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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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नीतीश का जनता दरबार और मीडिया का ‘गिद्ध भोज’

हंगामा करने वाले से ज्यादा मीडियावाले बेताब थे

वीरेंद्र कुमार यादव। बिहार के मुख्यमंत्री का जनता दरबार अपनी उपलब्धियों और समस्याओं के निबटारे के लिए कभी चर्चा में नहीं रहा है। इसकी चर्चा दरबार में होने वाले हंगामे और सीएम के प्रेस कॉन्फ्रेंस के कारण होती है। अब तो दरबार में धरना-प्रदर्शन तक होने लगा है। ऐसे कार्यक्रम मीडिया के लिए ‘गिद्ध भोज’ के समान होते हैं।

आज से बरसों पहले गिद्ध हुआ करते थे। अब लुप्तप्राय हैं। बचपन में देखा था। जब किसी पशु के मरने के बाद  लोग उसे गांव से बाहर ले जाकर फेंक देते थे। इन मृत पशुओं की सूचना गिद्धों तक पहुंच जाती थी। कैसे पहुंचती थी सूचना, आज तक समझ में नहीं आया। आसमान में चारों ओर से गिद्ध उस स्थान पर पहुंचने लगते थे। इसे देखकर लोग समझ जाते थे कि कहीं किसी का पशु मर गया है। गिद्धों के इसी मजमा को लोग ‘गिद्ध भोज’ कहा करते थे।

जनता दरबार का भी कुछ-कुछ नजारा ऐसा ही होता है। जैसे ही कोई फरियादी जोर-जोर से बोलने लगता है तो चैनलवाले भाई चोंगा उसके मुंह में डाल देने को बेताब हो जाते हैं तो कैमरा वाले भाई उसकी हर अदा को कैद करके धन्य होना चाहते हैं। कलम के सिपाही टूकूर-टूकूर बस नजारा देखते रहते हैं।

अब जनता दरबार हड़ताली मोड़ और कारगिल चौक में तब्दील होता जा रहा है। यहां धरना, प्रदर्शन और हंगामा की पूरी छूट है। प्रदर्शनकारियों के लिए यह सेफ जोन भी है, क्योंकि यहां लाठीचार्ज, आंसू गैस का खतरा भी नहीं होता है। 19 अगस्त के जनता दरबार में सबकुछ हुआ, जो किसी भी सार्वजनिक चौराहों पर होता है। नालंदा के एक थे वीरेंद्र सिंह। उनकी दहाड़ से अधिकारी भी दहशत में थे।  मीडियावालों को बैठे-बैठाये मिल गया ‘गिद्धभोज’ का नेवता। चोंगावाले उसकी दहाड़ को कैद करने के बाद उनका नाम जानने चाहते थे। उन्होंने बताया कि मेरा नाम है वीरेंद्र सिंह। मैं भी क्यों मौका छोड़ता। मैंने पूछा, कौन वाले सिंह जी हैं। उन्होंने कहा-राजपूत।

कृषि विभाग से जुड़े कुछ बेरोजगार युवक कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह को घेरे हुए थे। इन युवकों के शोर-शराबे के कारण मंत्री जी का दम ही फुलने लगा था। स्थिति को भांपते हुए सुरक्षाकर्मियों ने युवकों को वहां से हटाया और अलग ले जाकर धरने पर बैठाया। अभी मामला शांत होता दिख ही रहा था कि हंगामा करता हुआ एक और ग्रुप वहां पहुंच गया। हाथ में किसी अखबार लेमिनेट किया हुआ पन्ना लिए थे, जिसका शीर्षक था - बेजोड़ विकास। उस पन्ने को लहराता हुआ नेता कह रहा था-कहां दिख रहा है विकास, खाली अखबार में। हंगामा करने वाले से ज्यादा मीडियावाले बेताब थे। सुरक्षाकर्मियों ने उस समूह को गेट से बाहर किया।
हंगामे के दौरान ही मैं एक मंत्री से गपिया रहा था। उन्होंने कहा, लगता है यह हंगामा भी विरोधियों की साजिश है। यह जनता दरबार भी विरोधियों का अखाड़ा बन गया है। मंत्री जी की भाव-भंगिमाओं से उनकी बेचैनी और बेचारगी को समझा जा सकता था।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना