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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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महिलाओं पर यह कैसा हिटलरी फरमान ?

सीत मिश्रामहिलाएं जींस नहीं पहन सकतीं। पराये मर्दो से बात नहीं कर सकतीं। बिना घूंघट बाहर नहीं निकल सकतीं। बाजार नहीं जा सकतीं। प्रेम विवाह नहीं कर सकतीं। मोबाइल नहीं रख सकतीं। क्योंकि ये उन्हें बदचलनी की राह पर ले जाते हैं। लिहाजा, महिलाओं-लड़कियों को इनसे दूर रखना चाहिए। कभी बागपत की खाप पंचायत तो कभी हरियाणा की पंचायतें इस तरह के फरमान सुनाती हैं। हद तो तब होती है, जब जनता के प्रतिनिधि भी इनके समर्थन में उतर आते हैं। इन सारी नसीहतों में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि कहीं पर भी पुरुषों को सभ्यता और संस्कार का पाठ नहीं पढ़ाया जाता। स्ति्रयों को ही बांधने-दबाने की कोशिश की गई । 
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला लड़कियों के जल्द विवाह के पक्षधर हैं तो बसपा के सांसद राजपाल सैनी भरे समाज में कहते हैं कि महिलाओं-लड़कियों को मोबाइल नहीं रखना चाहिए। साथ ही वह आदर्श भी प्रस्तुत करते हैं कि उन्होंने अपने परिवार में पत्नी-बेटियों को मोबाइल नहीं दिया है। महिलाओं के लिए ये नियम-कायदे खाप पंचायतें लागू करती हैं और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि उनका समर्थन करते हैं। महिलाएं संस्कारों के भीतर रहें और सभ्य कपड़े पहनें। अगर वे तय फरमानों के खिलाफ जाती हैं तो उनके साथ जो कुछ भी होगा (बलात्कार, छेड़खानी, पिटाई आदि), उसके लिए वे खुद जिम्मेदार होंगी। इन सारी नसीहतों में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि कहीं पर भी पुरुषों को सभ्यता और संस्कार का पाठ नहीं पढ़ाया जाता। हर किसी ने पीडि़ता को ही दोषी ठहराया। स्ति्रयों को ही बांधने की कोशिश की गई। उन्हीं के लिए नियम-कायदे तय किए जा रहे हैं, जो अमूमन अपने हक-अधिकारों से भी वंचित रह गई हैं।
अगर लड़कों को तमीज सिखाने के बारे में पूछा जाए तो बहुतेरे यह कहते मिल जाएंगे कि वे तो जन्मजात उद्दंड होते हैं, उन्हें नहीं सिखाया जा सकता। लेकिन लड़किया तो अपनी गरिमा और अपनी इज्जत बचा कर चलें। हर अपराधी के पास अपने अपराध को सही ठहराने के तर्क होते हैं। उसके तर्को के आधार पर उसे अपराध करने की छूट तो नहीं दी जा सकती और न ही वह सजा से बच सकता है। ऐसी स्थिति में भला एक महिला, जिसके साथ गलत हुआ हो, उसे कैसे दोषी ठहराया जा सकता है। पुरानी बीवी में जिन्हें नई बीवी-सा मजा नहीं आता और जो सार्वजनिक मंच से अपनी कुंठा को साझा करते हैं, उनसे आप स्ति्रयों की हित की उम्मीद भी क्या कर सकते हैं। हरियाणा की सत्तारूढ़ पार्टी के प्रवक्ता ने भी ज्ञानवर्धन करते हुए लोगों को समझाया कि 90 फीसद लड़कियां सहमति से लड़कों के साथ जाती हैं। बाद में उसे बलात्कार कह देती हैं। इस तरह के बयान न केवल पीडि़ता के मनोबल को तोड़ते हैं, बल्कि यौन हिंसा में लिप्त लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करते हैं। हरियाणा की पंचायतों में हाल ही में जिन तुगलकी फरमानों की पैरवी हुई, उनके मुताबिक इन फरमानों में महिलाओं का हित छिपा है।
 खाप पंचायतें यह मानती हैं कि स्ति्रयों की सुरक्षा के लिए ही इस तरह के सख्त निर्देश दिए गए हैं, लेकिन तमाशा तो यह है कि पंचायतों ने छेड़छाड़ की वारदातों को अंजाम देने वाले मनचलों के खिलाफ कोई फरमान जारी नहीं किया। आखिर इन फरमानों से मनचलों को संदेश भी तो यही मिल रहा है कि अगर लड़कियां फरमान को ठुकराती हैं तो उनके साथ बदसलूकी करने का हर किसी को हक है। क्या ये पंचायतें दावा कर सकती हैं कि अगर उनके कहे अनुसार लड़कियां जींस न पहनें, सिर पर दुपट्टा रखकर बाहर निकलें, मोबाइल न रखें तो उनके साथ कोई दु‌र्व्यवहार नहीं होगा, रेप-छेड़खानी जैसी कोई वारदात नहीं होगी। अगर ऐसा होता तो मासूम लड़कियों के साथ रेप जैसी वारदात न होती, 60 साल की बुजुर्ग महिला हैवानियत की शिकार नहीं होती। दरअसल, हमारे समाज का ढांचा ही कुछ इस तरह गढ़ा गया है, जहां स्त्री बेहद कमजोर दर्जे की मानी जाती है। उसका शोषण करना या उस पर अत्याचार करना और फिर बचकर निकल जाना बेहद आसान है। आज ऐसी सामाजिक व्यवस्था को तरजीह देने की जरूरत है, जहां स्त्री के अधिकारों पर पुरुषों का अतिक्रमण न हो। जहां वह खुद को पुरुषों से असुरक्षित न माने, उनसे भयभीत न हो। जहां वह गैरबराबरी और उपेक्षा की शिकार न बने, बल्कि पिता, पति, भाई, बेटा सभी उसे उसके हिस्से का सम्मान और अधिकार दें। स्ति्रयों को ढकोसलों में बांधने की जरूरत नहीं है। उन्हें संस्कारों के नाम पर दकियानूसी लबादा पहनाने के बजाय लड़ना सिखाया जाए। समाज हर परिस्थिति में उनका साथ निभाए तो छेड़खानी, बलात्कार जैसी वारदातों में कमी आएगी।

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सम्पादक

डॉ. लीना