संजीव चंदन। दो-तीन दिन से बिहार में अखबार देख रहा हूँ। एक दिन दैनिक जागरण ने हेडिंग बनायी कि पीएम की हत्या की साजिश के आरोप में पांच गिरफ्तार। हिन्दुस्तान की आज की हेडिंग है 'कोरेगांव के आरोपित रहेंगे नजरबंद। ऐसे ही जनता का ज्ञानवर्धन किया जाता है अखबारों से।
एक नमूना और भी:- पटना एयरपोर्ट पर तीन-तीन चैनल का लोगो और माईक लिए केंद्र के एक मंत्री जी को सवाल पूछने दौड़ रहे पत्रकार जी को मैंने कहा कि '5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सवाल करें।' वो पलटकर बोला, ' कौन पांच लोग, माले वाले जो गिरफ्तार हुए हैं वे?' मैंने खीझकर कहा कि वे माले से थोड़े ही हैं।' उसने ज्ञान देते हुए कहा, 'अरे ये लोग सब माले वाले ही हैं।'
प्रेस कांफ्रेस में एक कुछ चिंतित पत्रकार आखिर पूछ ही बैठा कि कोरेगांव के मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है, सरकार यह क्या कर रही है?' मंत्री जी ने जवाब दिया बच-बचाकर। पिछली बार जब कह दिया था कि अम्बेडकरवादियों को माओवादी बताकर प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए तो सूत्रों के अनुसार प्रधान जी ने उन्हें टोक दिया था एक मीटिंग में। इसलिए इस बार सतर्क थे। बोले माओवादियों की मांग और संघर्ष का सम्मान है लेकिन तरीका गलत है, उन्हें अम्बेडकरवाद के रास्ते पर आना चाहिए। हलांकि इसके पहले उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस के पास इनके खिलाफ पीएम की हत्या की साजिश के मामले में सबूत है। कोई प्रतिप्रश्न को तैयार नहीं था-यह पूछने को कि आनंद तेलतुम्बडे,सुधा भारद्वाज आदि क्या पीएम की हत्या की साजिश कर रहे हैं?'
आज अखबारों में प्रमुखता उनके इन बयानों को नहीं दी गयी है, न शेल्टर होम में सम्पूर्ण सीबीआई जांच के बयान को। प्रमुखता दी गयी है ' सवर्ण गरीबों को मिले 25%आरक्षण' वाले बयान को।