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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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जी हां ये हैं हमारे न्यूज चैनल

प्रेमेंद्र । चीते कैसे सुबह जागे .. मोर ने उन्हें जगाया, चूंकि इतवार था यानी छुट्टी का दिन तो चीतों ने मस्ती में इतवार गुजारा। सोमवार होता तो ड्यूटी पर जाते। काम की भागदौड़ होती। हां  उन्होंने लंच में भैंसे का मांस खाया था। खाने के बाद उन्होंने डकार भी ली थी जो 3 सेकेंड लम्बी थी। एक चीते को बदहजमी हो गयी थी तो उसने एक लंबी सी आवाज के साथ गैस निकाली ... 

जी हां ये हैं हमारे न्यूज चैनल। मुख्य धारा के चैनल जो ये खबरे हमें परोस रहे हैं।

क्यों ? 

क्योंकि इन्हें पता है कि हम बेवकूफ हैं। हमें असली मुद्दों से कोई लेना देना नहीं। हमें अपने बेटे की बेरोजगारी नहीं सताती, हमें अपनी गरीबी से कोई गिला नहीं है, हमें देश की डूबती अर्थव्यवस्था से भी लेना देना नहीं है, हमें बढ़ती महंगाई से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, रसोई गैस पेट्रोल डीजल कितने भी दाम बढ़ाकर हमारा खून चूस लो हम निश्चिंत रहेंगे। जब अस्पतालों में डॉक्टर नहीं थे, अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं था लोग ताबड़तोड़ मर रहे थे तो हम एक बाजीगर के कहने पर ताली बजा रहे थे। जब हमारे अपनों के जिंदगी के दिए बुझ रहे थे तो हम मोमबत्ती जलाकर दीपोत्सव बना रहे थे। जब हमारे लाखों करोड़ों लोग सड़कों पर कड़ी धूप में पैदल चल कर हजारों किलोमीटर दूर घर आ रहे थे तो हम लॉक डाउन में लोगों की पुलिस से पिटाई के दृश्य देखकर आनंदित हो रहे थे।

 हम गंभीर खबरों के लिए बने ही नहीं है। हम जोकर हैं। हम बेवकूफ हैं। हमें ऐसी ही खबरें चाहिए। समाचार चैनल वालों ने हमें सही पहचाना है । हमारे नेता भी हमें सही पहचानते हैं। 

चलो ठीक है ......बजे डमरु, शुरू हो कोई नया तमाशा .....हम ताली बजाने को बैठे हैं

तो बताओ पत्रकार साहबों चीते ने कितने ग्राम पॉटी की ? चीते की पॉटी का रंग कैसा था ? और गंध ... बताओ बताओ हमारे साहब के चहेते चीते हैं। उनकी पॉटी भी राष्ट्रीय मुद्दा होनी चाहिए।

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना