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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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Blog posts : "फेसबुक से "

आपका भरम कि आप सोशल मीडि‍या का उपयोग कर रहे, हकीकत-आपका इस्‍तेमाल हो रहा

द गार्जियन के खुलासे पर भारतीय मीडिया में अजीब सी चुप्पी है

गिरीश मालवीय/ द गार्जियन के खुलासे पर भारतीय मीडिया में अजीब सी चुप्पी है। कल गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इ…

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पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता के 7 साल

हमने हर खबर में अपना पक्ष रखा है

वीरेंद्र यादव न्‍यूज। दिसंबर, 2015 में अपनी यात्रा शुरू की थी। सब कुछ अनिश्चित। पड़ाव न मंजिल। चलते-चलते सात वर्षों की यात्रा पूरी हो गयी। निरंतर और निर्बाध यात्रा। रास्‍ते में…

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उर्दू मीडिया के दो सौ वर्ष पूरे

उर्मिलेश/ अतीत, वर्तमान और भविष्य. निश्चय ही यह उर्दू पत्रकारिता के संदर्भ में महत्वपूर्ण विषय है, जिस पर गंभीर चर्चा और विचार जारी रहना चाहिए. सिर्फ इसलिए नहीं कि उर्दू पत्रकारिता के दो सौ वर्ष पूरे हो गये, इसलिए भी कि आज उर्दू पत्रकारिता बल्कि यूं कहें उर्दू भाषा के समक्ष भी बड़ी च…

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जी हां ये हैं हमारे न्यूज चैनल

प्रेमेंद्र । चीते कैसे सुबह जागे .. मोर ने उन्हें जगाया, चूंकि इतवार था यानी छुट्टी का दिन तो चीतों ने मस्ती में इतवार गुजारा। सोमवार होता तो ड्यूटी पर जाते। काम की भागदौड़ होती। हां  उन्होंने लंच में भैंसे का मांस खाया था। खाने के बाद उन्होंने डकार भी ली थी जो 3 सेकेंड लम्बी थी…

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अब रिपोर्टर की होती है प्रेस कॉन्फ्रेंस

विनीत कुमार। एक ही मीडिया संस्थान ने अलग-अलग नाम से इतनी दूकान खोल ली है और उसमें एक ही रिपोर्टर के उपर माल भरने की जिम्मेदारी आ गयी है कि आप यदि रिपोर्टर और उसके मीडिया संस्थान की दूकान में बैठे मीडियाकर्मियों की बात पर ग़ौर करें तो पाएंगे फील्ड में गए रिपोर्टर पर महज रिपोर्ट …

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उसको बॉस को गले लगाने का मन तो करता नही होगा!

विनाश कुमार सिंह/ एक युवा रिपोर्टर पर पटना के एक न्यूज चैनल ने 10 करोड़ रुपये मानहानि का दावा किया है। वजह ये कि रिपोर्टर ने कई महीनों की तनख्वाह नहीं मिलने के एवज में कंपनी का कैमरा उठा लिया। रिपोर्टर के मुताबिक उसके साथ मारपीट भी की गई।…

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मीडिया आलोचना ही अपने आप में एक पेशा हो

विनीत कुमार। मीडिया से जुड़े किसी भी मसअले पर बोलने के बाद मेरा अनुभव यही रहा है कि हर बार मीडिया की पढ़ाई कर रहे छात्र ये समझ लेते हैं कि आलोचना की है इसका मतलब है कि इसमें कोई भविष्य नहीं है. वो सहज भाव से सवाल करते हैं कि तो फिर उम्मीद क्या है ?…

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न्यूज पोर्टल ऐसे शीर्षक लगाते हैं जो पाठक की आदिम आदत का पोषण कर सकें

विनीत कुमार। न्यूज वेबसाइट/पोर्टल  की स्टोरी का शीर्षक लगाने के पीछे का मनोविज्ञान भीतर की सामग्री क्या है, ये बताना नहीं बल्कि हमारे पाठक ताक-झांक की आदत के साथ बड़े हुए हैं तो क्लिक करेंगे ही से आत्मविश्वास के साथ अपना कारोबार जारी रखना होता है.…

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बिग बॉस की नजर मंचन पर भी!

राजेश कुमार/ जी हां, आप कुछ भी कर रहे हों ...चाहे कोई राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधि कर रहे हों , आप पर बिग बॉस की नजर है । जॉर्ज ऑरवेल ने अपने अपने उपन्यास 1984 में भले बहुत पहले इस खतरे की तरफ इशारा कर दिया था, लेकिन उस सत्य से सामना इनदिनों स्पष्ट देखने को मिल रहा है । …

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हर अखबार लगभग एक जैसा खराब है!

विष्णु नागर। जिंदगी भर हिंदी पत्रकारिता की। हिंदी अखबारों का आज का मानसिक दिवालियापन, सरकार की जीहुजूरी, हिंदुत्व का प्रोपेगैंडा और हिंदी को विकलांग बनाने की साजिश सी इस भाषा के अखबारों तथा टीवी चैनलों पर दिखाई पड़ती है, वह व्यथित करती है। गोदी चैनल तो दिनरात नफरत की मशीनगन बने …

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पत्रकार या मेरा पत्रकार ?

यदि इसे हमारे पत्रकार लिखा जाता तो वही अर्थ और भाव निकलता जो इससे निकल रहा है ?

विनीत कुमार/ आप जिस मीडिया संस्थान के लिए रात-दिन एक किए रहते हैं, ख़ून-पसी…

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ख़तरनाक काम हो चुका है पत्रकारिता

प्रश्नपत्र लीक मामले को उजागर करने वाले बलिया के दो ग्रामीण पत्रकार जेल में

शीतल पी सिंह/ निहायत ही ख़तरनाक काम हो चुका है मोदीजी के उदय के बाद । अब विभि…

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अब पत्रकारिता नहीं, विज्ञापनकारिता !

वीरेंद्र यादव/ बातचीत की शुरुआत में छोटी-सी कहानी। बेटा है आदित्‍य। एक साथी आये थे घर पर। उन्‍होंने आदित्‍य से कहा कि पापा को बोलो कि पत्रिका में सिर्फ विज्ञापन निकालें। उसका उत्‍तर था- पत्रिका में पढ़ने के लिए खबर भी होनी चाहिए न।…

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एक माध्यम के तौर पर टीवी तेजी से मर रहा है

मीडिया का शून्य लागत सामग्री फॉर्मूला 

विनीत कुमार। यूक्रेन-कीव में जो लोग मुश्किलों में फंसे हैं, वो बड़ी मुश्किल से विजुअल्स बनाकर अपने परिजनों से साझा कर रहे हैं. उनके परिजन भरी उम्मीद से उन्हें आगे बढ़ा रहे…

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हिन्दी पत्रकारों का बुढ़ापा और भविष्य

संजय कुमार सिंह / छह आठ महीने पहले एक अनजान नंबर से फोन आया था। फोन करने वाले ने पूछा कि संजय जी आपका नंबर मेरे पास काफी समय से सेव है मैं पहचान नहीं पा रहा हूं कि आप कौन हैं। सभ्य और बुजुर्ग सी आवाज थी तो मैंने अपना परिचय बता दिया। उन्होंने भी अपना नाम और हाल-चाल सब बताया…

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मीडिया के बड़बोलेपन में इन्डस्ट्री के भीतर का ख़तरनाक सन्नाटा बरक़रार

विनीत कुमार। एंकरिंग करते हुए दीपक चौरसिया का “बेउडा वीडियो” सामने आने के बाद लोग मुझे लिख रहे हैं कि आपको भले ही आश्चर्य हो रहा होगा, पूरी इन्डस्ट्री को पता है कि वो क्या करते हैं ?…

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मिडिया का घेरा और स्वतंत्र राय

राम जी तिवारी/ किसी भी मुद्दे पर राय बनाते समय आप कौन सी तकनीक अपनाते हैं । एक तो यह होता है कि जो मुख्यधारा की मीडिया में बात प्रचारित की जा रही होती है, हम उसी के साथ अपना सुर भी मिलाने लगते है। दूसरे यह भी संभव है कि हम मुख्यधारा की मीडिया से इतना चिढ़े होते हैं कि वह जो भी क…

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विदेश में भी भारत के पत्रकार चाटुकारिता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर रहे

गिरीश मालवीय। मीडिया की छवि देश में तो गोदी में बैठे मीडिया की बन ही गयी है पर अब तो विदेश में भी भारत के पत्रकार बेहयाई ओर चाटुकारिता के सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर रहे हैं.जना ओम मोदी कल जबरदस्ती यूएन में तैनात स्नेहा दुबे नाम की अधिकारी जिन्होंने दो दिन पहले यूएन के सम्मेलन म…

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मीडिया ने सच बताने का दायित्व बिल्कुल किनारे कर दिया है

गिरीश मालवीय। कल दैनिक भास्कर के बहुत से संस्करणों के फ्रंट पेज पर एक लेख छापा गया जिसका शीर्षक था  'अब आधार जैसा यूनिक हेल्थ कार्ड मिलेगा जिसमें आपका पूरा मेडिकल रिकार्ड होगा'........दरअसल इस लेख में जो भी जानकारी दी गयी वो लगभग साल भर पुरानी थी.…

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समस्या पर बात करना यदि निगेटिविटी, तो फिर पत्रकारिता का मतलब क्या

विनीत कूमार/ पॉजेटिव और निगेटिव को लेकर हमारी समझ इतनी सपाट है कि कारोबारी मीडिया को सकारात्मक न्यूज के नाम पर नयी दूकान की संभावना दिखने लग जाती है.…

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सम्पादक

डॉ. लीना