सरकार आर्थिक मदद करे
आदित्य कुमार दूबे/ अभी देशव्यापी लाक-डाउन के दो ही दिन हुए हैं कि प्रिंट मीडिया पर कोविड-19 का कहर साफ नजर आने लगा है। अखबारों के पन्ने कम हुए हैं, उनका वितरण बाधित हुआ है और विज्ञापन नदारद हो गए हैं। जो अखबार 20 से 40 पेज के हुआ करते थे वे महज 12 से 20 पेज में सिमट गए हैं। जिन अखबारों में 40 से 60 फीसदी जगह विज्ञापनों से भरी रहती थी, उन अखबारों में विज्ञापन महज 10 से 12 फीसदी जगह में सिमट गए हैं।
घरों में कैद जिन लोगों की सुबह चाय और अखबार से होती थी, वे लोग अब नेट पर ई- पेपर पढ़ने की आदत डाल रहे हैं। बहुत संभव है कि इनमें से ज्यादातर लोग लाक-डाउन की अवधि पूरी होने पर अपने पुराने अखबार पर लौटे ही नहीं!
ऐसे में प्रिंट मीडिया की विज्ञापन आय तो कम होगी ही, प्रसार संख्या भी सिकुड़ जाएगी। नतीजे में पत्रकार और गैर-पत्रकार कर्मचारियों पर बड़े पैमाने पर छंटनी की तलवार लटकना लाजिमी है। अखबारों के लिए कागज-स्याही और अन्य सामग्री बनाने वाले उद्योगों पर भी इसका असर पड़ेगा ही पड़ेगा।
प्रिंट मीडिया, जिसे मैं विज्ञापन उद्योग कहता रहा हूं, के इस संभावित भविष्य की कल्पना करके ही सिहरन होती है। काश, यह कल्पना गलत साबित हो और प्रिंट मीडिया इस गहरे संकट से उबर सके।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों सरकारी मिलकर प्रिंट मीडिया को इस संकट की घड़ी से निकाल सकती है।
आदित्य कुमार दूबे "चम्पारण नीति" अखबार के संपादक हैं