राजेश कुमार/ जी हां, आप कुछ भी कर रहे हों ...चाहे कोई राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधि कर रहे हों , आप पर बिग बॉस की नजर है । जॉर्ज ऑरवेल ने अपने अपने उपन्यास 1984 में भले बहुत पहले इस खतरे की तरफ इशारा कर दिया था, लेकिन उस सत्य से सामना इनदिनों स्पष्ट देखने को मिल रहा है । आप क्या लिख रहे हैं, कौन सा नाटक कर रहे हैं, सब बिग बॉस वॉच कर रहे हैं । जो सोचते हैं कि छिप कर , प्रतीक के सहारे, विदेशी नाटक का ओट लेकर बच जाएंगे तो उनसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा । चापलूसी करने से भी उनकी नजरों से नहीं छिपेंगे । उन्हें जब आपको हलाल करना होगा, कर देंगे । आपकी सारी भक्ति बेकार चली जायेगी ।
13 जुलाई को श्रीराम सेंटर , दिल्ली में मिनिक्षा आर्ट द्वारा 'घर वापसी' नाटक का मंचन किया गया । यह नाटक मेरा लिखा हुआ है । लगभग 20 वर्ष पूर्व लिखा था । धर्मांतरण के बाद हिन्दू धर्म में जाति के आवंटन को लेकर जो संकट उठता है, उसी पर केंद्रित है । संस्था के निर्देशक नितिन शर्मा ने अनुमति के लिए प्रशासन को महीना भर से पहले प्रक्रिया शुरू कर दी थी । मंचन के 2 दिन पूर्व अचानक जवाब आता है कि अनुमति के लिए दिया गया आवेदन निरस्त किया जाता है । खैर संस्था के लोगों ने व्यक्तिगत प्रयास से किसी तरह अनुमति प्राप्त कर लिया तो श्री राम सेंटर के प्रबंधक ने संस्था द्वारा लगाए गए पोस्टर पर आपत्ति जताई और इसमें परिवर्तन के लिए दवाब बनाया । पोस्टर में एक जलते हुए धार्मिक विशाल वृक्ष के एक तरफ हिन्दू लोग हैं तो दूसरी तरफ मुसलमान । प्रशासन तो अनुमति के लिए अड़ंगा लगाता ही हैं , अब इस कड़ी में हॉल प्रबंधक भी आ गया है । इन्होंने संस्था पर इतना दवाब बनाया कि विवश होकर पोस्टर में कुछ बदलाव लाना पड़ा ।
अंकुश का सिलसिला इतने पर भी नहीं थमा । नाटक के मंचन के बाद जब समर्थ थिएटर ग्रुप के रंगकर्मी प्रदीप नायर ने फेसबुक पर उस नाटक की कुछ तस्वीरें पोस्ट करने का प्रयास किया तो फसेबूक द्वारा इन तस्वीरों को समाज के योग्य न मान कर बार - बार रिजेक्ट कर दिया गया ।
अर्थात दूर बैठा, पर्दे के पीछे से देख रहा बिग बॉस की नजर आपके इस छोटे से मंचन पर भी है । वह नहीं चाहता है कि लोगों के बीच वर्ग और वर्ण के सवाल रखे जाएं। उसे कदापि उस स्थापना पर विस्वाश नहीं जो वर्गविहीन, वर्णविहीन समाज को तैयार करने में निरंतर प्रयासरत हैं ।