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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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आजीवकों में कोई ईश्वर का दूत नहीं होता

कैलाश दहिया/ महान आजीवक कबीर साहेब के नाम से लोग अभी भी गफलत में हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया पर भी गलत कयास लगाए गए हैं। वैसे तो कबीर साहेब को ले कर सारी बहसें खत्म की जा चुकी हैं। जिस में अच्छे-अच्छे खेत रहे। बावजूद इस के, निहित स्वार्थवश अभी भी कबीर पर लोग मुंह उठाकर बोलने लगते हैं। यह तब है, जब सिद्ध किया चुका है कबीर आजीवक धर्म के महापुरुष हैं।

मोहम्मद साजिद अली ओस्मान जी ने दिनांक 26 मई, 2021 को अपनी फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट डाली है, जिस में बुद्ध को एक 'नबी' के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वैसे तो इसे नवबौद्ध (महार) समझें। यूं, इसे नवबौद्धों को अपने पाले में खींचने की तिकड़म के रूप में देखा जाना चाहिए। फिर इस में कोई खतरा तो है नहीं, क्योंकि बुद्ध इस्लाम धर्म के संस्थापक से बहुत पहले पैदा हुए हैं। जिस से इन की धर्म परंपरा को रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ना। और तो और, वैसे भी बुद्धिज्म इस देश में पहले ही ध्वस्त हुआ पड़ा है। आज केवल बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की वजह से कुछ बुद्ध के नाम लेवा पैदा हो गए हैं।

साजिद अली लिखते हैं, 'अल्लाह ने हर क़ौम की तरफ़ नबी भेजे। तो इसलिए इमकान तो मौज़ूद है कि गौतम बुद्ध अल्लाह के नबी हो सकते है, ग़ौर करें कि यह मैं दांवे से नहीं कह रहा हूं, बस मेरा भी गुमान (अंदाजा, कयास) है कि वह अल्लाह के नबी हो सकते है।' इन्होंने आगे लिखा है, 'मेरे नज़दीक किसी के बारे में गुमान की यह दलील काफ़ी नहीं है कि अल्लाह ने जब हर क़ौम की तरफ़ नबी भेजे है तो श्री राम या श्री कृष्ण या अन्य किसी ऐसे शख़्स के बारे में गुमान किया जाए कि वह अल्लाह के नबी हो सकते है। ऐसे तो अगर 100-200-300 साल बाद एक गुमान कबीरदास या ऐसे ही किसी शख्स के बारे में भी न लगाने लग जाए कि वह भी अल्लाह के नबी हो सकते है।' अब इन की लिखत को कैसे समझा जाए?

ये किस को अल्लाह का नबी मानते हैं किस को नहीं, ये जानें। चूंकि, बुद्ध इस्लाम के आगमन से बहुत पहले हो चुके, इसलिए वे इन के लिए अप्रासंगिक ही होने हैं। ऐसे ही, ब्राह्मणी पौराणिक पात्रों का नाम ले लो, उस से भी इन की सोच पर कतई फर्क पड़ने वाला नहीं। अब बचे कबीर साहेब, जिन पर ये रोक लगा रहे हैं 'एक गुमान कबीरदास या ऐसे ही किसी शख्स के बारे में भी न लगाने लग जाए कि वह भी अल्लाह के नबी हो सकते है।' गजब है, ये कबीर साहेब के चिंतन से क्यों डर रहे हैं? दलित तो वैसे भी किसी को कुछ नहीं कह रहे। बौद्ध धर्म की सीमा भी  डॉ. अंबेडकर की वजह से दिखाई जा रही है। अन्यथा, आजीवकों का इस से भी कुछ लेना-देना नहीं। वैसे, इन से पूछा जा सकता है, भविष्य में कोई शख्स अल्लाह, ईश्वर, भगवान या गाॅड का नबी या दूत क्यों नहीं हो सकता? प्रसंगवश, यहां यह भी बताया जा रहा है कि आजीवकों में ऐसे किसी पैगंबर, नबी, अवतार, दूत  की परिकल्पना नहीं की जाती।  हां, पैगंबर या नबी का अर्थ अगर महान व्यक्ति-विचारक से है, तो कबीर साहेब का कोई सानी नहीं।  वैसे तो कबीर साहेब कह ही रहे हैं, 'इनकै काजी मुल्ला पीर पैगंबर, रोजा पछिम निवाजा।'(28, 334) यहां यह भी बताया जा सकता है, कबीर साहेब नियतिवादी हैं। जिस में जन्म निश्चित या निर्धारित होता है। नियतिवादी किसी ईश्वर का पैगाम नहीं लाते, बल्कि वे समाज में फैली बुराइयों और असमानता के विरुद्ध लड़ते हैं। यहीं से आजीवकों का महासंग्राम शुरू होता है। मक्खलि गोसाल ने इस देश में फैली बुराइयों के खिलाफ महा शिलाखंड़ों का संग्राम लड़ा है।  कबीर साहेब इसी आजीवक परंपरा के महायोद्धा हैं।

इन से यह भी पूछा जाए, कबीर साहेब के बारे में यह क्यों नहीं कहा जा सकता कि वे 'नबी' हैं? कहीं इस लिए तो नहीं, क्योंकि वे निकटतम नबी होंगे। ऐसे में कबीर साहेब की बात ही मानी और सुनी जाएगी। अरे भई! हम तो किसी को नहीं कह रहे के कबीर साहेब की मानो। कबीर साहेब आजीवक सद्गुरु हैं, जिन की सीख केवल आजीवकों के लिए है। किसी अन्य धर्म परंपरा को मानने वालों को हम आजीवक परंपरा को मानने को नहीं कह रहे। हां, जिस का दिलो- दिमाग कबीर साहेब की मानने को चाह रहा हो उस पर किसी तरह की रोक भी नहीं है। इस का विस्तार करने पर पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है। वैसे, समझदार को इशारा काफी है। अगर ये कबीर साहेब का नाम बीच में ना लाते तो हमें कुछ नहीं कहना था। एक बात और बताई जा सकती है, महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर कबीर के नाम पर लिखे प्रक्षिप्त पदों को आग लगा चुके हैं, जिन में 'कांकर पाथर जोड़ के' जैसे प्रक्षिप्त भी हैं। असल में कबीर अपने समय की प्रचलित सभी धर्म परंपराओं की चिंदी-चिंदी बिखेर रहे थे। इसी से ये डर गए लगते हैं।

बताइए, ये 100, 200, 300 साल बाद कबीर साहेब को 'नबी' मानने की आशंका मात्र से ही ये भयभीत हो गए हैं। अरे भई, हम तो आज और अभी कह रहे हैं कि कबीर साहेब आजीवक महापुरुष हैं। जिन की परंपरा में इन से पहले महान मक्खलि गोसाल और सदगुरु रैदास हुए हैं और आज महान आजीवक चिंतक डॉ. धर्मवीर। आगे भी इस पर कोई रोक नहीं है। भविष्य में भी कबीर और धर्मवीर पैदा हो सकते हैं। एक बात और, कबीर साहेब पर बोलने से पहले किसी को भी डॉ. धर्मवीर की कबीर पर लिखी आठ किताबों से हो कर गुजरना होगा, तभी आगे बात हो सकती है। अन्यथा, चेहरे समेत पूरा शरीर झुलस सकता है। 'कबीर के आलोचक' इस सीरीज की पहली किताब है। जिस में लिखा मिलता है, 'यह सच है कि ब्राह्मण का भला वेद से होता है और मुल्ला का भला कुरान से होता है लेकिन कबीर का पक्ष यह था कि दलितों का भला कौन करेगा?'(पृष्ठ 30) कहीं ऐसा तो नहीं इसी बात को ले कर  साजिद मियां भयभीत हो गए हों?

इन्होंने अपनी पोस्ट पर सवाल-जवाब के सिलसिले में यह भी कहा कि उन्होंने 'सिर्फ़ समझाने के लिए कि गुमान के लिए भी आख़िर क्या शर्त होनी चाहिए।'  कबीर का नाम लिया है। इस पर हमारा कहना है कि इन्हें किसी मुस्लिम व्यक्ति के नाम का संदर्भ देना चाहिए था। जब कोई महान आजीवक कबीर साहेब के नाम का संदर्भ देता है, तो उस को आलोचना के लिए तैयार रहना चाहिए। बावजूद इस के इस्लाम हमारा संदर्भ बिंदु नहीं है। क्योंकि यह मात्र हजार साल पुराना विचार है। इधर, 2500 सालों का वैचारिक चिंतन आ चुका है। जिसे हड़प्पा सभ्यता तक जाने में देर नहीं लगनी है।

ये सवाल उठा रहे हैं कि 'क्या गौतम बुद्ध अल्लाह के नबी थे?' फिर ये जवाब में बताते हैं,'पहली बात तो यही कि क़ुरआन में आता है कि अल्लाह ने हर क़ौम की तरफ़ नबी भेजे। तो इसलिए इमकान तो मौज़ूद है कि गौतम बुद्ध अल्लाह के नबी हो सकते है,..।' इस पर इतना ही कहना है, यह जो 'बुतपरस्ती' के खिलाफ लड़ाई है,  इस का सही शब्द 'बुद्धपरस्ती' है। बाकी ये जानें। वैसे, जहां तक कबीर साहेब की बात है, तो वे कहते हैं :

"जल में कुंभ, कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी।फूटा कुंभ जल जलहि समाना, यह तत कथो गियानी।।"(96, 433)

अगर नबी का मतलब दमित-दलित जनता का उद्धारक होता है, तो आज कबीर से बड़ा नबी  कौन है? अगर कोई ऐसे महापुरुष को पैगंबर या ईश्वर का दूत कह भी दे तो भी कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। भविष्य में भी मानवता की सेवा करने वाले ऐसे और भी महापुरुष हो सकते हैं। बेशक, ऐसे महापुरुष सैकड़ों-हजारों सालों में कभी-कभार पैदा होते हैं। पहले भी मानवता के उद्धारक पैदा हुए हैं और भविष्य में भी होंगे ही। अभी तक पैदा हुए महापुरुषों में कबीर साहेब सिरमौर हैं। और, कबीर साहेब की चिंतन परंपरा में 600 साल बाद धर्मवीर पैदा हुए हैं। इस में किसी को शक-शुबहा नहीं होना चाहिए। हमारे इन महापुरुषों ने दलितों की गुलामी के खात्मे का रास्ता बता दिया है, वह भी अपनी चिंतन परंपरा में। तभी इन्हें महान आजीवक कहा जा रहा है। किसी को भी हमारे महापुरुषों से भयभीत नहीं होना चाहिए। ऐसे ही बुद्ध अपनी क्षत्रिय परंपरा में बौद्धों के लिए महान हो सकते हैं, तभी तो नवबौद्ध क्षत्रिय होने को मचलते रहते हैं। अब भला कोई धर्मांतरित व्यक्ति वह कैसे हो सकता है जो वो है ही नहीं? हां, कबीर की चिंतन परंपरा में आजीवक धर्म  के सामने आ जाने से धर्म परिवर्तन करके अन्य धर्मों में गए दलितों में अकुलाहट पैदा हो गई है। वे टकटकी लगाए कबीर साहेब को देख रहे हैं।

उम्मीद है, कम लिखी को ये समझेंगे, और भविष्य में महान आजीवक कबीर साहेब पर उतने ही सम्मान से बोलेंगे, जितना ये इस्लामी परंपरा के पैगंबर-नबियों के बारे में बोलते हैं। वैसे भी, मार्क्स और फ्रायड अपने आप को आखरी चिंतक कैसे घोषित कर सकते हैं? और हां, अगर सुकरात ने खुद को आखरी चिंतक घोषित कर दिया होता तो? ऐसे ही, महान मक्खलि गोसाल कह सकते थे कि मैं इस धरती पर पहला और अंतिम तीर्थंकर हूं, तब क्या होता? इन्हें कबीर साहेब के महावाक्य को याद रखना चाहिए, वे गा रहे हैं :

"सो चादर सुर नर मुनि ओढ़ी,

ओढ़ के मैली कीनी चदरिया।

दास कबीर जतन से ओढ़ी,

ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया।।"(33, 475)

उम्मीद है, दलित यानी आजीवक समझेंगे। वे भी जो भटक कर इधर-उधर चले गए हैं।

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सम्पादक

डॉ. लीना