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 मीडियामोरचा

____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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ख़तरनाक काम हो चुका है पत्रकारिता

प्रश्नपत्र लीक मामले को उजागर करने वाले बलिया के दो ग्रामीण पत्रकार जेल में

शीतल पी सिंह/ निहायत ही ख़तरनाक काम हो चुका है मोदीजी के उदय के बाद । अब विभिन्न राज्यों में उनके काम को आगे बढ़ाते हुए बीजेपी के कई मुख्यमंत्री लोकतांत्रिक समाज की सारी मर्यादाओं को बुलडोज़र से रौंद रहे हैं और जाति/धर्म की अफ़ीम के नशे में ग़ाफ़िल समाज तालियाँ बजा रहा है!

प्रश्नपत्र लीक मामले को उजागर करने वाले बलिया के दो ग्रामीण पत्रकारों को जेल में डाला गया है, इसके पहले मिड डे मील में नमक से रोटी खिलाने की खबर देने वाले पत्रकार को भी जेल में डाला गया था ।

हाथरस कांड की पड़ताल करने केरल से आ रहे एक पत्रकार पर UAPA लगाकर उसे साल भर से ज़्यादा समय से जेल में डाला गया है ।

उत्तर प्रदेश में दर्जनों मामलों में स्थानीय पत्रकारों ने प्रशासन की भृकुटि टेढ़ी होने पर यह सब झेला है । दूसरे राज्यों में भी यह बीमारी तेज़ी से फैली है ।

लोकतंत्र की पहली शर्त है फ़्री प्रेस । भारत में इसका मतलब बदल कर कर दिया गया है चारण प्रेस । असहमत प्रेस की आर्थिक और प्रशासनिक नाकेबंदी करके उसे घुटनों पर ला दिया गया है ।

पूरे देश की पत्रकारिता सिर्फ़ एक फ़र्ज़ी डिग्री वाले, अनवरत झूठ बोलते, अर्थव्यवस्था समेत हर क़िस्म की मान्य प्रशासनिक व्यवस्था को तहस नहस कर चुके, चंद क्रोनी कैपिटलिस्टों के हाथ देश के सारे संभव संसाधनों को लूट लिये जाने में मदद करते  ,मोनोलॉग करने वाले व्यक्ति को समर्पित करा ली गई है । 

असहमति का हर स्वर जुर्म है और सांप्रदायिक घृणा से सड़ रहे दिमाग़ इस जुर्म पर या तो ताली बजा रहे हैं या नज़रें फेर चुके हैं ।

शर्मनाक यह है कि खुद पत्रकार कहने कहलाने वाले अपने बीच के अल्पसंख्यक रह गये आज़ाद स्वरों को ख़ामोश करने की सत्ता की कोशिश में खुलेआम हिस्सेदारी निभा रहे हैं ।

देश एक बड़ी पुलिस स्टेट में बदल दिया गया है जहां विभिन्न पुलिसिया एजेंसियों को विरोधियों को जेल भेजने / मुक़दमों में उलझाने / डराने के काम में खुलेआम झोंक दिया गया है । सरकारों के इस आचरण से स्थानीय स्तर पर प्रशासन में लोकतंत्र ने सामंतवादी चोला अख़्तियार कर लिया है । असहमति अब सिर्फ़ और सिर्फ़ अपराध है!

उनका सम्मान कीजिए और उनके साथ खड़े रहिए जो ग़लीज़ चाटुकारिता के इस घृणा बेचते युग में सत्ता से असहमत होने का मानवीय कर्म कर रहे हैं ।

बलिया के बहादुरों, आपको बहुत बहुत आदर सहित क्रांतिकारी सलाम!

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पुरालेख--

सम्पादक

डॉ. लीना