Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

मीडिया शर्म की बातों पर गर्व करना सीखा रहा

गिरीश मालवीय / यह खेल फिर से शुरू हो गया.... 38 साल के स्कूल टीचर देवेंद्र, अपने दोस्त रंजन अग्रवाल के लिए एक ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर झारखंड के बोकारो से लगभग 24 घंटों तक 1400 किलोमीटर गाड़ी चलाकर नोएडा दोस्त की मदद को पहुंचे। ...

तालिया बजाइये !.....उनके लिए वाह वाह कीजिए। ....

अरे भाई बीच में यूपी भी तो पड़ा होगा जिसके मुख्यमंत्री बोल चुके है कि आक्सीजन की कही कोई कमी नहीं है  उस पर कोई जवाब तलब नहीं करेगा क्या ?

ऐसे ही सुबह भी खबर आयी कि नागपुर के 85 वर्ष के कोरोना पीड़ित नारायण डाभालकर ने अपना बेड एक नौजवान को दे दिया तीन दिन बाद बुजुर्ग की मृत्यु हो गयी। ......

शर्म आना चाहिए कि हम अपने बुजुर्गो को इलाज मुहैया नहीं करवा पा रहे है ! बेड नहीं है हमारे पास !.........

ऐसे ही पिछली बार झारखंड के रहने वाले युवक ने अपनी गर्भवती पत्नी को स्कूटर पर बिठाकर ग्वालियर तक 1,200 किलोमीटर का सफर तय किया ताकि उसकी पत्नी डी एड की परीक्षा दे सके......तब भी इस  दंपती को नायकों की तरह प्रस्तुत किया गया था। .......पिछले साल लॉक डाउन में बिहार की लड़की द्वारा अपने पिता को घर ले जाने 1200 किलोमीटर साइकिल का सफर को मीडिया हाइलाइट कर रहा था,  वाह वाह कर रहा था।

इन सब घटनाओ में किसकी गलती है ?

क्या सरकार का यह कर्तव्य नही है कि वह अपने नागरिकों को उनके शहर में बेड उपबब्ध करवाए ? आक्सीजन जैसी मुलभुत सुविधा उपलब्ध करवाए,  

आक्सीजन मरीज के परिजन से मंगवाने की बात करना ही क्राइम होना चाहिए ? लेकिन देखिए हम सिलेंडर पीठ पर उठा कर भटकने के लिए कैसे आतुर हुए जा रहे है। ......यह सब इसलिए क्योकि हम उसके लिए अपने जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ही नहीं मान रहे है

आपने कभी देखा है विदेशो में ऐसे दृश्य देखने को मिले हो ! कोई फोटो देखि आपने !.... जबकि ब्राजील तो हमारे जैसा ही देश है 

यहाँ हो यह रहा है कि हमारा मीडिया हमारे दिमाग को डायवर्ट कर रहा है ताकि हम सरकार से कोई सवाल न करे उन पर उँगली न उठाए बल्कि उल्टा इन बनावटी नायकों की प्रशंसा करे.....इन्हें अपना आइडियल माने

हरिशंकर परसाई ने कही लिखा है कि 'जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हंसें और ताली पीटें, उसमें क्या कभी कोई क्रांतिकारी हो सकता है ? ....

हमारा मीडिया शर्म की बातों पर भी गर्व करना सीखा रहा है ताकि हम अपने हक की बात सरकार से न कर पाए !

यह खेल समझना और समझाना बहुत जरूरी है.

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना