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____________________________________पत्रकारिता के जनसरोकार

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लेखकों के संसार में

लेखकों और समकालीन लेखन परिदृश्य को समझें -पहचानने का अवसर

कनक जैन / हिन्दी में साक्षात्कार पुरानी किन्तु उपेक्षित विधा है। साक्षात्कार आम तौर पर राजनेताओं और फ़िल्मी अभिनेताओं के ही छपते हैं। साहित्यकारों के साक्षात्कार या तो साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में या फिर शोध ग्रंथों में ही देखे जाते हैं। अपवाद स्वरुप कुछ अखबार और पत्रिकाएं ही हैं जो साहित्यकारों में भी दिलचस्पी रखते हैं।

पल्लव की नयी किताब 'लेखकों का संसार'  हिन्दी के सात जाने माने लेखकों के साक्षात्कार हैं जो इन लेखकों और समकालीन लेखन परिदृश्य को समझें -पहचानने का अवसर देते हैं। भूमिका में पल्लव ने लिखा है-'यह छोटी सी किताब अपने दायरे में आने वाले ऐसे ही लेखक मित्रों के संसार में प्रवेश करने की कोशिश है। मेरा मानना है कि सामाजिक कर्म होने के नाते लेखन और लेखक का संसार व्यापक होना चाहिए। इस व्यापकता में लेखक का निजी और सार्वजनिक सब आ जाता है।' उन्होंने इन शामिल लेखकों से लिए साक्षात्कारों के विवरण भी दिए हैं। किताब में पांच कथाकारों स्वयं प्रकाश, अब्दुल बिस्मिल्लाह, ओमप्रकाश वाल्मीकि, सुधा अरोड़ा, ज्ञान चतुर्वेदी, कवि नन्द चतुर्वेदी और नाटककार शिवराम से बातचीत है।

इस विविधतापूर्ण चयन से पल्लव की साहित्य की व्यापक समझ और दिलचस्पी का सहज अनुमान भी होता है। इन बातचीतों की पहली विशेषता बतकही का आनंद है। पल्लव साक्षात्कार को भारी भरकम बनाने की बजाय चुहल के साथ बात करने में भरोसा रखते हैं और इस काम में लेखक भी उनका साथ देते हैं जैसे एक सवाल के जवाब में स्वयं प्रकाश का उत्तर देखिये- 'विचारधारा कोई गरम मसाला नहीं है जो कहानी की सब्जी में डाल दिया जा सकता हो। विचारधारा जीवन को विश्व को देखें की एक समग्र दृष्टि है जो मनुष्य धीरे धीरे अपने में विकसित करता है,अपनी चेतना में धारित करता है।'

ऐसे ही अब्दुल बिस्मिल्लाह से पूछा कि मुकम्मल कहानी क्या होती है तो वे कहते हैं- ' मुकम्मल कहानी ऐसी होती है- शेर ने बकरी से पूछा, 'मांस खायेगी?' बकरी बोली,'अपना ही बच  जाए, यही बहुत है।' इसे क्या पल्लव की सामाजिक सद्भावना समझा जाए कि वे किताब में एक स्त्री और एक दलित लेखक से बातचीत देते हैं? बहरहाल इन दोनों संवादों में पल्लव ने इन विमर्शों के सम्बन्ध में खासी जिरह की है और उनका प्रयास रहा है कि इन विमर्शों की शक्ति के साथ इनकी सीमा भी बताई जाए। ज्ञान चतुर्वेदी जैसे विख्यात व्यंग्यकार से बातचीत भी जैसे छेड़छाड़ के अंदाज में की गई है और ज्ञान चतुर्वेदी सवालों के जवाब भी उसी अंदाज में देते हैं।

नन्द चतुर्वेदी जैसे वरिष्ठतम कवि को ठेठ अतीत में ले जाकर आज के झंझटों की जड़ें खोजने का उद्यम पल्लव ने क्या है,इस बातचीत में हिमांशु पंड्या भी उनके साथ शामिल थे। शिवराम जैसे जन नाटककार से बातचीत इस किताब की उपलब्धि कही जायेगी। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना जगाने वाले शिवराम अब इस संसार में नहीं रहे लेकिन उनके काम और आस्था की गहराई इस बातचीत में देखी जा सकती है। इनका महत्त्व मीडिया के लिहाज से भी है और वह यह कि इधर अखबारों में साहित्य -संस्कृति के लिए छीजती जा रही जगह में कैसे इस तरह के संवाद एक बौद्धिक उत्तेजना पैदा करते हैं. यहाँ  पल्लव ने अधिकाँश संवादों में मीडिया से जुड़े मुद्दों को उठाया है और उनकी कोशिश रही है कि मीडिया के जनपक्षधर्मी स्वरुप पर इन लेखकों-संस्कृतिकर्मियों से बात  की जाए.  

पल्लव इन संवादों को लेखकों का संसार कहते हैं तो उनका आशय संवादधर्मी संसार से ही होना चाहिए। बोधि प्रकाशन ने एक विशेष योजना में इस किताब को केवल दस रुपये में प्रकाशित कर अद्भुत काम किया है।

पुस्‍तक - लेखकों का संसार 

लेखक - पल्लव 

प्रकाशक - बोधि प्रकाशन, एफ-77 ,से. 9, रोड न. 11 ,करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया  बाइस गोदाम, जयपुर-302006 फोन 0141-2503989 

मूल्य - 10 रुपये    

समीक्षक - कनक जैन 

3  , ज्योति नगर 

पुलिस लाइन के निकट 

चित्तौडगढ़-312001

मो. 9413641775

 

 

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सम्पादक

डॉ. लीना