अभिषेक आनंद / पटना के एक अखबार ने अपनी सबसे बड़ी खबर बनाते हुए आज सात कॉलम में छापा है, रिपोर्ट आ गई, प्राचार्या की आपाराधिक लापरवाही। फिर से पढ़िए- रिपोर्ट आ गई, प्राचार्या की आपाराधिक लापरवाही। खबर में बस यही जानकारी दी गई है कि डीआईजी व कमिश्नर ने रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें प्राचार्या की लापरवाही बताया गया है। क्योंकि उन्होंने खाना नहीं चखा था। यह भी कहा गया है कि पुलिस ने कल उनके घर की तलाशी ली ( बिना वारंट के), लेकिन वह मिली नहीं।
कुछ इस अंदाज में खबर से यह प्रतीत होता है कि सारी जिम्मेदारी हेड शिक्षिका की ही थी। बाकी सरकार-प्रशासन का कोई रोल नहीं। रिपोर्ट में प्राचार्या को फटकारते हुए कहा गया है कि स्कूल में साफ-सफाई की व्यवस्था नहीं थी।
जबकि कायदे से अब तक इसका कोई पता नहीं चल सका है कि जहरीला कीटनाशक तेल में या खाने के समान में कहां से आया। उसी अखबार ने लिखा है कि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई कि खाने का सामान शिक्षिका के पति के दुकान से ही आया था। जबकि शिक्षा मंत्री बयान दे चुके हैं कि शिक्षिका के पति के दुकान से सामान आया था, जो किसी और पार्टी के कार्यकर्ता निकले।
दरसअसल, पूरी जांच प्रक्रिया संदेह के घेरे में है। सरकार हर कुछ पर परदा डालना चाहती है। चाहे पटना के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में चल रहे बच्चे के इलाज में पारदर्शिता की बात हो या फिर परिजनों से प्रेस की बातचीत। सरकार उस पर भी रोक लगाने की पूरी कोशिश कर रही है।
सरकार की नाकामयाबी है कि अब तक यह पता नहीं चल सका है कि खाने में जहर आया कहां से। खाना दुषित कैसे हुआ। सरकार इस पर तो शायद कभी जांच ही न करे कि छपरा के अस्पताल में समय रहते इलाज क्यों नहीं शुरू हुआ.... घंटो क्यों लग गए.... शायद कई जानें और बच जाती....... कौन होगा उनका गुनहगार....