नवेन्दु / पहले नेता- मंत्री पत्रकारों से मिलने का समय मांगते थे। अब पत्रकार नेता मंत्री के आगे पीछे करते हैं।...
बड़ी फज़ीहत है भाई ! चौथे खम्भे की ये दुर्गति !
नेता गुर्राता है और पत्रकार कहता है...सर !
वह एक दौर भी था जब सीताराम केसरी जैसे कद्दावर नेता एस सहाय जैसे पत्रकार-संपादक की कार का दरवाजा खोल उनकी अगवानी और विदा करते। आज नेता से मिलने गाड़ी तक भागते हैं पत्रकार और नेता गाड़ी का दरवाजा धड़ से बंद कर लेता है- इतने लाचार, कितने बेचारे हो गए हम!
आखिर क्यों - कैसे ?