उर्मिलेश/ हमारे समाज में मीडिया का कारपोरेट तंत्र फल-फूल रहा है पर पत्रकारिता गहरे संकट में है. असल में पत्रकारिता प्रोफेशनल और ऑब्जेक्टिव होकर ही की जा सकती है. मौजूदा मीडिया उद्योग को प्रोफेशनलिज्म और ऑब्जेक्टिविटी हरगिज मंजूर नहीं!
हमारे यहां पत्रकार तो बहुत हो गये हैं. टेलीविजन और अखबार भी बहुत हैं, पर पत्रकारिता बहुत कम है. रेगिस्तान में नखलिस्तान की तरह! टीवी में उसका संपूर्ण लोप हो चुका है! सिर्फ कुछ वेबसाइटों और कुछ अंग्रेजी अखबारों तक वह सीमित हो गई है! कुछेक हिन्दी अखबारों में वह यदाकदा किसी खास खबर या विश्लेषण में झलकती है! यह बड़ा संकट है!