विनीत कुमार। मीडिया से जुड़े किसी भी मसअले पर बोलने के बाद मेरा अनुभव यही रहा है कि हर बार मीडिया की पढ़ाई कर रहे छात्र ये समझ लेते हैं कि आलोचना की है इसका मतलब है कि इसमें कोई भविष्य नहीं है. वो सहज भाव से सवाल करते हैं कि तो फिर उम्मीद क्या है ?
अभी तक इस देश में मीडिया आलोचना को मीडिया अध्ययन के तौर पर देखने की समझ नहीं बनी है. छात्र यह समझने से चूक जा रहे हैं कि आलोचना करने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप उस पेशे में ही मत जाओ. इसका बल्कि ये मतलब है कि आप जो काम करने जा रहे हो, उसके बारे में ठीक से पता हो. आलोचना भी हमारी ट्रेनिंग का हिस्सा बने. वैसे क़ायदे से तो मीडिया आलोचना ही अपने आप में एक पेशा हो.