मीडिया संस्थान ग़ैरबराबरी का अड्डा!
विनीत कुमार/ एक ही मीडिया संस्थान इंडिया टुडे ग्रुप की एक मीडियाकर्मी हैलिकॉप्टर से उड़कर ज़मीन पर देश के मेहनतकश लोगों के बीच उतरती हैं और जिन्हें कई बार भकुआए अंदाज़ से लोग देखते हैं और इसी संस्थान की दूसरी मीडियाकर्मी एक हाथ से मोबाईल फंसाकर स्टिक पकड़ती है और दूसरे हाथ से चैनल की माईक. एक को ग्राऊंड जीरो रिपोर्टिंग करने का दंभ है और दूसरी चैनल की कूल इमेज बनाने में सहयोग कर रही हैं. इसे मीडिया की कक्षा में मोजो के तहत पढ़ाया-बताया जाएगा. अपने-अपने स्तर पर ये दोनों तसवीर यह बताने के लिए काफी है कि प्रयोग किए जाने के मामले में टीवी टुडे ग्रुप के आगे कोई नहीं.
पहली तसवीर देखकर मीडिया के छात्र जहां यह हसरत रख सकते हैं कि एक दिन मुझे ऐसा मीडियाकर्मी बनना है कि “दौरा जर्नलिज्म” का चेहरा बन जाऊंगा और दूसरी देखकर कि हमें अपने भीतर एस.पी.सिंह की आत्मा को ज़िंदा रखना है. लेकिन
शशि (Shashi Bhooshan) ने जब अपनी टाइमलाइन पर एक साथ दोनों तसवीर साझा का तो मैं इस सिरे से सोचने लगा कि क्या यह महज तकनीक और प्रयोग का मसअला है या फिर चैनल के भीतर की भारी असमानता और एक जगह से संसाधन की कटौती करके दूसरी जगह हवाबाजी के लिए इस्तेमाल करना है ?
आप सबने हैलिकॉप्टर पर सवार दौरा जर्नलिज्म के एपिसोड को देखा ही होगा। आप मुझे बताइए कि इससे ऐसी कौन सी बात, कौन से तथ्य आपके सामन आ पाए जो कि बिना हैलिकॉप्टर के संभव ही न होते ? दूसरा कि आप बाद की तसवीर पर ग़ौर करके बताइए कि क्या सभी जगह एक मीडियाकर्मी को इतनी ख़ाली जगह मिलती है कि एक हाथ से चैनल की माईक और एक हाथ से मोबाईल में स्टिक फंसाकर पीटीसी दे सके ? क्या आते-जाते लोगों के टकराने की संभावना नहीं बनेगी और यदि ऐसा बार-बार करनी पड़ जाय, देर तक करनी हो तो मीडियाकर्मी का संतुलन बना रह सकेगा ?
मीडिया संस्थान जिसे मोजो के नाम पर यहां चमकाने की कोशिश कर रहा है, वो दरअसल एक कैमरामैन के रखे जाने में खर्च की कटौती है जिसके पैसे से हैलिकॉप्टर में तेल भरा जा सके. आप इस सिरे से सोचना शुरु करेंगे तो आपको यह बात साफ़ समझ आ सकेगी कि कैसे मीडिया संस्थानों के बीच संसाधनों का पत्रकारिता के लिए कम और शोशेबाजी के लिए इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. ठीक इसी तरह एक ही संस्थान में दो-चार चेहरे बुर्जुआजी बनकर सो कॉल्ड पत्रकारिता करते हैं और बाक़ी सर्वहारा बनकर कोल्हू की तरह खटते हैं. ये वो शर्मनाक स्थिति है जिस पर लगभग सभी चैनलों में समझौते के स्तर की चुप्पी है और संस्थान ग़ैरबराबरी का अड्डा बना हुआ है.
तस्वीर साभारः शशि भूषण.