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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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चौथे स्तम्भ की औक़ात बताते "अराजक माननीय"

तनवीर जाफ़री/ माना जाता है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत वर्ष की बुनियाद चार मज़बूत स्तम्भों पर टिकी हुई है। यह चार स्तम्भ हैं विधायिका, कार्यपालिका, न्‍यायपालिका और मीडिया (प्रेस)। लोकतंत्र की सफलता के लिए इन चारों स्तंभों का मज़बूत होना बेहद ज़रूरी है । मज़बूती का अर्थ यही है कि चारों स्तम्भ अपना अपना काम पूरी ईमानदारी, ज़िम्मेदारी, निष्पक्षता व निष्ठा से करें। विधायिका लोकहितकारी तथा देश की प्रगति व विकास सम्बन्धी क़ानून बनाए। कार्यपालिका उन क़ानूनों को पूरी तत्परता व ईमानदारी से लागू करे। न्‍यायपालिका क़ानूनों की व्‍याख्‍या करे तथा उनका उल्‍लंघन करने वालों को दण्ड दे। परन्तु चौथे स्तम्भ अथवा मीडिया की भूमिका सबसे अहम् है। मीडिया समसामयिक विषयों पर लोगों को जागरुक करने तथा उनकी राय बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है वहीं वह सत्ता के अधिकारों व शक्ति के दुरुपयोग को रोकने में भी महत्‍वपूर्ण किरदार अदा करता है। यह सरकार व जनता के लिए दर्पण का काम भी करता है। यही वजह है कि किसी भी देश में स्‍वतंत्र व  निष्‍पक्ष मीडिया भी लोकतंत्र के दूसरे स्‍तंभों जितना ही मज़बूत माना जाता है। परन्तु गत कई वर्षों से भारतीय मीडिया विशेषकर यहाँ के अधिकांश ख़बरिया चैनल्स मीडिया की साख गिराने पर तुले हुए हैं। यह खेल सत्ता के दबाव में आकर, विज्ञापनों की लालच में, सत्ता द्वारा ऊँचे पद हासिल करने की ग़रज़ से तो कहीं साम्प्रदायिकता का चोला ओढ़ कर खेला जा रहा है। ऐसे कई टी वी चैनल्स अपनी अनैतिकता व ग़ैर ज़िम्मेदारी के चलते लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ को कलंकित करने में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ रहे हैं।

गत पांच वर्षों में इन चैनल्स ने सत्ता की ख़ुशामद परस्ती, चाटुकारिता तथा विभाजनकारी एजेंडे को आगे बढ़ाने के सिवा और कुछ नहीं किया। जनसरोकारों से आँखें मूँदे बैठे मीडिया ने आलोचकों की नज़रों में अपनी हैसियत कुछ ऐसी बना डाली कि इसे "दलाल" व "बिकाऊ मीडिया" और "गोदी मीडिया" के नाम से पुकारा जाने लगा। इस "प्रदूषित वातावरण " में देश के कई प्रतिष्ठित पत्रकारों ने या तो अपने ज़मीर को न बेचने व इसका सौदा न कर सकने की ख़ातिर टी वी चैनल्स से विदा हो जाना बेहतर समझा। चौथे स्तम्भ की आबरू बचाने के लिए कई पत्रकारों को अपनी जान देनी पड़ी। अनेक पत्रकारों ने सोशल मीडिया के माध्यम से जनता तक अपनी आवाज़ पहुँचाने का रास्ता अख़्तियार करते हुए अपने यू ट्यूब चैनल्स संचालित कर लिए। मीडिया द्वारा सत्ता की चापलूसी करने की यह बेल अब इतनी फैल चुकी है कि पांच वर्षों तक सत्ता की ख़ुशामद करने का ख़मियाज़ा भी अब चैनल्स के पत्रकारों व सम्पादकों को भुगतना पड़ रहा है। पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी के क़द्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय की पत्रकारों से की गयी अभद्र वार्ता से तो कम से कम यही ज़ाहिर हो रहा है। 

पिछले दिनों कैलाश विजयवर्गीय के पुत्र आकाश विजयवर्गीय, जो कि इंदौर  के क्षेत्र संख्या  तीन के भाजपा के विधायक हैं  ने सरेआम नगर निगम के एक अधिकारी की क्रिकेट के बल्ले से ज़ोरदार पिटाई कर डाली। घटना के बाद भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीयकी गिरफ़्तारी भी हो गई. आकाश  के विरुद्ध  थाना एमजी रोड में धारा 353, 294, 506, 147, 148 के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है। हालाँकि बाद में उनको ज़मानत पर रिहा भी कर दिया गया।  नगर निगम के अधिकारी अतिक्रमण रोकने के लिए वहां पर एक जर्जर मकान को तोड़ने गए थे. बताया जा रहा है कि शिव राज चौहान के शासन में ही इस प्रकार के जर्जर मकानों को ख़ाली कराने व इन्हें गिरा देने का आदेश दिया गया था। नगर निगम के कर्मचारी उसी आदेश का पालन कर रहे थे। तभी आकाश ने नगर निगम ऑफ़िसर की क्रिकेट के बल्ले से पिटाई कर डाली। इस अधिकारी को बाद में आई सी यू में भर्ती कराया गया। अपने इस अराजकतापूर्ण व्यवहार पर "माननीय" विधायक आकाश विजयवर्गीय को कोई दुःख या पछतावा नहीं है। बल्कि उनके हौसले और भी बुलंद हैं।

इस घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी ने इंदौर में नगरनिगम कर्मियों की बल्ले से पिटाई करने वाले भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय के समर्थकों ने उसके पक्ष में धरना-प्रदर्शन किया और इंदौर शहर में 'सैल्यूट आकाशजी' के पोस्टर लगाए।सवाल यह है कि स्वयं को दूसरे दलों  से अलग कहने वाले राजनीतिक दल का क्या यही चाल, चरित्रऔर चेहरा है? बैट भांजने के बाद भी आकाश विजयवर्गीय फ़रमाते हैं कि वो इसी तरह से भ्रष्टाचार और गुंडई को ख़त्म करेंगे. उन्होंने इस बेशर्मी भरे कृत्य को सही ठहराते हुए कहा  कि अब हम ‘आवेदन, निवेदन और फिर "दना दन" के तहत कार्रवाई करेंगे.’गोया लोकतंत्र के दो मज़बूत स्तम्भ लोकतंत्र का सहारा बनने के बजाए अब आपस में टकराने की स्थिति में पहुँचते दिखाई दे रहे हैं। 

जब उपरोक्त शर्मनाक घटना के सम्बन्ध में उनके पिता व भाजपा के रणनीतिकार कैलाश विजयवर्गीय से बात की गयी तो वे इस घटना से शर्मसार होने या अपने पुत्र की हिंसक गतिविधि के लिए शर्मिंदा होने के बजाए प्रश्न कर्ता पत्रकार से ही उलझ गए।पत्रकार जब अपनी दलीलें पेश कर रहा था की वी डीओ फ़ुटेज में आकाश द्वारा निगम कर्मचारी को बल्ले से पीटते हुए दिखाई दे रहा है। इस पर  कैलाश विजयवर्गीयने बार बार उस पत्रकार से कहा की तुम्हारी हैसियत क्या है ? तुम्हारी औक़ात क्या है? तुम जज हो क्या ? कैलाश विजयवर्गीय इस के अतिरिक्त भी कई बार मीडिया से इसी अंदाज़ में पेश आ चुके हैं। रिपब्लिक टी वी  के मुख्य प्रबंधक अर्नब गोस्वामी से आसाराम के सम्बन्ध में की गयी एक बात चीत के दौरान भी उनहोंने अर्नब से भी ऐसी ही भाषा में बात की थी।  कैलाश विजयवर्गीय का कहना था कि आसाराम को कांग्रेस ने साज़िश के तहत फंसाया है। इसपर अर्नब ने कहा कि आप अभी और इसी समय प्रमाण दीजिये कि लड़की का बलात्कार नहीं हुआ और यह कांग्रेस की साज़िश थी। अपने को घिरा देख कैलाश विजयवर्गीय ने अपना आपा खो दिया और लगे अर्नब को भी उनकी हैसियत दिखाने। उन्होंने रिपब्लिक टी वी को इन शब्दों में चुनौती दे डाली कि तुम्हारे चैनल की इतनी भी हैसियत नहीं कि 5 वोट का भी फ़ायदा या नुक़सान पहुंचा सके। अर्नब ने भी उन्हें धमकाया कि मैं अभी आपके सारे ट्रैक रिकार्ड उजागर कर दूंगा। इस प्रकार का आक्रामक रुख़ अख़्तियार करने वाले  कैलाश विजयवर्गीय का भी एक पुराना चित्र उनके पुत्र के बल्ला भांजते हुए चित्र के साथ साँझा किया गया जिसमें कैलाश विजयवर्गीय एक पुलिस अधिकारी पर जूता ताने हुए दिखाई दे रहे हैं। इस  तस्वीर को लोगों ने सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर किया तथा इसे आकाश विजयवर्गीय की कारगुज़ारी से जोड़ने की कोशिश की गयी। लोगों ने इस चित्र के साथ यह कमेंट भी लिखा - 'पापा कहते हैं बड़ा नामकरेगा ... बेटा हमारा ऐसा काम करेगा ...'  और 'बेटा बाप को देख कर ही सीखता है' आदि ..... 

बहरहाल, लोकतंत्र के स्तम्भों पर काले बादलों की छाया और घनी होती जा रही है। कभी पुलिस इन्स्पेक्टर की जान ली जा रही है कहीं सी एम् ओ को पीटा जा रहा है। कहीं भगवान तुल्य गुरु और प्रधानाचार्य की पिटाई करने और उनका मुंह काला करने की ख़बरें आती हैं। तो कभी पत्रकारों की हत्या व पिटाई की जा रही है और उनके पेशे को चुनौती दी जा रही है। आश्चर्य इस बात का है कि इस प्रकार की चुनौती पेश करने वालों का अपना रिकार्ड भी अराजकता से भरा हुआ है। ऐसे वातावरण में लोकतंत्र के चारों स्तम्भों का सुदृढ़ रहना और अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी,निष्पक्षता व निर्भयता से निभाना बहुत ज़रूरी है। विधायिका के फ़ायर  ब्रांड व अराजकता पूर्ण व्यवहार करने वालों को कार्यपालिका के शिक्षित व समर्पित लोगों पर आक्रमण करने का कोई अधिकार नहीं। कार्यपालिका से जुड़े लोग न केवल शिक्षित होते हैं बल्कि सेवा शुरू करने से पूर्व इनसे चरित्र प्रमाण पत्र माँगा जाता है। जबकि विधायिका के अनेक लोगों का चरित्र जग ज़ाहिर है। यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि असामाजिक व अराजक तत्वों की राजनीति में बढ़ती घुसपैठ ने भारतीय विधायिका को कुरूप कर दिया है। मीडिया की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सत्ता की दलाली व उसके प्रभाव से मुक्त होकर अपने को लोकतंत्र का "चौथा स्तम्भ " साबित करे। और ऐसे अराजक माननीयों को उनकी औक़ात ज़रूर बताए जो समय समय पर चौथे स्तम्भ व कार्यपालिका यहाँ तक अदालतों से मन मुआफ़िक़ फ़ैसले न आने पर कभी कभी न्यायपालिका को भी उसकी औक़ात बताते रहते हैं।  

तनवीर जाफ़री

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सम्पादक

डॉ. लीना