Menu

 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

Print Friendly and PDF

मीडिया कर्मियों से ये कैसा सलूक?

प्रवीण बागी। यह एक अजीब विडंबना है। कोरोना से लड़ने के लिए मेडिकलकर्मियों, पुलिसकर्मियों और सफाईकर्मियों को सम्मानित किया जा रहा है। पूरा देश उनके लिए ताली बजाता है। दीया जलाता है। वायुसेना के हेलीकॉप्टर पुष्पवर्षा करते हैं। प्रधानमंत्री उन्हें कोरोना वारियर्स का नाम दे रहे हैं। अच्छा है। इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती। वे इसके अधिकारी हैं। लेकिन एक और वर्ग है जो खुद को जोखिम में डाल कर इन कोरोना वारियर्स के कार्यों को, उनकी कठिनाइयों को, आम नागरिकों की समस्याओं को लोगों तक, सरकार तक पहुंचा रहा है। वह है मीडियाकर्मी। लेकिन उसके साथ कैसा सलूक हो रहा है?क्या इसपर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए? 

कोरोना से हुई मंदी के बहाने पत्रकारों की नौकरी छीनी जा रही है। वेतन रोका जा रहा है। नामी गिरामी मीडिया घराने इसमें आगे हैं। कुछेक मीडिया हाउसों को छोड़ दिया जाए तो प्रायः सभी संस्थान पत्रकारों के कत्लगाह बन गए हैं। 

नौकरी के लिहाज से पत्रकारिता सबसे खतरनाक पेशा बन गई है। किसी भी समय आपको नौकरी छोड़ने को मज़बूर किया जा सकता है।बहाना कुछ भी हो सकता है।श्रम कानून और सरकारें मीडिया हाउस के मालिकों के पक्ष में काम करती नजर आती हैं।

अभी कोरोना नौकरी से हटाने का मजबूत बहाना बना हुआ है। यह ठीक है कि कोरोना के कारण मंदी है। कमाई कम हुई है। लेकिन स्थिति इतनी भी बुरी नहीं है कि लोगों को नौकरी से निकाल दिया जाये। खर्चे कम करने के हज़ार तरीके हैं। उन्हें आजमाया जा सकता है।

मैंने अपने 35 वर्ष के पत्रकारीय जीवन में ऐसा कभी नहीं देखा या सुना जब संस्थान ने यह कहा हो कि इस वर्ष बहुत मुनाफा हुआ है, इसलिए डबल बोनस दिया जायेगा। यह सवाल पूछा जाना उचित है कि जब कमाई सब आपकी जेब में तो फिर घाटा मीडियाकर्मियों के मत्थे क्यों?

प्रधानमंत्री जी ने प्राइवेट सेक्टर से अपील की थी कि किसी को नौकरी से नहीं निकाला जाए लेकिन उसका कोई असर नहीं दिखता। पूरे देश में हज़ारों मीडियाकर्मी की नौकरी छीनी जा चुकी है, क्या सरकार को यह मालूम नहीं? भले आप उन्हें कोरोना वारियर्स मत मानिए लेकिन इस संकटकाल में कम से कम उसके पेट पर तो लात मत मारिये! क्या सरकार और मीडिया हाउस के मालिकों से इतनी भी अपेक्षा नही की जा सकती?

पता नहीं क्यों सरकारें मालिकों के साथ खड़ी दिखती हैं? अपने पक्ष में खबरें दिखाने के लिए सरकारें मीडिया हाउसों की बाहें तो मरोडती हैं, लेकिन मीडियाकर्मियों की नौकरी सुरक्षित करने के लिए कुछ नहीं करतीं। 2011 में स्वीकार की गई मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसा आज तक पूरी तरह लागू नहीं की जा सकी है। इसमें सरकार से लेकर न्यायपालिका तक का रवैया ढुलमुल रहा है।

सरकारें अगर चाहें तो मीडियाकर्मियों की छीनी गई नौकरी भी वापस मिल सकती है। तरीका बहुत आसान है। केंद्र और राज्य सरकारें सिर्फ यह घोषणा करें कि सरकारी विज्ञापन उन्हीं मीडिया हाउसों को दिया जायेगा जिनके मालिक यह हलफनामा देंगे कि उन्होंने कोरोना काल में किसी को नौकरी से नहीं निकाला है। फिर देखिए कैसे वे हटाये गये लोगों को भी वापस बुलाते हैं।

क्या सरकारें इतनी सदाशयता दिखायेंगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चाहें तो पत्रकारों की रोजी बचाई जा सकती है। गेंद आपके पाले में है प्रधानमंत्री जी!आपने बड़े-बड़े काम किये हैं, एक यह भी कर दीजिए।

#पत्रकारोंकीपीड़ा

Go Back

Comment

नवीनतम ---

View older posts »

पत्रिकाएँ--

175;250;e3113b18b05a1fcb91e81e1ded090b93f24b6abe175;250;cb150097774dfc51c84ab58ee179d7f15df4c524175;250;a6c926dbf8b18aa0e044d0470600e721879f830e175;250;13a1eb9e9492d0c85ecaa22a533a017b03a811f7175;250;2d0bd5e702ba5fbd6cf93c3bb31af4496b739c98175;250;5524ae0861b21601695565e291fc9a46a5aa01a6175;250;3f5d4c2c26b49398cdc34f19140db988cef92c8b175;250;53d28ccf11a5f2258dec2770c24682261b39a58a175;250;d01a50798db92480eb660ab52fc97aeff55267d1175;250;e3ef6eb4ddc24e5736d235ecbd68e454b88d5835175;250;cff38901a92ab320d4e4d127646582daa6fece06175;250;25130fee77cc6a7d68ab2492a99ed430fdff47b0175;250;7e84be03d3977911d181e8b790a80e12e21ad58a175;250;c1ebe705c563d9355a96600af90f2e1cfdf6376b175;250;911552ca3470227404da93505e63ae3c95dd56dc175;250;752583747c426bd51be54809f98c69c3528f1038175;250;ed9c8dbad8ad7c9fe8d008636b633855ff50ea2c175;250;969799be449e2055f65c603896fb29f738656784175;250;1447481c47e48a70f350800c31fe70afa2064f36175;250;8f97282f7496d06983b1c3d7797207a8ccdd8b32175;250;3c7d93bd3e7e8cda784687a58432fadb638ea913175;250;0e451815591ddc160d4393274b2230309d15a30d175;250;ff955d24bb4dbc41f6dd219dff216082120fe5f0175;250;028e71a59fee3b0ded62867ae56ab899c41bd974

पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना