मीडिया का शून्य लागत सामग्री फॉर्मूला
विनीत कुमार। यूक्रेन-कीव में जो लोग मुश्किलों में फंसे हैं, वो बड़ी मुश्किल से विजुअल्स बनाकर अपने परिजनों से साझा कर रहे हैं. उनके परिजन भरी उम्मीद से उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं. एम्बेसी अपने स्तर पर तो काम कर ही रही है लेकिन उन्हें लगता है कि मीडिया के जरिए उनकी बात सामने आती है तो ज़्यादा असर होगा, अलग तरह का दबाव बनेगा.
इधर मीडिया जिसने शून्य लागत सामग्री( जीरो कॉस्ट कॉन्टेंट ) का ऐसा फॉर्मूला तैयार कर लिया है कि वायरल वीडियो पर खेलते रहना है, स्टूडियो की बहस से माहौल बनाए रखना है, ऐसे विजुअल्स नज़रअंदाज़ करके आख्यायान पत्रकारिता( नरेटिव जर्नलिज्म ) की तरफ मुड़ चला है. टीवी चैनलों पर विजुअल्स को ग़ायब करने या फिर बिना उसके, तत्व मीमांसा करने का जो चलन शुरु हुआ है उसने दर्शक के लिए प्रसारित माध्यम को दर्शक के ख़िलाफ माध्यम में बदलने के खेल में दिन-रात सक्रिय है. एक माध्यम के तौर पर टीवी तेजी से मर रहा है.