाईसवां अंक अपने पूरे तेवर में है। वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया के संपादन में “जन मीडिया” ने हर बार की तरह इस बार भी अपने आलेखों के माध्यम से दस्तावेज तैयार किया है।“ नरेन्द्र मोदी के उभार में मीडिया का असर” पर नवोदिता पांडेय ने शोध आलेख के माध्यम से नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रचार और मीडिया की भूमिका का मूल्यांकन आंकड़ों, ग्राफिक्स के माध्यम से किया है। इसमें हर पहलू पर शोध किया गया है। वहीं अमिताभ दीक्षित ने “मीडिया थियेटर और समाज” को मुद्दे के रूप में अपने शोध का विषय बनाया है। हरिद्वार पांडेय ने “अपातकाल और दिनमान” के जरिये पत्रकारिता के उस सच को सामने लाया है, जो अपातकाल के दौरान घटित हुई थी।
“उर्दू मीडिया” पर उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी का अभिभाषण को जगह दी गयी है। जन मीडिया ने शोध सामग्री के तहत मीडिया के घटनाक्रमों को रेखांकित किया है। संपादकीय में अनिल चमड़िया ने निर्वाचन आयोग और मीडिया के नजरिये को रेखांकित करते हुए लिखा है कि चुनाव आयोग और मीडिया विषय को लेकर शोधार्थियों को अपने सक्रियता दिखानी चाहिए।
पत्रिका- “जन मीडिया”
संपादक-अनिल चमड़िया
अंक-28, मूल्य-20 रूपये
संपर्क-ए-4/5, सेक्टर-18, रोहिणी, दिल्ली-85
समागम
चौदह वर्ष से प्रकाशित हो रही मीडिया और सिनेमा की द्विभाषीय शोध पत्रिका “समागम” ने इस बार संभावनाओं का छत्तीसगढ़ और मीडिया में दलित दरकिनार को कवर स्टोरी बनाया है। हस्तक्षेप के तहत वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार का आलेख “मीडिया में दलित दरकिनार” के तहत मीडिया में दलितों की भागीदारी और उनके सरोकारों को लेकर एक विमर्श देने की कोशिश की गयी है।
वहीं, विमर्श में “पानी में आग लगाने की कोशिश” के तहत वरिष्ठ पत्रकार मीडिया विशेषज्ञ और “समागम” के संपादक मनोज कुमार ने भोपाल से चर्मकार सुरेश नंद मेहर की ओर से 10 साल से निकाले जा रहे “बाल की खाल” अखबार की विस्तार से चर्चा की है। यह रोचक आलेख है।
देवेन्द्र कुमार ने “वैश्विक मीडिया का दायरा अभी भी तंग” आलेख में मीडिया के होते वैश्विकरण पर प्रकाश डाला है। छत्तीसगढ़ पर विशेष आलेख अनामिका का है, जो विस्तार से लिखा गया है। वहीं, शोध विमर्श में “आजतक और एवीपी न्यूज के चुनावी कवरेज का तुलनात्मक अध्ययन” किया गया है। साथ ही शोध विमर्श में ही “टीवी समाचारों की विश्वसनीयता को कटघरे” में रखते हुए अमिता और डाक्टर संजीव ने आलेख लिखा है।
पत्रिका-“ समागम”
संपादक-मनोज कुमार
अंक- जून-2014, मूल्य 50 रूपये
संपर्क-3 जूनियर, एमआईजी, द्वितीय तल, अंकुर कालोनी, शिवाजी नगर, भोपाल-16
मीडिया विमर्श
भोपाल से डाक्टर श्रीकांत सिंह के संपादन में 8 वर्षों से प्रकाशित मीडिया विमर्श का जून अंक “हिन्दी पत्रकारिता के हीरो विशेषांक –एक के तौर पर सामने आया है। मीडिया विमर्श का यह अंक कवर पेज के हिसाब से हिन्दी पत्रकारिता के हीरो को समर्पित लगता है, लेकिन अंदर में इसे हिन्दी मीडिया के हीरो के तौर पर प्रस्तुत किया गया है।
मीडिया विमर्श ने पहले हीरो के तौर पर राम बहादुर राय उसके बाद अच्युतानंद मिश्र, एसएन विनोद, ओम थानवी, विनोद दुबा, प्रभु चावला, मृणाल पांडेय, अश्विनी कुमार, देवेन्द्र स्वरूप, शशि शेखर, रमेश नैय्यर, के. विक्रमराव, गुलाब कोठारी, हरिवंश सहित 52 पत्रकारों/ टीवी एंकरों को हिन्दी मीडिया का हीरो बताया गया है। इसमें कई ऐसे भी नाम हैं जो टीवी एंकर के तौर पर जाने जाते हैं, उनका पत्रकारिता में कोई खास योगदान नहीं रहा है।
वैसे कल और आज के दौर के पत्रकारों के प्रोफाईलों को एक जगह मीडिया विमर्श ने समेटने का प्रयास किया है, लेकिन इसमें दलित मीडिया से जुड़े लोगों को संभवतः दरकिनार कर दिया गया है। वैसे अंक संग्रहनीय है। पत्रिका में कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी को लेकर मचे हंगामे को भी समेटा गया है, बल्कि हमला करने वालों के खिलाफ जवाब देने की कोशिश की गयी है।
पत्रिका-“मीडिया विमर्श”
संपादक-डा. श्रीकांत सिंह
अंक-जून-2014, मूल्य-50 रूपये
संपर्क-428, रोहित नगर, फेज-1, भोपाल, मध्य प्रदेश।
मीडिया रिलेशन
मध्य प्रदेश के इंदौर से मई माह से मीडिया पर केन्द्रित नई पत्रिका “मीडिया रिलेशन”, वरिष्ठ पत्रकार संजय रोकड़े के संपादन में आयी है। “मीडिया रिलेशन” ने जून अंक को मीडिया का महापर्व आम चुनाव को कवर स्टोरी बनाया है।
64 पेज की इस पत्रिका में मीडिया से संबंधित छोटी-बड़ी आम और खास खबरों को जगह दी गयी है। संपादक संजय रोकड़े अपने संपादकीय में लिखते हैं कि मीडिया माध्यमों के तकनीकीकरण और आधुनिकीकरण के चलते पुराना कुछ भी नहीं रह गया है, अब पत्रकारों के व्यवहारों के साथ ही मीडिया संस्थानों के क्रियाकलापों में भी खासा बदलाव देखा जा सकता है।
नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के कवरेज को मीडिया ने जिस तरह से कवर किया, उस पर कृष्णकांत ने रौशनी डाली है। संजय कुमार ने “निजी बनाम, सरकारी मीडिया” में सरकारी और निजी मीडिया के तेवर और कार्यों को रेखांकित किया गया है। विवेक कुमार का आलेख “मनुवादी है या मीडिया” भी सवाल खड़े करता है। “चुनाव और मीडिया” पर अनिल चमड़िया की आवरण कथा चुनाव में मीडिया की भूमिका को दर्शाता है। इसके अलावा मीडिया के विभिन्न पहलुओं पर कई आलेख मीडिया रिलेशन को पठनीय बनाते हैं।
पत्रिका –“मीडिया रिलेशन”
संपादक-संजय रोकड़े
अंक- जून-2014, मूल्य 15 रूपये,
संपर्क-103, देवेन्द्र नगर, अन्नपूर्णा रोड, इंदौर, मध्य प्रदेश