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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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प्रिंट मीडिया के समक्ष वर्तमान चुनौतियां

आज है विश्व प्रेस स्वतन्त्रता दिवस

संतोष गंगेले/ लोकतंत्र का सजग प्रहरी प्रेस की आजादी है। देश को आजादी दिलाने में प्रिंट  मीडिया की अहम भूमिका रही। लेकिन प्रिंट मीडिया का प्रभाव 1984 तक प्रभावशाली रहा इसी बीच इलेक्ट्रानिक उपकरणों का भारत में प्रवेश हो जाने के कारण प्रिंट मीडिया के समक्ष अनेक चुनौतिया शुरू हो गई।  प्रिंट मीडिया में जो कठिनाईया छापा मशिनों के समय थी वह कम जरूर हुई हैं लेकिन प्रिंट मीडिया के लिए इलैक्ट्रानिकल मीडिया, सोशल मीडिया कम्प्यूटर, इंटरनेट, मोबाईल, फेशबुक, टियुटर, व्हाटसअप, आदि को भी विकाशगति में जुड़ जाने के कारण प्रिंट मीडिया प्रेस (छापा मषीनों) का स्तर कम हो गया । प्रिंट मीडिया में जहां एक अखबार की छपाई के लिए दस व्यक्तियों की आवश्यकता होती थी आज वह दो व्यक्तियों से अखबार की छपाई व बंडल बाधने का कार्य हो गया जिससे बैरोजगारी बड़ी तथा रोजगार के अवसर कम हुये। प्रिंट मीडिया का जो व्यापार था वह वर्तमान समय में बहुत की कम रह गया। आम व्यक्ति अपना व्यापार का प्रचार प्रसार, उसकी क्वालटी की जानकारी कम दामों में कम समय में इलेक्ट्रानिकल चैनल, टीवी, फेसबुक, व्हाट्सअप आदि के माध्यम से अपनी बात रख एवं कर लेते है जिससे प्रिंट मीडिया का हानि उठानी पड़ रही है ।

प्रिंट मीडिया में वर्तमान चुनौतिया इस प्रकार से बढ़ती चली जा रही है कि प्रिंट मीडिया से प्रकाशित समाचार पत्रों को प्रतियोगिता की दौड़ में समाचार पत्र, पत्रिकायें, में भौतिकवादी युग की छाया के साथ कार्य करना आवश्यक हो गया है। वर्तमान समय में प्रिंट मीडिया के लिए जो प्रिंटर या छापा मशिनें बाजार में आ रही है उनकी लागत पुजी दस लाख से दो से तीन करोड़ तक पहुच रही है । ऐसे समय में प्रिंट मीडिया से जुड़े संपादक, प्रकाशक मुद्रॅक के सामने आर्थिक संकट आना ही है। इस कारण उद्योग पति या पुजीपतियों के हाथ में प्रिंट मीडिया का कारोबार सिमट कर रह गया है।  प्रिंट मीडिया से प्रकाशित समाचार पत्रों के लिए सुबह से रात्रि 9 बजे तक की घटनाओं एंव समाचारों के लिए अपने सूत्र विश्वनीयता के साथ खोजना होते है चॅूकि वर्तमान समय में इलेक्ट्रानिक मीडिया इंटरनेट, सोशल मीडिया, व्हाटसअप जैसे सूचना संदेश में पल पल की खबरें आम जन तक पहुच जाती है उसके बाद भी प्रिंट मीडिया को अपनी विश्वनीयता बनाये रखने के लिए समाचारों की तह तक जाने के लिए किसी भी समाचार के पाच सूत्र कब, क्यों, कैसे, कौन व कहां प्रश्नवाचक शब्दों को समाहित करने के बाद ही समाचार का प्रकाशन किया जाता है कम शब्दों में सम्पूर्ण सार प्रदान करने के लिए कठिन मेहनत करना होती है । समाचार पत्र प्रकाशन के साथ ही पाठ तक समाचार पत्र भेजने के लिए ऐजेन्ट या अपने प्रतिनिधिओं, संवाददाताओं के बीच तालमेल बनाकर सुबह की किरणें निकलने के पूर्व पाठक के हाथ में समाचार पत्र भेजने की व्यवस्था पत्र संपादक या प्रसार व्यवस्थापक को व्यवस्थित करना होती है। समाचार पत्र की अग्रिम राशि ऐजेन्ट से लेने के बाद ग्राहक से एक माह या दो माह की राशि वसूली करेन में अनेक कठिनाईया होती है। 

समाचार पत्र में प्रकाशित समाचारों में इस बात का भी पूर्ण ध्यान रखना होता है कि जो समाचार प्रकाशित किया गया है उसकी पूर्ण सत्यता हो । संपादक/ पत्रकार को किसी भी छवि खराब करने का अधिकार नही दिया गया है । क्योकि भारतीय प्रेस परिषद के नियम व कानून के साथ समाचार पत्र में किसी भी समाचार की सत्यता न होने पर अपराध की श्रेणी में आकर प्रकाशक, संपादक मुद्रॅक एवं वितरक को दण्ड का भागीदार भी बनाया जा सकता है । भारतीय दंड संहित की धारा 499, 500, 501, 502 के पत्रकार संपादक को सजा का प्रावधान रखा गया है । यदि कोई भी पत्रकार/संपादक/ब्यूरो चीफ ब्लैकमेल की कोशिश कर जबरन विज्ञापन या राशि मांग करता है तो उसके विरूद्ध अवैध वसूली अपराध धारा 384 ता0हि0 का प्रकरण दर्ज हो सकेगा ।

आज 3 मई विश्व प्रेस दिवस के रूप में पूरे विश्व में पहचाना जाता है । वर्ष 1993 से  विश्व प्रेस दिवस मानाया जाने लगा है।  भारत की आजादी के बाद 1948 में संविधान के अनुच्छेद  19 में मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में प्रेस की आजादी की अभिव्यक्ति दी गई है। मेरी नजर में देश को आजाद कराने बाले पत्रकारों के पास आर्थिक धन का आभाव हुआ करता था तथा साधनहीन हुआ करते थें तथा पत्रकार की पहचान पूर्ण रूप से देश एवं समाजसेवा होती थी। वे पैदल चलते थे तथा यदि कोई पत्रकार समर्थ है, तो उसके पास साईकिल हुआ करती थी समाचार भेजने का एक मात्र साधन डाक विभाग हुआ करता था, इसलिए क्षेत्रीय खबरे सप्ताह या हर महीने पढ़ने का मिला करती थी। लेकिन सही सत्य व विष्वास पात्र समाचार हुआ करते थे। कर्मयोगी एवं समाज सुधारक व्यक्ति ही पत्रकारिता के क्षेत्र में अपना जीवन न्यौछावर किया करते है। 

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना